थावर कीजै थरपना….…… उपप्रधान का चुनाव नारनौल भविष्य की राजनीति ओर संकेत करेगा कि राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा। कमलेश सैनी को अपना बनाने के लिए जजपा और भाजपा के बीच कशमकश अशोक कुमार कौशिक नारनौल । हिंदू पंचांग के अनुसार देव सो चुके हैं, अगले 4 महीनों तक देवों के फिर जागने से पहले, कोई भी शुभ कार्य का मुहूर्त न होने के कारण बाजारों में व्यापार भी मंदा ही रहता है। ऐसे में विशेषकर पान की दुकान, सैलून व अन्य कार्यालयों एवं प्रतिष्ठानों पर बस एक ही चर्चा है कि नवनिर्वाचित चेयरपर्सन एवं निर्वाचित पार्षद 16 जुलाई शनिवार को शपथ लेंगे । उन्हें सफर दिलाने स्वम प्रदेश की हुकुम मुख्यमंत्री रोशन चौटाला आ रहे हैं। अगला उप-प्रधान जो कि अभी चुना जाना है, इस पर कौन चुना जाएगा, इसकी चर्चाएं जोरों पर है। चर्चा इस बात पर भी है कि सनातनी परंपरा को दरकिनार कर आखरी देवशयन के बाद और विशेषकर शनिवार का दिन ही क्यों चुना गया? जब जबकि सारे शुभ कार्य देव सेन के बाद वर्जित होते हैं तब शपथ ग्रहण समारोह क्यों किया गया? क्या नई चेयरपर्सन और नगर परिषद पार्षदों का कार्यकाल सुचारू और शांतिप्रिय रहेगा? नगर परिषद के चुनाव हुए अभी 24 दिन ही हुए हैं। पहली बार पूरे प्रदेश में चेयरमैन के चुनाव सीधे मतदान के द्वारा हुए हैं। नारनौल नगर परिषद के चेयरपर्सन पद पर महिला उम्मीदवार चुनी गई है। परिसीमन के बाद नारनौल नगर परिषद में पहली बार 31 वार्डों से पार्षद चुन कर आए हैं। 16 जुलाई को नगर परिषद चेयरपर्सन एवं 30 पार्षदों का शपथ ग्रहण होना है, एक वार्ड विजेता प्रत्याशी का देव गमन हो गया है। इसके बाद विधिवत रूप से नगर परिषद का गठन हो जाएगा। नगर परिषद का चेयरपर्सन के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पद उप-प्रधान जिसका चुनाव होना अभी बाकी है, वह कौन बनेगा इसके समीकरण व इस पद के लिए गुणा-भाग की चर्चाएं अभी से बिठाई जाने लगी है। जातिगत समीकरण के अनुसार है इस बार 8 पार्षद सैनी , 8 पार्षद यादव , 6 पार्षद दलित (इनमें से एक पार्षद का स्वर्गवास हो चुका है), 5 पार्षद अग्रवाल महाजन एवं 2-2 पार्षद जाट एवं ब्राह्मण जाति से चुनाव जीत कर आए हैं। नगर परिषद की चेयरपर्सन जो कि पहली बार सीधे चुनाव जीत कर आई है वह स्वयं सैनी जाति से होने के कारण उप-प्रधान के पद पर किसी दूसरी जाति के ही पार्षद के चुने जाने की ज्यादा संभावना है। उप-प्रधान पद के उम्मीदवारों में अंजना अग्रवाल, नितिन चौधरी एवं संदीप जैन उर्फ बंटी महाजन जाति से, अमर सिंह एवं रजनी बहल दलित जाति से, संजय यादव एवं कपिल यादव अहीर जाति से, सुशीला सैनी, ओम प्रकाश सैनी उर्फ बिल्लू व सिकंदर सैनी, सैनी जाति से प्रबल उम्मीदवार हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नप चेयरपर्सन सैनी जाति से होने के कारण उप-प्रधान पद पर सैनी बिरादरी का दावा कमजोर पड़ता है। सुनने में तो यह भी आ रहा है कि सैनी बिरादरी अपने को मिले प्रबल समर्थन के दृष्टिगत यह पद गैर सैनी देना चाहती है। इसी प्रकार नप चेयरपर्सन के मुकाबले चुनावों में यादव उम्मीदवार होने के कारण, उनका प्रयास यही रहेगा कि यादव जाति से भी उप-प्रधान ना चुना जाए, वैसे स्थानीय प्रतिनिधि प्रदेश सरकार में मंत्री भी इसी बिरादरी से संबंध रखते हैं। भविष्य की राजनीति के दृष्टिकोण से तथा सामाजिक सामंजस्य बैठाने के उद्देश्य से ऐसे में इस पद के लिए महाजन जाति जिनके मतों की संख्या सैनी व अहिर जाति के बाद नगर में सबसे ज्यादा है, का कोई पार्षद या दलित जाति का कोई पार्षद ही इस पद पर चुना जाएगा, ऐसा नगर परिषद चुनावों के जानकारों का मानना है। अग्रवाल समुदाय से अंजना अग्रवाल, नितिन चौधरी व संदीप जैन उर्फ बंटी जहां प्रबल दावेदारों में माने जाते हैं। वहीं अमर सिंह एवं रजनी बहल दलित जाति से अपना दावा इस पद के लिए ठोक रहे हैं। अंजना अग्रवाल जो कि पूर्व में नगर परिषद की चेयरपर्सन भी रह चुकी है, इनके पति सेठ रतन लाल अग्रवाल उर्फ चिमन जो कि स्वयं भी पार्षद रह चुके हैं तथा उनकी माताजी एवं उनके सुपुत्र भी पूर्व में पार्षद जीत कर आ चुके हैं। लगातार 5 योजना से चुनाव जीत से आ रहे एवं लगातार तीन पीढ़ियों के पार्षद एक ही परिवार से चुने जाने के कारण अंजना अग्रवाल उप-प्रधान पद की रेस में सबसे आगे हैं पर उनके ऊपर पहले से ही नगर परिषद के मामले को लेकर अदालत में केस चला हुआ है, इसलिए वह दौड़ में पिछड़ सकती है। वैसे भी इस चुनाव में अंजना अग्रवाल के पति रतन लाल अग्रवाल उर्फ चिमन नवनिर्वाचित चेयरपर्सन के चुनावों में प्रमुख प्रचारकों में थे इस कारण भी उनका राजनीतिक विरोध हो सकता है। इसी प्रकार नितिन चौधरी जो कि पूर्व नगर परिषद प्रधान किशन चौधरी के भतीजे हैं और वह भाजपा से चेयरपर्सन की टिकट के लिए भाजपा के प्रबल दावेदार थे।