भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। स्थानीय निकाय की चुनाव की घोषणा के बाद से ही हरियाणा के राजनैतिक माहौल में गरमाहट आ गई है। हालांकि बहुत समय से चुनाव की सभी प्रतीक्षा कर रहे थे परंतु तिथि घोषित न होने के कारण सभी तैयारियों में व्यस्त नहीं थे, जबकि भाजपा और जजपा तैयारियों में लगे थे। वर्तमान में कांग्रेस तो मुख्य विपक्षी दल है ही लेकिन आप भी अपने आपको दौड़ में मान रही है। भाजपा और जजपा : निकाय चुनावों के लिए लगातार भाजपा संगठन की और सत्ता पक्ष की मीटिंगें होती रही हैं। पर्यवेक्षक भी बना दिए गए हैं। इसी प्रकार जजपा की भी मीटिंगें होती रही हैं और पर्यवेक्षक बना दिए गए हैं लेकिन मजेदारी देखिए, यह अभी पता भी नहीं कि इनका गठबंधन होगा या नहीं होगा, होगा तो किन शर्तों पर होगा, चर्चाएं चलती रहती हैं। हां, यह अवश्य है कि दोनों तरफ से दावा यह है कि चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े जाएंगे। बड़ा प्रश्न यह खड़ा होता है कि भाजपा सदा यह कहती रही है कि वह शहरों की पार्टी है और जाहिर बात है निकाय चुनाव शहर में ही होंगे। ऐसे में यदि वह जजपा से समझौता करती है तो जाहिर ही बात है कि जजपा की ओर से एक चौथाई सीटों की मांग की जाएगी। चर्चाकारों को लगता नहीं कि भाजपा जजपा को 25 प्रतिशत सीटों पर चुनाव लडऩे का समझौता करेगी और इस प्रकार का माहौल अपने कार्यकर्ताओं में बना रखा है, उससे जजपा भी यदि अपने कार्यकर्ताओं को टिकट न दिला पाई तो साख खोती जजपा की स्थिति नाजुक हो सकती है। तात्पर्य यह कि गठबंधन भी नाजुक स्थिति में पहुंच सकता है। भाजपा सत्तारूढ़ पार्टी है और इनके नेता पहले डबल इंजन की बात करने लगे थे, अब ट्रिपल इंजन की बात करने लगे हैं कि केंद्र में भी हमारी सरकार, प्रदेश हमारी सरकार और स्थानीय निकाय में भी हमारी सरकार। पार्टी का और उसके साथ लगे हुए कार्यकर्ताओं का सोचना यह है कि भाजपा संगठन बहुत बड़ा है और इसकी टिकट मिलते ही विजय निश्चित हो जाएगी। इसी कारण एक-एक जगह से उम्मीदवारों की संख्या बहुत है और सबके अपने-अपने आका हैं। ऐसी स्थिति में टिकट इच्छुक लोगों ने जनता छोड़ अपने आकाओं की चिलम भरनी तेज कर दी है। यूं कहें कि वर्तमान में भाजपा के कार्यकर्ताओं का काम ही नेताओं की चिलम भरना है तो शायद अनुचित नहीं होगा। ऐसी स्थिति जजपा में भी है और वहां कुछ निश्चित न होने से सभी कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में हैं। कांग्रेस : कांग्रेस की बात करें तो यहां भी कांग्रेस का कहना है कि चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस में संगठन बनाने में अभी दो माह का समय लगता बताया जा रहा है। अत: जो चुनाव लडऩा चाहते हैं उन्हें यही नहीं पता कि हम किससे बात करें, जो हमें टिकट मिलेंगे। तात्पर्य यह कि समय बहुत कम है, ऐसे में यहां भी लगता नहीं कि टिकट का बंटवारा सही तरीके से हो पाएगा। आप : आप पार्टी पंजाब जीत के बाद एकदम गुब्बारे की तरह फूल गई और ख्वाबों में पंजाब की तरह हरियाणा में भी अपनी सरकार बना ली। चुनाव चिन्ह पर निकाय चुनाव लडऩे का दावा इनका भी है और इनमें समस्या वही है कि टिकट किससे मांगे, कौन देगा? और उससे बड़ी बात कि आप पार्टी में स्वच्छ छवि का नारा भी आरंभ से लगाया जा रहा है और अब आप पार्टी में ही जो पार्षद का चुनाव लडऩे के लिए टिकट की चाह में शामिल हुए थे, वे आपस में ही एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी समझ रहे हैं और सूचना मिल रही हैं कि आप में शामिल हुए कार्यकर्ताओं की नहीं, अधिकारियों पर भी गंभीर मामलों में मामले दर्ज हुए हैं। स्थिति यहां भी ऐसी ही लगती है। और फिर 29 तारीख तक ये लोग रैली की तैयारी कर रहे हैं। पहले तो रैली के लिए कह रहे थे कि अपार जनसमूह होगा, अब इन्हीं की तरफ से कहा जा रहा है कि वहां कलाकारों के कार्यक्रम भी होंगे, दूध-लस्सी भी निशुल्क मिलेगी और कुछ लोग तो कह रहे हैं कि कुरुक्षेत्र में सोमवार को अपने खर्चे पर स्नान का पुण्य लाभ भी कराएंगे। तात्पर्य यह है कि अब पार्टी को खुद ही संदेह होने लगा है कि संख्या आशानुरूप नहीं रहने वाली। ये कार्यकर्ता 29 को रैली के चक्कर में लगे हैं और 30 को नामांकन हैं, करें तो क्या करें? इस प्रकार नजर डालने से पता लगता है कि हर पार्टी में टिकट मिलने के साथ निर्दलियों की संख्या बड़ी होगी। भाजपा का यह भ्रम शायद टूटने वाला है कि उनकी पार्टी में कोई अनुशासन भंग नहीं करता। कुछ राजनैतिक सर्वेक्षकों को मानना है कि जितने उम्मीदवार खड़े होंगे, उनसे कहीं अधिक भाजपा से बगावत कर निर्दलीय खड़े होंगे।जजपा की बात करें तो उनके कार्यकर्ताओं को अभी मन में यह भरोसा ही नहीं है कि उन्हें स्थानीय निकाय में सीट मिलेंगी और मिलेंगी तो कहां की। अत: चुनाव लडऩा चाहते हैं, वह निर्दलीय लडऩे के लिए तैयार हैं। कांग्रेस की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। पार्टी शायद किसी को टिकट दे लेकिन जिन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने सोच रखा है कि उन्हें निकाय चुनाव लडऩा है, वे अपनी किस्मत निर्दलीय लड़कर जरूर आजमाएंगे। आप का क्या कहें, जो अभी शामिल हुए हैं टिकट के लिए, उन्हें टिकट नहीं मिली तो वे कहेंगे कि हम शामिल ही नहीं हुए। कुल मिलाकर नजर यह आ रहा है कि इन चुनावों में पार्टी से अधिक महत्व व्यक्ति का रहने वाला है। सबसे दिलचस्प देखना यह रहेगा कि वर्तमान में भाजपा से जनता रूष्ट दिखाई देती है। हर जगह भ्र्रष्टाचार की कहानियां उजागर हो रही हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ के प्रोग्राम एक दिन में सौ से संपर्क अभियान भाजपाई अपने ही कार्यकर्ताओं से मिलकर पूरा कर रहे हैं, क्योंकि जनता में जाने की हिम्मत नहीं है। ऐसे में यह कहना कि यदि भाजपा के घोषित उम्मीदवार नहीं जीते तो वह भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ेंगे, उनका कहना है कि भाजपा में एक बार तो 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया जाता है लेकिन यदि हम चुनाव जीत जाएंगे तो वह 6 हफ्ते भी नहीं लगाएंगे फिर से पार्टी का सदस्य बनाने में। यही पार्टी की पुरानी परंपरा है। इन चुनावों के परिणाम सभी दलों को यह बता देंगे कि जनता उन्हें किस रूप में देखती है। हमारे अपने विचार से न तो जनता भाजपा को पसंद कर रही। ऐसा अमूमन होता भी है कि सत्ता पक्ष से जनता नाराज होती है परंतु विपक्ष से उससे भी ज्यादा नाराज दिखाई देती है, क्योंकि कांग्रेसी जनता की परेशानियों में उनके साथ खड़े नजर नहीं आए और आप तो अपनी लड़ाइयों में, संगठन बनाने में तथा भाजपा की तरह आत्ममुग्ध है। क्या कहें, समय बताएगा सभी पार्टियों की कि वे कहां खड़ी हैं। Post navigation 32वीं राष्ट्रीय नौकायान प्रतियोगिता व 10वीं ड्रैगन बोट रेस चैंपियनशिप के विजेताओं का गुरुग्राम पहुँचने पर होगा भव्य स्वागत सम्मान समारोह जलभराव से संबंधित मुद्दों पर निगमायुक्त ने की अधिकारियों के साथ बैठक