जहां संतो के चरण टिक जाते हैं वो भूमि पावन हो जाती है : कंवर साहेब

गुरु नाम की दीक्षा देकर अपने गर्भ से इंसान को जनता है
जब तक हम अपने आप को नहीं पहचानेंगे तब तब हम गुरु को भी नहीं पहचान पाएंगे

चरखी दादरी/सिरसा जयवीर फौगाट,

16 अगस्त, संत कभी अभिमान नहीं करते। संत तो हर जीव के सांचे में ढल जाते हैं क्योंकि उन्हें काल और माया के देश में गाफिल रूहों को उनके असल धाम जो पहुंचाना। जहां संतो के चरण टिक जाते हैं वो भूमि पावन हो जाती है और जिन जीवों पर उनकी दृष्टि पड़ी है उनका तो जन्म जन्मांतर के सारे कर्म कट जाते हैं। यह सत्संग विचार परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने नाथूसरी चौपटा के समीप रूपावास गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में प्रकट किए। इस अवसर पर पूसड धाम गोरियांवाली से बाबा चंद सिंह जी भी उपस्थित रहे। बाबा चंद सिंह ने अपने स्वागत से अभिभूत होकर कहा कि संतो की शरनाई में ही सब कुछ है। उन्होंने कहा कि राधास्वामी आश्रम दिनोद के अधिष्ठाता परम संत ताराचंद जी महाराज को उन्हें चाय पिलाने का अवसर मिला था और यही कारण है आज मुझे आपकी सेवा करने का मौका मिला है। बाबा चंद सिंह जी का मान सम्मान करते हुए हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने फरमाया कि संत एक ही घर से आते हैं। संत कभी संत होने का दावा नहीं करते। वे तो दया प्रेम का पाठ पढ़ाकर शेर और बकरी को एक ही घाट पर पानी पिलाने का कार्य करता है।

हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि सेवा कोई एक रूप नहीं होती। कोई धन से सेवा करता है तो कोई तन से सेवा करता है लेकिन अगर ये दोनो भी आपके पास नहीं हैं तो तीसरी सेवा जो इनसे भी बड़ी है वो करो। वो सेवा है मन की। हुजूर महाराज जी ने कहा कि माया दो फल देने वाली है। यदि इसको खाते और संचय करते हो तो ये मुक्ति दे देती हैं लेकिन यदि इसका संग्रह करते हो तो ये आपका नाश कर देती है। इसके खाने और खर्चने में भी अंतर है। यदि माया का खाना और खरचना नकारात्मक है तो ये मटियामेट कर देती है। खाना और खरचना भी वो भला है जो साध संगत के काम आए। ऐसा खर्च नानक साहब ने किया था। नानक साहब के पिता ने उनको दुनियादारी में ढालने के लिए अनेकों हथकंडे अपनाए। उनको पैसे देकर कहा कि बेटा सच्चा सौदा करके आना। नानक साहब ने वो सारे पैसे साधु संतो की सेवा में लगा दिए। जब पिता ने उनको डांटा तो नानक साहब ने कहा कि आपने ही कहा था कि सच्चा सौदा करना साधु संतो की सेवा से बढ़कर सच्चा सौदा क्या हो सकता है। कबीर साहब भी कहते हैं कि बात अटपटी है कि मन की खटपट कैसे मिटेगी लेकिन यदि आपकी मन की खटपट मिट जाएगी तो परमात्मा के दर्शन भी झटपट हो जाएंगे। गुरु महाराज जी ने कहा कि इंसान का चोला कितना कीमती है इसको कोई नही जानता। इंसानी चोले में आए हो तो भक्ति कमाओ। भक्ति भी नाम की और नाम अगर लो तो पूर्ण संत से लेना। विषय विकारों में इस अनमोल जीवन को बर्बाद मत करो। हुजूर महाराज जी ने कहा कि भक्ति करनी का भेद है ना कि बुद्धि का विचार। जब आप अपनी बुद्धि की मानना छोड़ कर गुरु की शरण में आओगे तब आपको अपने अंतर में भी गुरु का जहूर नजर आएगा। गुरु महाराज जी ने कहा कि जब तक हम अपने आप को नहीं पहचानेंगे तब तब हम गुरु को भी नहीं पहचान पाएंगे।

हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि बुढ़ापे में हम स्यापा पाते हैं कि मुझे एक मौका और दे दो मैं भक्ति करूंगा। अगर समय रहते चेत जाएं तो जगत भी सुधरे और अगत भी। गुरु महाराज जी ने कहा कि अगर एक आदमी भी सत्संग का एक वचन भी अपने जीवन में शुद्धता और ईमानदारी से ढाल ले तो वो एक ही करोड़ों को इस भवसागर से तार ले जाएगा। उन्होंने कहा कि एक बीज लाखो बीज पैदा कर सकता है तो एक सच्चा इंसान करोड़ो सच्चे इंसानो को पैदा क्यों नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन हमारा जीवन नहीं है ये संत सतगुरु का जीवन है तो हम इसकी पवित्रता को कैसे भंग कर सकते हैं। गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु की शरण में जाओ तो खाली होकर जाओ। जब यहां से एक पाई भी साथ नहीं जा सकती तो किस बात का पाप कमाना। हुजूर महाराज जी ने स्वयं का उद्धहरण देते हुए फरमाया कि मेरा जीवन तो मेरे गुरु ने बदला। मैं तो अपना असल जन्म मानता ही तब से हूं जब मैने गुरु गर्भ से जन्म लिया था। गुरु नाम की दीक्षा देकर अपने गर्भ से इंसान को जनता है। मां के गर्भ से जन्म लेकर तो हम दुनियादारी ही कमाते हैं लेकिन अब गुरु गर्भ से जन्म ले ही लिया तो भक्ति कमा लो। गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु की फोटो से नही स्वयं गुरु से प्रेम करना सीखो। गुरु को ऊपर ऊपर नहीं बल्कि मन के भीतर लाना सीखो। नेक रस्ते पर चलते हुए भलाई के कार्य करो। दिल को तो बुराइयों से भर रखा है तो अच्छाई कैसे भरोगे।

उन्होंने कहा कि भक्ति की शक्ति अपने आप प्रकट होती है। चित्र नहीं चरित्र देखना सीखो। कभी दो घड़ी बैठकर चिंतन करो कि किस काम के लिए आए थे और क्या कर रहे हैं। रूह की निरख और परख करना सीखो। ये हमारा मस्तिष्क कमाल की मशीन है। इस मशीन से आप जैसी वस्तु देखना चाहते हैं ये आपको वैसी ही दिखाती है। संतो का ज्ञान वहां से शुरू होता है जहां विज्ञान का समाप्त होता है। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि नाम का अभ्यास बहुत शक्तिशाली चीज है। नाम की कमाई करते हुए हृदय पवित्र बनाओ। गरीब भूखे की मदद करो। अपना सामाजिक जीवन बढ़िया बनाओ। धन से दान किया करो तन से सेवा किया करो और मन से सुमिरन किया करो। मां बाप की सेवा करो। बच्चों प्यार प्रेम परोपकार के गुण भरो। पशु पक्षियों के प्रति भी दया का भाव रखो, देना सीखो। प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करो।

You May Have Missed

error: Content is protected !!