*ढाणी बठोठा ठेके में आगजनी में घायल दीपक ने तोड़ा दम।
सुबेसिंह ने दोबारा मुख्यमंत्री को शिकायत भेजकर मामले की निष्पक्ष जांच कराने  मांग की
शराब के ठेकों में प्रतिद्वंद्विता व शराब माफिया का विवाद 

अशोक कुमार कौशिक 

नारनौल। जिला में शोर है कि सरकार की आबकारी पालिसी 2022-2023 में निर्धारित किये गए मूल्यों से नीचे शराब खुलेआम बेची जा रही है, बार-बार शिकायत के बाद भी आबकारी विभाग बड़े ठेकेदारों की दुकानों पर हाथ डालने से हिचक रहा है। ठेकेदार किश्त नही भर पा रहे हैं, मतलब सरकार को राजस्व देने में परेशानी। ढूंढने पर पता चला कि इसका कारण है विभाग के अधिकारियों व पुराने ठेकेदारों का आर्थिक गठजोड़। जिसकी वजह से नए व छोटे ठेकेदारों के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए जाते हैं कि  या तो वो इन बड़े ठेकेदारों के सामने झुक जाएं या मोटा नुकसान खा कर घर वापिस चले जाएं और इनकी सल्तनत यूं ही चलती रहे। पता चला है कि विभाग के बड़े साहब महीने में 20 दिन तो दफ्तर ही नही आते हैं, आखिरी सप्ताह में जब मलाई बंटने का समय आता तब ही उनके दर्शन होते हैं। आपसी प्रतिस्पर्धा की दौड़ में एक बेगुनाह सेल्समैन भेंट चढ गया । शराब माफिया द्वारा ढ़ाणी बाठोठा शराब ठेके के साथ जलाए गए सेल्समैन दीपक ने एक सप्ताह के बाद जिंदगी की जंग हार गया। उसने आज अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस बारे सीताराम एंड कंपनी के ठेकेदार ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को दोबारा शिकायत भेजी है।

आखिर क्या कारण है कि 2021-2022 में महेंद्रगढ़ कस्बे में शराब पालिसी के मूल्यों पर बिकी अब आधे दाम पर क्यों? जवाब है कि बीते साल महेंद्रगढ़ कस्बे के सारे ठेके बाहुबली व यदुवंशी स्कूलों के संचालक बहादुर सिंह के पास थे, तो उन्होंने महंगी शराब बेचकर अच्छी कमाई की। इस साल ठेके किसी अन्य व्यक्ति ने भी ले लिए तो उन्हें यह सहन नही हुआ। उसने चांदी की जुत्ती के नीचे दबाकर आबकारी विभाग के साथ मिलकर जौनवास में बड़ा ठेका बनाया और बेचने लग गए आधे दाम पर। सोच यह है कि जिस आदमी ने सरकार को करोड़ों देकर लगाकर शहर के ठेके लिए वो बर्बादी से बचने के लिए इनकी शरण मे आएगा ही, तब दाम बढ़ाकर कमाई करेंगे। 

सवाल यह है कि जब जिला में शराब की कमान इन्ही महारथियों ने संभालनी है तो फिर सरकार ये टेंडर का ड्रामा क्यों करती है ।

जब काम इन्ही के लोगों ने संभालना है तो सफेद हाथी बने आबकारी विभाग का दफ्तर क्यों खोल रखा है, उसे भी यदुवंशी स्कूल या किसी एल 1 मे शिफ्ट कर दें, कम से कम सरकार का खर्चा तो बचेगा ।

यही नारनौल में हो रहा है जूतों के डब्बों में शराब की बोतल छुपाकर अवैध रूप से बेचने वाले छुटभैये दुकानदार पर “चेयरमैन” की मेहरबानी क्या हुई वो भी बड़ा ठेकेदार बन बैठा। अब माफिया राज की पैदाइश इस बड़े ठेकेदार की भी इच्छा है कि शहर मे उसका ही राज चले और कोई ना उभरे। इसकी मदद को भी पालतू बिल्ली आबकारी विभाग और ‘चेयरमैन’ के पालतू पुलिसकर्मी तैयार खड़े रहते हैं। 

