भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। मानसून सिर पर आ गया। हर वर्ष की तरह इस बार भी गुरुग्राम में जलभराव का अंदेशा या यूं कहें भरोसा है जनता, प्रशासन और सरकार को।

पिछले काफी समय से जीएमडीए अधिकारी और विधायक सुधीर सिंगला यह दावा कर रहे हैं कि इस बार गुरुग्राम में जलभराव नहीं होगा परंतु आज भी प्रशासन की कार्यशैली उन दावों पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है।

आज उपायुक्त ने 16 सदस्यीय टीम नियुक्त की है जलभराव से निपटने के लिए, जिसका इंचार्ज एडीसी विश्राम कुमार मीणा को बनाया गया है। इसी प्रकार गुरुग्राम पुलिस की ओर से भी जलभराव के समय यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं, जिसके लिए 1100 यातायात पुलिस के जवान नियुक्त किए गए हैं और 2 क्यूआरटी टीमों का गठन किया गया है, जो पुलिस उपायुक्त के आदेशों का पालन करेंगे। अत: यह माना जा सकता है कि पिछले वर्षों से कुछ कम गुरुग्राम की जनता को परेशान होना पड़ेगा।

निगम की कार्यशैली पर उठे सवाल :

सरकार द्वारा यह इंतजाम अतिरिक्त उपायुक्त के निर्देशन में करने से यह तो जाहिर हो ही गया कि सरकार और प्रशासन को निगम और जीएमडीए की कार्यशैली पर भरोसा नहीं है, क्योंकि बरसात से निपटने के इंतजाम सब इन्हीं दोनों पर निर्भर करते हैं।

निगम ने गुरुग्राम की जनता का टैक्स के रूप में अर्जित करोड़ों रूपया इस कार्य के लिए खर्च किया है। प्रश्न यह उठता है कि क्या वह पैसा उचित तरीके से खर्च किया गया? यदि ऐसा हो रहा है तो उसके परिणाम क्यों नहीं निकल रहे? इस बात को अब तक तो गुरुग्राम की जनता ही कह रही थी लेकिन लगता है कि अब इस बात को उपायुक्त और सरकार ने भी मान लिया है। तभी तो बरसात से निपटने के इंतजाम करने के कार्य उपायुक्त द्वारा गठित वरिष्ठ अधिकारियों की टीम को दिए गए हैं। 

लापरवाह और भ्रष्ट लोगों को मिलेगी सजा?

अब बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब सरकार को यह लगने लगा है कि अधिकारियों द्वारा कार्य ईमानदारी और ठीक प्रकार से नहीं किए गए तो ऐसी स्थिति में अधिकारियों, मेयर और पार्षदों से भी यह पूछा जाएगा कि जो इतना पैसा खर्च किया, उसके परिणाम क्यों नहीं निकल रहे? 

कल निगम में हुई मीटिंग में पार्षदों ने मांग रखी कि बरसात से पहले उनके क्षेत्र में पानी निकासी के इंतजाम कराए जाएं। यह अपने आप निगम के अधिकारियों और निगम मेयर की लापरवाही या कार्यकुशलता में कमी के प्रमाण हैं, क्योंकि यह कार्य प्री-मानसून की बरसात से पहले हो जाने चाहिएं लेकिन उनकी मांग सिर पर खड़े मानसून के समय हो रही है तो ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि जब सरकार के संज्ञान में यह बात आ ही गई है तो लापरवाह या अक्षम अधिकारियों पर कार्यवाही भी होगी?

वैसे जनता में एक आम धारणा बनी हुई है कि निगम में टेंडर दे दिए जाते हैं, काम होते नहीं और पेमेंट कर दी जाती हैं। अर्थात कागजों की खानापूर्ति की जाती है।

जनता में धारणा यह भी है कि यदि मेयर टीम उचित तरीके से कार्य करे तो अधिकारियों की मजाल नहीं कि वे कार्य में लापरवाही बरतें लेकिन एक कहावत याद आती है कि बाप बड़ा न भैया-सबसे बड़ा रूपैया। कहीं यही कहावत चरितार्थ तो नहीं हो रही? 

अगला इन बातों को बल मिलता है निगम की कुछ पुरानी चर्चा में आई घटनाओं से कि करोड़ों की पेमेंट बिना काम किए हो जाती है। उसका ज्ञान विधायक को भी होता है। जनता को बताया जाता है कि पैसा वापिस ले लिया गया है और जिसने वह पैसा दिया और जिसने लिया, उन पर कभी कार्यवाही करने की बात सुनीं? मेयर टीम जो जनता के लिए चुनी गई है, उसने क्या कोई कार्यवाही की? 

इसी प्रकार एक व्यक्ति पार्षदों के दस्तखत कर पेमेंट ले लेता है, उस पर तत्कालीन निकाय मंत्री अनिल विज एफआइआर दर्ज कराने के आदेश देकर जाते हैं और वह फिर भी निगम में कार्यरत है। क्या मेयर टीम को यह दिखाई नहीं देता? क्या एफआइआर मेयर टीम को उन पार्षदों की ओर से नहीं करानी चाहिए थी? 

इसी प्रकार निगम की बैठक में ही एक पार्षद द्वारा मांग रखी गई थी कि हमारे कार्यकाल में जो-जो काम जितने-जितने पैसे के हमारे क्षेत्र में कराए गए हैं, उनकी लिस्ट दीजिए और निगम में वह पास भी हुई थी लेकिन वह लिस्ट निगम की ओर से नहीं दी गई है।

इसी प्रकार पिछले दिनों निगम के चीफ इंजीनियर को कुर्सी उठाकर मांगने की चेष्ट करने की बात भी सामने आई थी। निगम बैठक में भी अपशब्द बोलने की बात सामने आई थी, उन बातों पर बवाल भी खूब मचा था लेकिन वे सब बातें दब गईं। इसके पीछे क्या कारण? क्या इसकी पुलिस रिपोर्ट नहीं होनी चाहिए थी? 

इसी प्रकार की अनेक बातें निगम के बारे में हैं और शायद अब उनकी जांच का समय आ गया है। अब देखना यह होगा कि वह जांच अधिकारी भी कहीं वैसे ही काम करेगा, जैसे निगम में नियुक्त विजिलेंस अधिकारी कर रहा है या वह दूध का दूध और पानी का पानी करेगा। हमें आशा करनी चाहिए कि दूध का दूध और पानी का पानी होगा।

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