उनका परिवार भी नारनौल के रसूखदार परिवारों में से है, जिनके परिवार से भी कई बार पार्षद चुने जा चुके हैं। नगर में चर्चा तो यहां तक है की नवनिर्वाचित चेयरपर्सन ने नितिन चौधरी को उप-प्रधान पद पर बिठाने के लिए उनसे चुनाव पूर्व वादा किया हुआ है, इसलिए वह भी उप-प्रधान पद की रेस में आगे हैं। ऐसी ही कोई मूक सहमति संदीप जैन उर्फ बंटी को भी नवनिर्वाचित चेयरपर्सन के द्वारा उन्हें इस पद पर बैठाने के लिए दी गई है, ऐसी चर्चाएं भी काफी गर्म है। सामाजिक समरसता और भाजपा की भविष्य के राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर सैनी या यादव बिरादरी से बाहर का प्रत्याशी बनाया जाता है तो वैश्य- ब्राह्मण समुदाय के बाद दलित जाति का नाम प्रमुखता से उभरता है। अमर सिंह जो की पांचवी बार पार्षद चुने गए हैं व रजनी बहल जो कि दूसरी बार लगातार पार्षद चुनी गई है, वह भी उप-प्रधान पद के प्रबल दावेदारों में शामिल है। हालांकि अभी तो 16 जुलाई को नवनिर्वाचित चेयर पर्सन एवं निर्वाचित पार्षदों का शपथ ग्रहण ही होना है और इस शपथ ग्रहण समारोह में ही उप प्रधान पद की दौड़ संभावना थोड़ी साफ हो जायेगी। यह दीगर बात है कि उप- प्रधान पद के चुनाव में अभी और समय लगेगा, क्योंकि नगर परिषद चुनाव की नियमावली के अनुसार उप- प्रधान पद का चुनाव अगले छह महीनों में कराना अनिवार्य है, ऐसे में उप प्रधान पद का सेहरा किस के सिर पर बंधेगा, उसके लिए नारनौल की जनता को अभी और इंतजार करना होगा। नवनिर्वाचित चेयरपर्सन कमलेश सैनी अतीत में जननायक जनता पार्टी से जुड़ी रही है और वह महासचिव के पद पर थी। इसी पार्टी से वह दो बार विधायक का चुनाव भी लड़ चुकी है ।पर निकाय चुनाव में इस बार जजपा और भाजपा के बीच चुनावी गठबंधन के कारण यह सीट भाजपा के खाते में गई तो वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरी। इस बार बाघ ने जो खाया और मैं हरियाणा में सबसे अधिक मतों से जीतने वाले प्रत्याशियों में से एक विजेता बनी। उनके चुनाव जीतने के बाद भाजपा और जजपा के बीच उन्हें अपना बनाने की जोर आजमाइश चली। भाजपा के जिला प्रधान राकेश शर्मा नवनिर्वाचित चेयर पर्सन कमलेश सैनी को लेकर चंडीगढ़ पहुंच गए और उन्हें मुख्यमंत्री से मिलवाया। इसी बीच उन्होंने जज्बा को लेकर चुप्पी साधे रखी हालांकि वह चंडीगढ़ में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से भी मिली। आज पूरे शपथ दिलाने स्वयं प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला नारनौल आ रहे हैं। अब देखना यह होगा कि वह जज्बा के झंडे के नीचे रहती हैं यह भाजपा का पल्लू थामती है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि भाजपा की अंदरूनी कलह इस चुनाव में जगजाहिर हो चुकी है। केंद्रीय मंत्री राव इंदरजीत सिंह व स्थानीय विधायक व प्रदेश सरकार में मंत्री ओम प्रकाश यादव को शिकस्त देने के मंसूबे ने भाजपा प्रत्याशी को पराजित करवा दिया था। इस स्थिति में क्या स्थानीय विधायक नवनिर्वाचित चेयरपर्सन के पाले में जाएंगे यह बात तो समारोह में उनकी उपस्थिति से ही जाहिर हो जायेगी। यहां यह भी लिखना उल्लेखनीय होगा कि भाजपा संगठन व जिले के विधायकों की मंशा क्या रहती है यह भी साफ हो जाएगा। वैसे उपप्रधान के चुनाव में स्थानीय विधायक और मनोनीत पार्षदों का भी महत्व होता है। यहां यह स्पष्ट है कि उपप्रधान का चुनाव भविष्य की राजनीति ओर संकेत करेगा कि राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा। वैसे एक कहावत है कि थावर कीजै थरपना। Post navigation आम आदमी पार्टी की बैठक में पार्टी की मजबूती को लेकर मंथन शराब माफिया से हारा ठेकेदार, लगभग 3 करोड़ से ज्यादा डुबो कर जोड़े हाथ