इस बारे एक शिकायत सिंघाना रोड जोन के ठेकेदार सूबे सिंह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को आज दोबारा एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया कि आपकी सरकार की आबकारी पालिसी जिसमें कहा गया था कि आपका लक्ष्य है कि नए व्यक्ति शराब व्यापार से जुड़ें व माफिया को हटाया जाए से प्रभावित होकर मैं भी इस व्यापार से जुड़ा हूं। लेकिन नए ठेकों के आवंटन के 15 दिनों में ही यह लगने लगा है कि घर बेचकर ही सरकार की किश्त भरनी पड़ेगी। जिसका कारण है आबकारी विभाग की पुराने शराब माफिया के साथ मिलीभगत। 

उसने अपनी शिकायत में कहा है कि नारनौल शहर व आसपास में पालिसी में निर्धारित मूल्य से आधे मूल्य पर शराब बेची जा रही है, डीईटीसी साहब को शिकायत करते हैं तो वो कोई कार्रवाई नही करते हैं, महज खानापूर्ति की जाती है। ऐसे में हम कमाई तो दूर सरकार की फीस भरने लायक पैसे भी नही जुटा पा रहे हैं। 30 जून को भी रिश्तेदारों  से उधार लेकर किश्त भरी है। जिला में आबकारी विभाग पूरी तरह से बाहुबली पूर्व विधायक व कांग्रेसी नेता बहादुर सिंह और माफिया पृष्ठभूमि वाले अंकुश गोयल के इशारों पर काम कर रहा है। डीईटीसी साहब से मिलने जाएं तो वो महीने में 20 दिन दफ्तर ही नही आते हैं। 

सुबेसिंह ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि आपने देश की सर्वोत्तम आबकारी नीति तैयार की है जिससे युवा व छोटे व्यापारियों को भी रोजगार मिला है, परन्तु आबकारी विभाग ही इसको खराब कर रहा है। आपसे निवेदन है कि मुख्यमंत्री फ्लाइंग स्क्वाड से इसकी जांच करवाकर हमें और हमारे रोजगार को बचाइए।

12 जून से शराब केन्ये ठेके चालू हुए हैं, सरकार ने भी ऐसी पॉलिसी बनाई की शराब व्यापार मे माफिया पर नकेल कसते हुए नए लोगों को मौका दिया जाए। नीलामी से पहले यहां चले आ रहे शराब माफिया द्वारा मनमर्जी के जोन बनवाये गए लेकिन जब यह मिलीभगत मीडिया में उजागर हुई तो आनन फानन में जोन बदले गए, जिसमें जिला आबकारी एवं कराधान आयुक्त की कार्यप्रणाली पर भी उंगली उठी। बोली से पहले पूल बनाकर एक ही फ़र्म के नाम पर नाममात्र की बढ़ोतरी कर  ठेके लिए गए।  गड़बड़ी की आशंका पर 17 जोन में से आबकारी विभाग ने 11 जोन के ठेकों के आवंटन को रद्द कर दिया गया  

