जीवो के ऊपर चढ़े अनेकों कर्ज गुरु भक्ति से ही उतर सकते हैं

दिनोद धाम जयवीर फोगाट,

12 जुलाई, सेवादार सत्संग की नींव होते हैं। सेवादार वो जो निस्वार्थ सेवा करे। सेवा भक्ति के लिए अति आवश्यक है। सेवा के अनेक रूप हैं। उपासना सहित सेवाएं और उपासना रहित सेवाएं। जो सेवक नहीं है वो शिष्य भी नहीं है। धन नहीं है तो तन से करो, तन नहीं है तो मन से करो लेकिन सेवा करो। मन की खटपट मेट लो परमात्मा के दर्शन भी चटपट हो जाएंगे।

हुजूर महाराज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले विशाल सत्संग व भंडारे की तैयारियों हेतु सेवा में जुटे हजारों सेवादारों को दर्शन और सत्संग फरमा रहे थे।गौरतलब है कि हर वर्ष दिनोद धाम में स्थित राधास्वामी आश्रम में सत्संग एवं भंडारे का आयोजन होता है जिसमें लाखो सत्संग प्रेमी शामिल होते हैं।

सेवादारों को सेवा का महत्व बताते हुए हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि किसान खेत में सेवा करता है बदले में अनाज पाता है। विधार्थी विद्या की सेवा करता है बदले में ज्ञान पाता है। कोई पैसे के चाह में सेवा करता है तो कोई किसी अन्य वस्तु की चाह में। बिना चाह के यदि कोई सेवा है तो वो गुरु के दरबार की सेवा है। एक सच्चा भक्त कभी चाह को मन में रख कर सेवा नहीं करता क्योंकि जो भक्त ही हो गया वो ये भी जान गया कि सतगुरु तो बिन मांगे ही उसको सब कुछ बख्श देता है। तुच्छ बुद्धि से तो हम दुनियादारी की तुच्छ वस्तुएं ही मांग सकते हैं। 

हुजूर ने कहा कि कितने किस्से कहानियां भरी पड़ी हैं कि फलां राजा या सेठ साहुकार ने दुनिया को जीत कर अकूत खजाना कमाया लेकिन जब वो इस जगत से गया तो खाली हाथ ही गया। गुरु महाराज जी ने कहा पहले कर्ज उतारो फिर फर्ज निभाओ। जीवो के ऊपर अनेकों कर्ज चढ़े हैं। ये कर्ज गुरु भक्ति से ही उतर सकते हैं। हुजूर ने कहा कि गुरु के दर की सेवा करना परमात्मा की सेवा करना है। सेवक जब सेवा का वजन ना माने और सेवा से यदि उसको प्रसन्नता और सतुष्टि मिले तो ये सेवा उपासना रहित सेवा है। सेवा से ही सिद्धि है और सेवा से ही सफलता है। उन्होंने कहा कि सिख धर्म में सेवा का बड़ा महत्व है। सिखों के दशमेश गुरुओं ने जोर जी सेवा भक्ति और प्रेम पर दिया है। उन्होंने प्रसंग सुनाते हुए कहा कि पांचवी बादशाही में भाई मंज होता था। उसने अर्जुन साहब से नामदान की प्रार्थना की। नामदान के बाद वो अपने घर चला गया। अकाल पड़ा फसल बिगड़ गई और भाई मंज का मकान भी गिरवी हो गया। गरीबी की पराकाष्ठा थी। गुरु ने मंज की परीक्षा लेने के लिए उसको संदेशा भिजवाया कि गुरु घर के निर्माण के लिए 21 रुपए सेवा दो। भाई मंज के पास रोटियों के भी पैसे नहीं थे लेकिन गुरु के हुक्म की तामील के लिए उसने एक साहुकार के साथ अपनी बेटी की शादी की और उससे रुपए लेकर सेवा में दे दिए। कुछ दिन के बाद गुरु का और सेवा का संदेश भेज दिया। भाई मंज फिर बहुत खुश हुआ पत्नी से पूछा कि अब सेवा कैसे दे। पत्नी ने कहा कि मुझे बेच दो। मंज ने पत्नी को बेच दिया। कुछ दिन बाद फिर संदेश आया कि दरबार में हाजिर हो जाओ। जब मंज दरबार में गया तो गुरु अर्जुन दास ने अपना मुंह फेर लिया ताकि उसे अपनी सेवा का अभिमान ना हो। मंज भी बेफिक्री में दरबार की सेवा में रम गया। एक दिन गुरु ने फिर उसके बारे में पूछा तो दूसरे सेवादार बोले कि वो तो बड़ा अच्छा सेवादार है। गुरु साहेब बोले की रोटी कहा खाता है। सेवादार बोले कि भंडारे में। गुरु साहेब बोले कि फिर क्या खाक सेवा करता है। मंज के कानो में जब ये वचन पड़े तो उसने खुद को लानत भेजी। अगले दिन से सेवा का काम दोहरा कर दिया और खुद की कमाई से रोटी खाने लग गया। एक दिन जब लकड़ी ला रहा था तो तेज़ बारिश आई। लकड़ी को भीगने से बचाने के चक्कर में मंज कुएं में गिर गया। अर्जुन साहब दरबार छोड़ कर रस्सा लेकर भागे। मंज ने कहा कि गुरु महाराज पहले लकड़ी बाहर निकलवाओ। तब गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु ही मंज है और मंज ही गुरु है। 

