सुख दुख में परमात्मा नहीं बल्कि सतगुरु साथ खड़ा मिलता है
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर लाखो की संख्या में उमड़ी साध संगत

दिनोद धाम जयवीर फोगाट,

13 जुलाई, गुरु का दर्जा इंसान के जीवन में सबसे बड़ा होता है। चाहे इंसान किसी जाति किसी धर्म किसी स्मप्रदाय और किसी भी देश से जुड़ा हो उसे गुरु की आवश्यकता है। गुरु पूर्णिमा का शिष्यों के लिए विशेष महत्व है क्योंकि ये पर्व हमें गुरु की महता समझाता है। गुरु जीवन में अनेको धारण किये जाते हैं लेकिन सतगुरु केवल एक। गुरु क्षेत्र विशेष में आपको पारंगत करता है लेकिन सतगुरु इन सबसे ऊपर सत्य का भेद देता है। सत्य केवल परमात्मा है और उसी परमात्मा का अंश है हमारी रूह। यानी जिस घर से हमारी रूह आयी थी उसी आदि घर में उस को वापिस भेजने का भेद जो बक्शे वही सतगुरु है।

हुजूर कँवर साहेब जी ने गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाये देते हुए कहा कि अमिरस का खाजाना सिर्फ सतगुरु ही बता सकता है और दे भी सकता है। हमें जो ज्ञान सतगुरु से मिलता है वो कहीं और से मिल ही नही सकता। शास्त्र भी सतगुरु को सबसे उच्च दर्जे का मानते हैं। गुरु की महिमा सबसे बड़ी बताते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु ब्रह्मा के समान सृष्टिकर्ता है, विष्णु के समान संरक्षक है तथा गुरु ही महेश्वर के समान विनाशक है। उन्होंने कहा कि गुरु जलते हुए दीपक की भांति है जो करोड़ों अरबों बुझे हुए दियो को भी रोशन कर देते हैं।

उन्होंने इस अवसर पर अपने सतगुरु परमसंत ताराचंद जी महाराज को स्मरण करते हुए कहा कि हम बड़े भाग्यशाली जीव हैं कि हमें पूर्ण पुरुष कुल मालिक अवतार मिला। गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु भी चार प्रकार के होते हैं। पारस दीपक मलिया और भृंग गुरु। पारस गुरु पारस पत्थर की भांति शिष्य के खोट निकाल कर उसे गुणवान बना देते हैं। दीपक गुरु दीपक की भांति शिष्य के अज्ञान को मिटा कर उसमें अच्छाई का प्रकाश भर देते हैं। मलय गुरु मलय यानी चंदन की भांति अपने शिष्य में गुणों की खुशबू भर देते हैं यानी अपने ज्ञान की भांति शिष्य में भी ज्ञान की खुशबू भर देता है। इन तीनों से बढ़ कर होता है भृंगी गुरु क्योंकि पहले तीनों तो अपने शिष्यों में विविध रूप से ज्ञान विवेक प्रेम सेवा भक्ति के गुण ही भरते हैं लेकिन भृंगि गुरु तो शिष्य को स्वयं के समान बना लेते हैं यानी गुरु शिष्य को समभाव से भर देता है।

उन्होंने कहा कि गुरु का दर्जा तो परमात्मा से बढ़कर है। सहजो बाई तो यहां तक कहती है कि मैं परमात्मा को तज सकती हैं लेकिन गुरु को नहीं क्योंकि परमात्मा ने तो मेरे पीछे मान मद लोभ मोह अहंकार के रूप में पांच चोर लगा दिए थे लेकिन सतगुरु ने मुझे अनाथ समझ कर उनसे बचा लिया। वो कहती है कि मेरे सुख दुख में परमात्मा नहीं बल्कि सतगुरु मेरे साथ खड़ा मिलता है और उन दुखो से छुटकारा दिलाने की युक्ति बताता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि बड़े बड़े औलिया पीर पैगंबर देवी देवता को देख लो सबको गुरु बनाना पड़ा। राम और कृष्ण जो अवतारी थे उनको भी गुरु धारण करना पड़ा। उन्होंने कहा कि जो गुरु को अपना कर्म काटने का जरिया भर मानते हैं जो केवल बनी बनी में ही गुरु गुरु करते हैं। को गुरुजी आलोचना में शामिल होते हैं उनके लिए ना कोई गुरुपर्व होता है ना कोई और त्योहार। उन्होंने कहा कि लेखा केवल उनका निमडता है जो सतगुरु को परमात्मा मानते है और गुरु चरणों और गुरु शरण की महता समझते हैं। पहली भक्ति गुरु भक्ति है क्योंकि हमारी आत्मा पर पड़े बन्धनों को गुरु भक्ति से ही काटा जा सकता है। गुरु के वचन को मानना ही गुरु भक्ति है। जो निश्चय करके गुरु के वचनों की पालना करेगा वो गुरु पूर्णिमा पर पूर्णता को प्राप्त कर लेगा। गुरु की शरणाई लेकर आप अपनी सारी चिंताओं को पूर्ण विराम लगा सकते हो। जीवन रूपी भवसागर से गुरु की बांह पकड़ कर ही पार जाया जा सकता है। गुरु की पूजा गुरु का ध्यान ही भक्ति की प्रथम सीढ़ी है। उन्होंने कहा कि जिस जीव के माथे से सतगुरु है गया और जो शबद से विमुख हो गया उसको तो काल घसीट घसीट कर मारता है।

हुजूर ने कहा कि परमात्मा सबके लेख लिख रहा है। परमात्मा के लेख में मेख केवल सतगुरु ही मार सकता है। सतगुरु शाहो का शाह है। इस काल देश से निकालने वाला केवल सतगुरु ही है। उन्होंने कहा कि जैसे बिना हथियार के कोई शूरमा नही होता वैसे ही बिना सतगुरु रूपी हथियार के ये जीव इस जीवन रूपी रण में जीत नहीं सकता। उन्होंने कहा कि ये जगत सराय है सब आते हैं और जाते है लेकिन जो सतगुरु की आड़ लेने वाला काल रूपी चाकी में पीसने से बच जाता है। उन्होंने कहा कि झूठे गुरु की शरण लेने वाले सच्चे शिष्य की पत भी परमात्मा रखता है तो सोचो सच्चे गुरु की शरणाई लेने वाले को कितना सुख मिलता होगा। शिष्य को गुरु के काम नहीं करने चाहिए बल्कि शिष्य को तो गुरु जो कहता है वो करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सच्चे गुरु के सत्संग में बार बार जाकर आप अपने अभ्यास को पुख्ता कर सकते हैं क्योंकि गुरु धोबी भी है गुरु रंगरेज भी है और गुरु वैध भी है। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा तभी सार्थक होगी जब आप अपने अंदर सकारात्मक बदलाव लाओगे। घरों में प्यार प्रेम शांति बनाओ। बच्चो को अच्छी शिक्षा दो बड़ो को आदर मान दो। मां बाप सास ससुर की सेवा करो।