गौरतलब है कि 18 अप्रैल को प्रदेश के 9 ज़िलों में शराब के 190 जोन के लिए ई बोली लगाई गई थी। जिसमे 8 जिलों में बोली के लिए विभिन्न फर्मों द्वारा कुल 555 फार्म लगाए गए थे। जहां सरकारी मूल्य से 20.78 प्रतिशत अधिक की दर पर जोन आवंटित किए गए। लेकिन नारनौल में हुआ इसका एकदम उलट। 112.41 करोड़ रुपये के सरकारी मूल्य के 17 जोन की बोली के लिए महज 24 फार्म ही लगाए गए, जिसमें 12 जोन में सिर्फ एक ही फ़र्म का फार्म लगाया गया था। यहां आवंटित 17 जोन में सरकारी मूल्य से सिर्फ 3.89 प्रतिशत की बढ़ोतरी ही हुई। जोन नम्बर 11 में तो महज 0.02 प्रतिशत (11,111 रुपये) की ही बढ़ोतरी हुई। सरकार को नारनौल से 112.41 करोड़ के सरकारी मूल्य से लगभग 4 करोड़ रुपये ही अधिक राजस्व प्राप्त हुआ। एक ही फर्म को 17 जोन में से 13 जोन के ठेके आवंटित होने से यह भी स्पष्ट हो गया कि जिला में एल 1 का भी एक ही गोदाम खोला जाना था जिसका शुल्क लगभग 4 करोड़ रुपये होता है। अगर 2 से ज्यादा फर्में ठेके लेती तो सरकार को दूसरे एल 1 के शुल्क के 4 करोड़ रुपए और मिलते। साथ ही एक गोदाम होने से यह भी स्पष्ट है कि जिला में मनमाने दामों पर शराब बेची जाती जिसका सीधा असर आम व्यक्ति की जेब पर पड़ेगा। इन सब कारणों को ध्यान में रखते हुए आबकारी विभाग के कलेक्टर शेखर विद्यार्थी ने शराब के 11 जोन के आवंटन को रद्द कर दिया था।  

इसके बाद हुई बोली में रेवाड़ी और भिवानी के ठेकेदारों ने हिस्सा लेते हुए शराब माफिया का चक्रव्यूह तोड़ दिया और दूसरा एल 1 भी खोल दिया। जिसकी पीड़ा शराब माफिया के साथ साथ आबकारी एवं पुलिस विभाग मे बैठे उनके शुभचिंतकों गहरी पीड़ा हुई। जिसका नतीजा है कि आये दिन नए ठेकेदारों को परेशान किया जा रहा है। कभी पालिसी मे निर्धारित मूल्य से नीचे शराब बेचकर तो कभी इन ठेकेदारों की दुकानों पर बेवजह पुलिस भेजकर। 

हालात यह हैं कि शाम होते ही सीआईए के पुलिस कर्मचारी सादी वर्दी और अपनी निजी गाड़ियों में अधिकृत ठेकों के आसपास मंडराने लगे जाते हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि इन कर्मचारियों की ड्यूटी शराब माफिया पर नकेल कसने में लगानी चाहिए थी। 

शराब माफिया की प्रतिद्वंद्विता का परिणाम तो नही है ठेके को आग लगाना

बीते दिन गांव ढाणी बाठोठा में शराब के ठेके को आग लगा दी गई जिससे एक सेल्समेन झुलस गया था, जिसने यह सप्ताह के बाद आज दम तोड़ दिया। भला हो ग्रामीणों का की उन्होंने शोर होते ही दरवाजा तोड़कर उसे बाहर निकाला था। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार देर रात शराब की बोतल के भुगतान को लेकर हुए विवाद के कारण कुछ युवाओं ने बोतल से पैट्रोल डालकर आ लगा दी। सोचने वाली बात यह है कि देर रात शराब की बोतल मांगने वाले युवाओं के पास पेट्रोल से भरी बोतल क्या कर रही थी ? सीधा सा मतलब है कि उनका टारगेट ठेके को ही आग लगाना था फिर बहाना चाहे कुछ भी हो। निश्चित तौर पर इसके पीछे शराब के ठेकों में प्रतिद्वंद्विता व शराब माफिया का विवाद है।

शराब के नए व्यापारियों द्वारा यह संभावना भी व्यक्त की जा रही है कि भविष्य में इन घटनाओं में बढ़ोतरी भी हो सकती है।

error: Content is protected !!