भारत सारथी, ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम – हरियाणा राज्यसभा चुनाव में बीजेपी-जेजेपी समर्थित कार्तिकेय शर्मा की एंट्री के बाद प्रदेश में वोट के लिए विधायकों की खरीद फरोख्त का खेल भी शुरू हो गया है। इनेलो विधायक अभय चौटाला तो खुलकर आरोप लगा रहे हैं कि जेजेपी विधायक बिक चुके हैं और वो अच्छी खासी कीमत लेकर कार्तिकेय शर्मा को वोट करेंगे। लेकिन ऐसा बयान देकर अभय बुरी तरह फंस गए हैं। उनके लिए इधर कुआं, उधर खाई की स्थिति बन गई है।

कांग्रेस पूछ रही है कि क्या अभय उसी उम्मीदवार को वोट देंगे जो वोटों की खरीद फरोख्त कर रहे हैं? क्या अभय उसी जेजेपी समर्थित उम्मीदवार को वोट देंगे जिसपर इनेलो को तोड़ने के आरोप हैं? क्या अभय उसी बीजेपी समर्थित उम्मीदवार को वोट देंगे, जिसके विरोध में वो चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं?

यहीं सवाल बलराज कुंडू और सरकार से चल रहे नाराज विधायकों से पूछे जा रहे हैं कि क्या वो चुनाव में उस सरकार का साथ देंगे, जिसके विरोध में वो चुनाव लड़कर जीते हैं। अगर कोई विधायक बीजेपी जेजेपी समर्थित उम्मीदवार को वोट करता है तो क्यों ना उसे सरकार का एजेंट कहा जाए? क्यों ना उसके सरकार विरोधी बयानों को महज एक ड्रामा कहा जाए?

इन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्यसभा जैसे प्रतिष्ठित चुनाव में धनबल के आधार पर फैसला होगा? क्या पैसों के लिए अपना वोट बेचने वाले विधायक चुनाव में निर्णायक साबित होंगे?

इस बीच कई विधायक, खासकर सत्ताधारी खरीद-फरोख़्त व क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं का इजहार बड़ी खुशी के साथ कर रहे हैं। लोकतंत्र के साथ सरेआम खिलवाड़ की संभावनाओं का यह खुला समर्थन बताता है कि यह राजनीतिक नैतिकता के पतन का दौर है।

हरेक राज्यसभा चुनाव के मौके पर विधायकों को छुपाने के लिए अन्य राज्य में लेकर जाना सामान्य घटना हो गई है। इसपर माथा पटककर चिंता करने की बजाए, राजनीतिक गलियारों में ठहाके लगाए जा रहे हैं। यह अपने आप में देश के लिए चिंता का सबब है।

बहरहाल राज्यसभा चुनाव के लिए शह और मात का खेल जारी है। इसी को लेकर कांग्रेस और बीजेपी-जेजेपी गठबंधन अपने अपने खेमे को मजबूत करने में लगे हैं। गठबंधन को उम्मीद है कि वह कार्तिकेय शर्मा को जिताने के लिए जरूरी आंकड़ा जुटा लेगा। जबकि यह तभी संभव हो पाएगा जब अभय चौटाला, बलराज कुंडू जैसे विधायक और कम से कम कांग्रेस के 2 विधायक कार्तिकेय शर्मा को वोट दें।

इन सबके बीच कुलदीप बिश्नोई की कांग्रेस विरोधी बयानबाजी, कुमारी सेलजा व कई कांग्रेसी दिग्गज नेताओं की खामोशी ने बीजेपी जेजेपी को हराने और अजय माकन को जिताने का सारा दारोमदार भूपेंद्र हुड्डा पर छोड़ दिया है। ऐसा लगता है मानो तमाम विपक्ष ने गठबंधन को हराने की लड़ाई हुड्डा को आउटसोर्स कर दी है। विधायकों की खरीद फरोख्त, धनबल के इस्तेमाल और बीजेपी जेजेपी से मिलीभगत पर फिक्र आम जनता के बीच तो है लेकिन राजनीतिक गलियारों में नहीं।

इसलिए इस चुनाव में जनता की नजर सिर्फ राजनीतिक हार जीत पर नहीं बल्कि नैतिक हार जीत पर भी होगी। ऐसे में अगर विरोधी सरकार के पक्ष में गए तो वो भविष्य में सरकार विरोधी राजनीति नहीं कर पाएंगे। लेकिन अगर निर्दलीय सरकार के खिलाफ गए तो आने वाला समय गठबंधन के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है।

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