कवंर साहेब ने फरमाया कि पहले भक्ति का सच्चा स्वरूप होता था लेकिन आज के युग में हम भक्ति में भी चालाकी बरतते हैं। गुरु जी ने कहा कि बिन मांगे वस्तु मिले तो वो अमृत के समान है। यदि मांग कर वस्तु लेते हो तो पानी के समान है और जबरदस्ती मांगी गई या ली गई वस्तु तो भिष्टा के समान है। गुरु अपने शिष्य को तपाता है तब जाकर वह कुंदन बनता है।

उन्होंने कहा कि सत्संग के वचन हीरे मोती हैं लेकिन उनको चुन केवल नाम के प्रेमी ही पाते हैं। सत्संग में आकर भी जो जीव इसका लाभ नहीं उठा पाता है वो बड़ा अभागा है। उन्होंने कहा कि मोह नींद से जागकर जो संतो की शरण ले लेता है उनके ऊंचे भाग हैं। महाराज ने कहा कि संतो का दिया नाम अमृत होता है, पाप नाशक होता है और फलदाई होता है। हर काम करने से पहले यदि परमात्मा को स्मरण कर लिया और उसका नाम पुकार लिया गया तो हर काम सफल हो जाता है। “राधास्वामी” नाम कुलमालिक का नाम है। ये केवल नाम नहीं है बल्कि सच्ची पुकार है। और दिल से लगाई गई पुकार में बड़ी ताकत होती है। “राधास्वामी” मत के प्रवर्तक स्वामी जी महाराज ने नाम की दो श्रेणी फरमाई है। एक वर्णात्मक और दूजा धुनात्मक।

वर्णात्मक नाम जुबान से बोला गया नाम है जो परमात्मा के रूप और गुण का वर्णन करता है जबकि धुनात्मक नाम परमात्मा के प्रति लगन और विश्वास का प्रतीक है। वर्णात्मक नाम का जब अभ्यास बन जाता है तब वो धुनात्मक बन जाता है। धुनात्मक नाम आपके चरित्र में शुमार हो जाता है। जो धुनात्मक नाम के महत्व को जान लेता है वो सतगुरु का हो जाता है। सतगुरु से नाता रूहानी नाता है। ये कभी टूटता नहीं है। दुनिया के सब नाते छूट जाएंगे लेकिन गुरु का नाता कभी नहीं छूटता। गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु तो सब को चाहता है लेकिन गुरु को कोई बिरला गुरुमुख ही चाहता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि जीवन चाहे एक दिन का क्यों ना हो लेकिन नेक काम करो। बुराई युगों युगों तक आपका पीछा नहीं छोड़ेगी। रावण को आज भी जलाया जाता है।

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