बीके मदन मोहन,,,,,,,ब्रह्माकुमारीज
ओम शांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम

संतुलन एक कला है। हम देखते हैं कि संतुलन के द्वारा लोग बहुत से करतब करते हैं। वास्तव में संतुलन एक जीवन शैली है। व्यवहारिक जीवन में जो व्यक्ति संतुलित होकर चलता है, वह कभी भी उलझता नहीं। संतुलन जीवन में विश्वास पैदा करता है। संतुलन दुआओं का पात्र बनाता है। संतुलन की कला सदा सुखद अनुभूति कराती है। जीवन खुशियों से भर जाता है। संतुलन का तात्पर्य है कि जीवन में किन्हीं भी विपरीत परिस्थितियों में स्थिर रहना। कर्म और व्यवहार में संतुलित रहना। कई बार व्यक्ति जब किसी कार्य में असफल होता है तो उसका स्वाभाविक असर उसके व्यवहार पर पड़ता है। व्यक्ति या तो चिड़चिड़ा हो जाता है या निराशावादी हो जाता है। दूसरा संतुलन है हमारी वाणी और कर्म में। कई बार लोग बोलते बहुत हैं लेकिन करते बहुत कम हैं। जिससे वह विश्वास के पात्र नहीं बन पाते। आज विकास की अंधी दौड़ के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया। मानव के रहन-सहन, खान-पान और बातचीत का संतुलन बिगड़ गया। इसका मूल कारण कहीं ना कहीं मानव के अंदर का खालीपन है। आज व्यक्ति बाहरी प्रगति के लिए अपने मूल्यों से भी सौदा कर लेता है। मानवीय मूल्य जीवन के आधार स्तंभ हैं। उनके बिना की गई बाहरी उन्नति व प्रगति ऐसे ही है, जैसे रेत के ऊपर बनी इमारत।

संतुलन के लिए आध्यात्मिक मूल्य जरूरी
बिना आध्यात्मिकता के विकास की दौड़ निराशा और दुःख के ही भाव प्रकट करती है। आध्यात्मिक शक्ति जीवन को बेहतर दिशा प्रदान करती है। साथ ही जीवन में कर्म और योग का संतुलन पैदा करती है। जिस प्रकार पतंग आसमान में उड़ती है लेकिन उसकी रस्सी का एक सिरा किसी के हाथ में होता है। इसी प्रकार बाह्य उन्नति के साथ आध्यात्मिकता हमारे मूल सिरे को पकड़ कर रखती है। हमारे हर कर्म में संयम और नियम को लाती है। सिर्फ बहाव के साथ बहने नहीं देती। आध्यात्मिकता हमारे मन और बुद्धि का संतुलन बनाती है। संतुलन ही एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण करता है। जीवन में संतुलन तभी आता है, जब हमारे संकल्प शक्तिशाली होते हैं। शक्तिशाली संकल्प मन को एकाग्रता प्रदान करते हैं। मन की एकाग्रता के लिए सबसे आवश्यक उपाय योग है। योग से ही जीवन संतुलित होता है।

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