नोटिफिकेशन के 30 दिनों के भीतर होता है नव-निर्वाचित अध्यक्ष और सदस्यों का शपथग्रहण मौजूदा कानून अनुसार शपथ में ईश्वर का ही उल्लेख, सत्यनिष्ठता से प्रतिज्ञान का विकल्प नहीं चंडीगढ़ — हरियाणा की 46 नगर निकायों (18 नगर परिषदों एवं 28 नगर पालिकाओं) के अध्यक्ष पद पर एवं उन सभी के अंतर्गत पड़ने वाले कुल 888 वार्डों से सदस्य (जिसे आम बोलचाल में पार्षद कहते हैं हालांकि यह शब्द हरियाणा म्युनिसिपल कानून में नहीं है ) हेतु गत माह 19 जून को राज्य निर्वाचन आयोग के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण में करवाए गये मतदान, जिनकी मतगणना उसके तीन दिनों बाद 22 जून को करवाई गयी, उनमें विजयी रहे उम्मीदवारों की निर्वाचन नोटिफिकेशन आज दस दिन बीत जाने के बाद भी राज्य चुनाव आयोग द्वारा जारी नहीं की गयी है. उपरोक्त चुनावों में प्रदेश में सत्तासीन भाजपा -जजपा के पार्टी सिम्बल पर लड़े उम्मीदवारों ने कुल 25 ( 22 भाजपा और 3 जजपा) नगर निकायों के अध्यक्ष पद पर जीत का परचम लहराया जबकि 19 निकायों में प्रधान पद पर निर्दलीय प्रत्याशी और एक-एक निकाय में इनेलो और आप पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की. जहाँ तक उपरोक्त 46 निकायों के अंतर्गत पड़ने वाले 888 वार्डों के नतीजों का विषय है तो उनमें से 816 वार्डों अर्थात 92 % वार्डों में निर्दलयी उम्मीदवार जीते हैं जबकि भाजपा, जिसने 136 वार्डों में ही पार्टी सिंबल पर प्रत्याशी उतारे थे, वह केवल 60 में ही जीत पाई जबकि उसकी सहयोगी जजपा ने एक भी वार्ड में उसके चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ा. वहीं प्रदेश में केवल 6 वार्डों में इनेलो, 5 में आप और एक में बसपा के उम्मीदवार जीते हैं. इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि आम तौर पर नगर निकायों के चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद उनके सम्बन्ध में राज्य चुनाव आयोग द्वारा सरकारी गजट में निर्वाचन नोटिफिकेशन प्रकाशित/अधिसूचित करने में इतने दिनों का समय नहीं लगता है. अब इस मर्तबा इतना विलम्ब क्यों और किस कारण से हो रहा है, यह आयोग के वरिष्ठ अधिकारीगण ही बता सकते हैं. जहाँ तक उपरोक्त 46 नगर निकायों का विषय है, तो सम्बंधित ज़िले के डीसी (उपायुक्त ) द्वारा उनके नव-निर्वाचित अध्यक्ष और सदस्यों के नाम और ब्यौरा पूर्ण रूप से सत्यापित कर निर्धारित समय पर आयोग को भेज दिया जाता है. बहरहाल, हेमंत ने बताया कि वर्ष 2019 में प्रदेश विधानसभा द्वारा हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973 , जो प्रदेश की सभी नगर पालिकाओं और नगर परिषदों पर लागू होता है, में डाली गयी नई धारा 18 ए के अनुसार सम्बंधित जिले का डिप्टी कमिश्नर (डी.सी.) या उसके द्वारा अधिकृत कोई गज़ेटेड अधिकारी नगर पालिका/परिषद के आम चुनावो के बाद चुने गए नव-निर्वाचित अध्यक्ष/सदस्यों के नामों की निर्वाचन नोटिफिकेशन जारी होने के 30 दिनों के भीतर 48 घंटे के नोटिस पर उस निकाय की पहली बैठक बुलाएगा एवं जिसमे सभी नव-निर्वाचित पदाधिकारियों को पद और निष्ठा की शपथ दिलवाई जायेगी. इसी बीच हेमंत ने एक रोचक परन्तु महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान के अनुसार देश के सर्वोच्च निर्वाचित पद अर्थात राष्ट्रपति पद और इसी प्रकार उप -राष्ट्रपति पद, प्रधानमंत्री/केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री/मंत्री आदि सभी संवैधानिक पदों पर निर्वाचित पदाधिकारियों के लिए जो शपथ प्रस्तावित है, उसमें उन्हें यह विकल्प दिया जाता है कि वह चाहें जो ईश्वर के नाम से शपथ ले सकते हैं अथवा अगर वह इस प्रकार शपथ नहीं लेना चाहते हैं, तो वह सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान (सोलेमनी अफिरम) भी कर सकते हैं. हालांकि जहाँ t एक हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973 की मौजूदा धारा 24 (1 ) में दिए गए शपथ के प्रारूप का विषय है, तो उसमें केवल ईश्वर के नाम पर ही शपथ लेने का उल्लेख है. हालांकि वर्ष 2019 में किये गए संशोधन से पूर्व उपरोक्त धारा में सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान का भी उल्लेख मौजूद था. इसी प्रकार हरियाणा नगर निगम कानून, 1994 , जो प्रदेश की सभी नगर निगमों पर लागू होता है, की धारा 33 में दिए गए शपथ के प्रारूप में भी केवल ईश्वर के नाम से ही शपथ लेने का उल्लेख है, सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान का नहीं. हालांकि हरियाणा के वर्ष 1973 के म्युनिसिपल कानून और वर्ष 1994 के नगर निगम कानून में यह अंतर अवश्य है कि अगर नगर पालिका/परिषद का नव-निर्वाचित अध्यक्ष /सदस्य निर्वाचन नोटिफिकेशन जारी होने के तीन महीनो में शपथ नहीं लेता और प्रदेश सरकार उस अवधि को आगे नहीं बढ़ाती, तो ऐसे में उस निर्वाचित पदाधिकारी का चुनाव ही इनवैलिड (अमान्य) माना जाएगा एवं उस परिस्थिति में उस सीट पर ताज़ा चुनाव करवाने तक का उल्लेख है. वहीं नगर निगम में नव-निर्वाचित मेयर/सदस्य अगर शपथ नहीं लेता, तो उसे निगम की हर बैठक में बतौर जुर्माना पांच सौ रूपये अदा करने होंगे एवं निगम सदन में उसके द्वारा डाली गयी वोट ही केवल अमान्य होगी. Post navigation खट्टर सरकार का कदम एक सुनियोजित रणनीति के तहत शिक्षा का भगवाकरण का कुप्रयास : विद्रोही हरियाणा में चल रही है हरियाणवी विरोधी सरकार- हुड्डा