*क्या यह सही है कि एक जजपा नेता और एक पत्रकार भी कमलेश सैनी के माध्यम से नगर परिषद पर कब्जा जमाना चाहते हैं !
 *क्या यह सही है कि कमलेश सैनी इन तीनो से पीछा छुड़ाना चाहती हैं !
 *क्या यह सही है कि कमलेश सैनी जाती विशेष की बजाय 36 बिरादरी की राजनीति करना चाहती हैं !
*क्या जजपा कमलेश सैनी की मान मनोव्वल कर रही है ?
क्या नव निर्वाचित चेयरपर्सन कमलेश सैनी ने अभी जजपा जॉइन नही है ? 
* क्या कमलेश सैनी का झुकाव भाजपा की तरफ हो रहा है ?
क्या जजपा जिलाध्यक्ष की बजाय भाजपा जिलाध्यक्ष के साथ चंडीगढ़ जाना पूर्व नियोजित था ? 
* क्या चंडीगढ़ कार्यक्रम सिर्फ मुख्यमंत्री से मिलने का था ?

अशोक कुमार कौशिक

नारनौल। पूर्व जजपा नेत्री व नव निर्वाचित चेयरपर्सन कमलेश सैनी व जजपा पार्टी में अभी सब कुछ ठीक नही चल रहा है। चुनाव के समय गठबंधन धर्म को धता बताते हुए 99 फीसदी जजपा नेताओ ने इसी आशा में उनकी खुली मदद की थी कि वो वापिस जजपा में शामिल होंगी। लेकिन चुनाव जीतने के बाद कमलेश सैनी यह देख रही हैं कि उन्हें किसके साथ रहने में लाभ है जजपा या भाजपा। चुनाव परिणाम के अगले ही दिन अल सुबह कमलेश सैनी एक ही गाड़ी में भाजपा जिलाध्यक्ष राकेश शर्मा के साथ मुख्यमंत्री से मिलने चंडीगढ़ रवाना हो गई। बताया जा रहा है कि उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय लिया था। लेकिन जजपा नेता अभिमन्यु राव व सिकंदर गहली दवाब डालकर उन्हें उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पास भी लेकर गए। 

उसके बाद से  अभी तक  चैयरपर्सन कमलेश सैनी की तरफ से जजपा में शामिल होने सम्बन्धी कोई बयान नही आया है। यह दीगर बात है कि चुनाव से पूर्व उन्होंने जननायक जनता पार्टी के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा स्वीकार किया गया या वापिस लिया गया इसके बारे में न तो पार्टी कुछ बोली और नहीं श्रीमती कमलेश सैनी ने कुछ कहा। अंदरखाते यह भी सूचना है कि दो दिन पहले अखबारों में कमलेश सैनी द्वारा धन्यवाद का विज्ञापन दिया जाना था जिसमे दुष्यंत चौटाला का फोटो नही था, जिस पर जजपा नेताओं ने दवाब देकर यह विज्ञापन रुकवाया। अब यह तो समय ही बताएगा कि कमलेश सैनी कमल थामेगी या चाबी। जजपा नेता अपने मिशन में कामयाब हो पाएंगे या उन्हें मायूसी हाथ लगेगी।

हम उस चर्चा को आगे बढ़ा रहे हैं जिसमें नगर परिषद नारनौल के चुनाव के से पहले और बाद में बनी परिस्थितियों को समझ कर कैसे एक ही झटके में श्रीमती कमलेश सैनी ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता का भान करा दिया और अपने चारों ओर बनाए गए मिथ्या भ्रमजाल को एक झटके में तोड़ दिया। जिस तरह से भाजपा की टिकट कटते ही भारती सैनी और उनके पति संजय सैनी को बिरादरी की याद आई और आनन-फानन में बिरादरी की बैठक बुला कर प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया गया, ये सब संजय सैनी का सत्ता हासिल करने का *प्लान बी* था। दोनो पति पत्नी  और उनके लग्गु भग्गुओ को यकीन था कि बैठक में उनके नाम पर ही मोहर लगेगी। यह दीगर बात है कि अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान अपनी ही बिरादरी के ठेकेदारों के कमीशन का एक परसेंट भी इन्होंने नही छोड़ा।

लेकिन अपने शांत स्वभाव के विपरीत पार्टी छोड़ने और निर्दलीय चुनाव लड़ने का बोल्ड निर्णय लेकर कमलेश सैनी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। हालांकि हर मंच पर अपनी पत्नी को कमलेश सैनी के बराबर बैठाकर संजय सैनी ने यह संदेश देने की कोशिश भी की कि कमलेश सैनी उसकी प्रत्याशी हैं और वो किंगमेकर है। इन तीनों को वहम था की कमलेश सैनी इनके बगैर एक कदम भी आगे नही बढ़ा सकती हैं। बात हाथ से निकलती देख  इसी मौके पर खुद को समाज का रहनुमा समझने वाले एक पत्रकार महोदय और उनके जोड़ीदार जजपा नेता भी सीन में एंट्री मार गए। 

चुनाव मे छत्तीस बिरादरी के भरपूर समर्थन से कमलेश सैनी विजयी हुई, इस दौरान  इस जुण्डली की कई कारगुजारियां उनके सामने आई। जिसकी परिणति फलस्वरूप यह हुआ कि चुनाव जीतने के बाद पहली चंडीगढ़ यात्रा में उन्होंने इस किंगमेकर दम्पत्ति के साथ-साथ जजपा नेता और पत्रकार महोदय को भनख तक नही लगने दी। जिससे इन्हें भारी मिर्ची लगी और यह अंदर खाने तिलमिला उठे, लेकिन खुलेआम विरोध नही दर्शा सके क्योंकि अब कमलेश सैनी चेयरपर्सन हैं जिसे 36 बिरादरी की जनता ने भारी बहुमत से विजयी बनाया।इन लोगों की नगर परिषद में एंट्री का मुख्य द्वार वही हैं। सुनने में आ रहा है कि अब संजय सैनी नगर परिषद अधिकारियों को रौब मार रहे हैं कि उनके अनुसार काम करें नही तो वो नगर परिषद में अपने पसंदीदा अधिकारी ले जाएगा । इसकी सूचना भी कमलेश सैनी के थिंक टैंक को मिल चुकी है। 

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार कमलेश सैनी लम्बी पारी खेलने की इच्छुक हैं और वो अपने दामन पर इस कालिख के छींटे नही लगवाना चाहती हैं। चुनाव प्रचार में उन्होंने कहा कि पिछले कार्यकाल में भ्रष्टाचार हुआ है और वो बिना पर्ची और खर्ची के काम करेंगी। इसी लिए अब उन्होंने इस तिकड़ी से पीछा छुड़ाने का निर्णय लिया है जिसकी बानगी चंडीगढ़ यात्रा में देखने को मिली।

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