संतो का सानिध्य और सत्संग हमें पाप कर्मों से बचाता है दिनोद धाम जयवीर फोगाट, 03 जुलाई, आपके घट भीतर आनंद के खजाने भरे पड़े हैं। इस सृष्टि का ही नमूना हमारा अंतर घट है। परमात्मा का ही रूप है ये इंसान फिर उस परमात्मा को खोजने हम बाहर क्यों भटक रहे हैं। पूर्ण सतगुरु की खोज करके हम उस भेद को प्राप्त कर सकते हैं। हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि हम सबमें वो परम ज्योति प्रकट है जिसके कारण हम जिंदा जी कहलाते हैं। ज्योति बुझ गई तो ये शरीर मिट्टी का ढेला भर है। उन्होंने कहा कि राधास्वामी मत को प्रकट करने वाले आदिसंत स्वामी जी महाराज ने जब इस अंतर भक्ति का भेद जनमानस को बताया तो उनका बड़ा विरोध किया गया लेकिन आज दुनिया का जर्रा जर्रा इस राधास्वामी नाम का उचारा कर रहा है। इंसान जब तक जवानी की रौं में है तब तक अभिमान के वश होकर सत्य को नहीं पहचानता। बचपन आता है चला जाता है। जवानी आती है चली जाती है लेकिन बुढ़ापा एक बार आकर जाता नही है बल्कि ले कर ही जाता है। उन्होंने कहा कि इससे पहले कि ये तन जर जाए परमात्मा की भक्ति कर लो। परमात्मा की भक्ति मन की शुद्धि से होगी क्योंकि जब तक शुद्ध नहीं होता कोई इंसान बुद्ध नहीं होता। मन का चक्कर आपको शुद्ध नहीं होने देगा। ये कभी आपको लालच में डूबोएगा तो कभी काम क्रोध में। मन को काबू में करना है तो सतगुरु की शरण में जाओ। हमारी रूह हंस रूप है इसको परमात्म नाम रूपी अमृत पिलाओ पानी नहीं। दुनियादारी में फंस कर हम गलत पाप कर्म करते हैं। संतो का सानिध्य और सत्संग हमें पाप कर्मों से बचाता है। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि जिसके कर्म अच्छे होते हैं वो इस जगत में भी सुखी और उस जगत में भी सुखी रहते हैं।कर्म की लाठी सबको लगती है लेकिन जो गंदे कर्म करता है उसको दर्द होता है और अच्छे कर्म करने वालो को लाठी का दर्द नहीं होता। उन्होंने कहा कि इंसान अपनी बुद्धि के आगे दूसरो को तुच्छ समझता है। अपनी चतुराई हर जगह चलाता है। उन्होंने वर्तमान युग को कलयुग नहीं बल्कि पाप युग बताया। उन्होंने कहा कि पहले किसी व्यक्ति से अगर कुछ गलत हो जाता था वो लोगो से अपनी आंख नहीं मिला पाता था लेकिन आज तो जो जितना पाप करता है उसकी उतनी ही जय जयकार होती है। दूसरो की बुराई देखने की बजाए अपने दोष टटोलो। संतो की वाणी सच्ची शुचि और अमृतदायनी होती है। गुरु महाराज जी ने कहा कि आप अपने विचार अच्छे रखो। पहले अपना आपा सुधारो ताकि आपकी संतान का आपा सुधरे। घरों में प्यार प्रेम बना कर रखो। बच्चो को दुनियादारी की चीजे नहीं अच्छे संस्कार दो। मां बाप सास ससुर की सेवा करो। पर्यावरण को शुद्ध रखो। Post navigation कन्हैयालाल की स्मृति में बाढड़ा की जांगड़ा धर्मशाला में किया गया शोकसभा का आयोजन श्रीमद भगवत गीता है सम्पूर्ण जीवन दर्शन