भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हम मना रहे हैं आजादी का अमृत महोत्सव। यह समय है याद करने का कि आजादी हमें किस मूल्य पर मिली। आजादी के बाद हमने क्या खोया, क्या पाया? क्या हम आजादी के लक्ष्य को प्राप्त कर पा रहे हैं? या लक्ष्य प्राप्ति में कुछ कमियां हैं और कमिया हैं तो वे कैसे दूर होंगी? 

15 अगस्त 1947 को हमने स्वतंत्रता का पहला झंडा फहराया और 26 जनवरी 1950 को हमने भारतीय गणतंत्र का झंडा फहराया। भारत में प्रजातंत्र प्रणाली लागू हुई। प्रजातंत्र का अर्थ यह है कि शासन प्रजा द्वारा संचालित होगा। अर्थात प्रजा इस देश का शासन चलाएगी और हुआ भी यही। प्रजा ने अपने विधायक, सांसद चुने और वह प्रजा की बात संसद और विधानसभाओं में कर प्रजा की इच्छाओं के अनुरूप शासन चलाने लगे।

माना जाता रहा है कि शासन चलाने के लिए चार स्तम्भ माने गए, न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और पत्रकारिता। इनमें प्रमुख विधायिका रही जिसके पास देश के नियम कानून बनाने का कार्य रहा। उसके पश्चात कार्यपालिका रही, जो विधायिका द्वारा बनाए कानूनों का पालन कराए और न्यायपालिका का कार्य यदि विधायिका, कार्यपालिका या कोई अन्य संविधान का उल्लंघन करे तो उन्हें उचित राह पर लाने के लिए समझाए और सजा दे। चौथी रह गई पत्रकारिता तो उसका कार्य जनता की आवाज विधायिका और कार्यपालिका तक पहुंचाने का है। 

आजादी के अमृत महोत्सव पर मंथन करना चाहिए कि क्या हम संविधान के दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं? क्या जनता की बात कार्यपालिका, विधायिका तक पहुंच रही है? क्या आम आदमी अपनी बात न्यायपालिका तक पहुंचाने में सक्षम है?

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव पर हर घर तिरंगा फहराने का नारा दिया गया। उसके पीछे लक्ष्य शायद यही रहा हो कि उपरोक्त बातें हर घर तक पहुंचे। हर घर जाने कि आजादी किस मूल्य पर प्राप्त हुई। देश को स्वाधीन रखने में सैनिकों का कितना योगदान है? और आम आदमी के क्या अधिकार है? मुझे तो ऐसा लगता है कि हर घर तिरंगा अभियान लक्ष्य पर नहीं पहुंच रहा। अब यह मैं आज आपके मनन के लिए छोड़ रहा हूं……….

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