-कमलेश भारतीय

वैसे धूमिल के चर्चित कविता संग्रह का नाम है -संसद से सड़क तक लेकिन मुझे कहना पड़ रहा है -विधानसभा से सड़क तक । आखिर यह .. की विधानसभा का मामला जो ठहरा । कुछ दिनों से लगातार महाराष्ट्र सरकार का किश्त दर किश्त गिरना जारी है पर मजेदार बात कि इसमें भाजपा का कोई हाथ नहीं और न ही कांग्रेस का कोई हाथ है , न ही एनसीपी का । यह तो सिर्फ और सिर्फ शुद्ध शिवसेना की आपसी लड़ाई है और हम भी कितने भोले और मासूम हैं कि इस बयान पर शत प्रतिशत सहमत हैं । भाजपा तो खुद कर ही नहीं रही कुछ भी लेकिन भाजपा शासित राज्यों में इन विधायकों की मेहमनबाजी कौन कर रहा है ? किसे शिवसेना के इन बागी विधायकों पर इतना प्यार उमड़ता जा रहा है ? क्यों ये इतने लाडले हो गये अचानक से ? वाह भाजपा पर तो यही शेर याद आ रहा है :

इस मासूमियत पर कौन न मर जाये ऐ खुदा
लड़ते भी हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ,,,,

एकनाथ शिंदे गुप ने जैसे ही खुद को शिवसेना बाल ठाकरे घोषित किया , वैसे ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जवाब दिया कि अपने बाप के नाम से राजनीति करो । मेरे बाप के नाम से क्यों ? दूसरी ओर चचेरे भाई राज ठाकरे भी भाई के बचाव में आए और आह्वान किया कि इन बागियों को सजा मिलनी चाहिए और लो फिर इन विधायकों के कार्यालयों की तोड़फोड़ शुरू हो गयी । एकनाथ शिंदे को कहा गया कि आप एकनाथ नहीं रह गये , अब ‘एक दास’ बन गये हो । एकनाथ का गुवाहाटी में बैठे सिहासन डोला और वे भागे बड़ौदा गृहमंत्री अमित शाह से मिलने । क्या एकनाथ अपनी ही पार्टी शिवसेना के चरित्र को इतनी जल्दी भूल गये ? शिवसेना से शिवसेना बाल ठाकरे कैसे बनने देंगे ? यह हरियाणा नहीं है जहां सबका आपस में खून का रिश्ता है , इसलिए जजपा और इनेलो चल सकती हैं और चल रही हैं । एकनाथ शिंदे जी आपका तो बाल ठाकरे से कोई खून का रिश्ता नहीं । जिस राज ठाकरे से रिश्ता है , उन्होंने भी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना गठित की न कि बाल ठाकरे का नाम जोड़ा । वैसे हिंसा का रास्ता कोई बेहतर रास्ता कभी नहीं रहा । महात्मा गांधी का दिखाया अहिंसा और सत्याग्रह का रास्ता ही सबसे अच्छा है । यदि इन बागी विधायकों के कार्यालयों की तोड़फोड़ करने की बजाय इनके घरों के आगे धरने दिये जाते या घेराव किये जाते तो ज्यादा शांतिपूर्ण रहता ।

विधानसभा की लड़ाई इस तरह सड़कों पर ले आना कोई बहुत अच्छा उदाहरण नहीं । हमें सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग ही अपनाना चाहिए । जहां तक आरोप है कि उद्धव ने हिंदुत्व का मार्ग छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस से साथ मिले लिया तो उद्धव जवाब में कहते हैं कि हमने तब भाजपा का साथ दिया जब इसे अछूत पार्टी माना जाता था और हम बिग ब्रदर की भूमिका में थे लेकिन जब हमने आधा राज मांगा तब हमें ठेंगा दिखा दिया गया । हमने हिंदुत्व का साथ कभी नहीं छोड़ा । यह शिवसेना पर कब्जा करने और अपनी विरासत बचाने की लड़ाई ज्यादा बनती जा रही है न कि सिर्फ सत्ता परिवर्तन की लड़ाई रह गयी है और यह और भी ज्यादा संघर्षपूर्ण और रोमांचक होती जा रही है । सिर्फ सत्ता की लड़ाई होती तो अब तक देवेंद्र फडणबीस शपथ ले चुके होते । कहीं और जगह पे निशाना है । क्या बाल ठाकरे के नाम से बागी सफल हो पायेंगे ? पर यह हिंसा का मार्ग निंदनीय है ।
देखो ओ दीवानो तुम यह काम न करो
राम या गांधी का नाम बदनाम न करो ,,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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