भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हर घर तिरंगा अभियान की गूंज सरकार, प्रशासन और भाजपा द्वारा खूब सुनाई दे रही है। कहते हुए बड़ा मन दुखी होता है कि तिरंगे की भावना आमजन या विपक्षी पार्टियों में दिखाई नहीं दे रही।

तिरंगा मात्र एक कपड़े का टुकड़ा नहीं अपितु प्रतीक है हमारे राष्ट्र के गौरव का, प्रतीक है आजादी के संघर्ष का। स्मरण कराता है आजादी के संघर्ष में शहीद हुए अनेक बलिदानियों को और याद दिलाता है ब्रिटिश शासन की। जब ब्रिटिश शासन अपनी ही बात सुनता था और अपनी मर्जी की करता था, जनता उनकी नजर में तुच्छ थी। आजादी की लड़ाई के परवानों को क्रांतिकारी नहीं अपितु बागी और अराजक कहा जाता था।

याद आता है अपना बचपन, जब स्कूल में पढ़ते थे। 15 अगस्त, 26 जनवरी से पूर्व नर्सरी से 12वीं तक एक माह पूर्व ही स्कूलों में देशभक्ति के गीत गाए जाते थे। शहीदों की जीवनियां कंठस्थ कराई जाती थी और आजादी के बलिदानियों पर नाटक का मंचन होता था। सिखाया जाता था कि राष्ट्र ध्वज का सम्मान सर्वोपरि है, इससे ऊपर कछ नहीं। 

धुंधली यादें हैं 62 में चीन से हुए युद्ध की। जब प्रधानमंत्री ने जनता से अपील की कि हमें अनुमान भी नहीं था कि चीन हम पर हमला करेगा। हमारी सैन्य शक्ति कमजोर है और मुझे जनता से मदद चाहिए तथा उस समय गरीबी में रह रही जनता ने दिल खोलकर तिरंगे की शान के लिए दान दिया। यहां तक कहा जाता है कि गरीब से गरीब व्यक्ति ने भी अपना योगदान दिया। महिलाओं ने अपने जेवर देश के लिए दान कर दिए। क्या ये भावना आज देखने को मिलती है? 

वर्तमान में हर घर तिरंगा अभियान एक इवेंट बनकर रह जाएगा, जिसका प्रमाण मिला भाजपा के एक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष से जब पूछा कि तिरंगे के बारे में बताइए कि इसकी लंबाई-चौड़ाई कितनी होती है और बीच में चक्र कितना बड़ा होता है तो उत्तर स्तब्ध करने वाला मिला। उन्होंने कहा कि हमें इस बात से क्या मतलब, यह तो झंडा बनाने वाले जानें। हमने तो पैसे देकर झंडा खरीदना है।

उस पर पूछा कि झंडा फहराने के नियम क्या हैं तो प्रत्युत्तर में कहा कि झंडा डंडे में लगाकर खड़ा कर देना है, क्या नियम होते हैं, इतने झंडे गाडिय़ों पर भी लग रहे हैं।

अब आप स्वयं सोचिए कि जिस प्रकार हर घर तिरंगा लगाकर भाजपा कार्यकर्ता अपने संगठन में अपना कद ही बढ़ाना लक्ष्य समझ रहे हैं, फिर हर घर तिरंगा का लक्ष्य पूर्ण होगा?

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