भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम से मुख्यमंत्री का प्यार किसी से छिपा तो है नहीं। इसी का प्रमाण है कि वे बारंबार गुरुग्राम को संभालने आते ही रहते हैं। आज भी वह गुरुग्राम में ही दो कार्यक्रमों में थे। एक में तो वह गुरुग्राम को आइकॉनिक सिटी बना रहे थे और दूसरी में गुरुग्राम की जनता की भावनानुरूप मैट्रो का समाधान कर रहे थे। 

सौभाग्य से वह कल भी गुरुग्राम में ही हैं। मारूति का प्लांट जो और सोनीपत में लगना है, के बारे में एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करेंगे। गुरुग्राम में रहते हैं तो सभी शीर्ष अधिकारी उनकी अगुवाई में ही रहते हैं या यह सोचकर रहते हैं कि कब मुख्यमंत्री का बुलावा आ जाए। तात्पर्य यह कि भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना यह है कि मुख्यमंत्री विधायकों से मिलना तो भूल सकते हैं परंतु अधिकारियों पर पैनी नजर रखते हैं और उनसे मिलकर ही जाते हैं।

हमारा आज का विषय निगम का भ्रष्टाचार है। पिछली सामान्य बैठक में भी अधिकारियों और पार्षदों के बीच अशोभनीय भाषा का प्रयोग हुआ था। उसके पश्चात चीफ इंजीनियर दस दिन की छुट्टी चले गए थे। छुट्टी से आने के बाद मंगलवार को निगम में ही चीफ इंजीनियर, पार्षद और ठेकेदारों में अशोभनीय भाषा ही नहीं कुर्सी तक उठाकर फैंकने की नौबत आई, जिसके परिणामस्वरूप निगम का वातावरण बहुत बिगड़ा हुआ है।

एक ओर तो इंजीनियर विंग के अधिकारी एकत्र होकर मीटिंग कर रहे हैं कि हम हड़ताल पर चले जाएंगे, दूसरी ओर सभी पार्षद भी मिलकर मीटिंग कर रहे हैं और ठेकेदार जो निगम के कार्य को करते हैं, वह अलग मीटिंगें कर रहे हैं। प्रश्न यह है कि मुख्यमंत्री आज गुरुग्राम में ही हैं। क्या उनसे यह बात छिपी रह सकी होंगी? और यदि कोई कहता है कि छिपी रही हैं तो वह अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री की योग्यता पर प्रश्न खड़े कर रहा है। 

यह तो आज की बात हुई। इससे पहले भी गुरुग्राम निगम अपने भ्रष्टाचार के लिए खूब चर्चा में रहता है। कभी कोई अस्थाई जे.ई. काम छोड़कर ठेकेदार बन जाता है, कभी करोड़ों की पेमेंट बिना काम हुए कर दी जाती है। कामों के सैंपल लगातार फेल आते रहते हैं। अर्थात सवाल उठते ही रहते हैं।

यहां एक एक्सइएन पर पार्षदों के फर्जी दस्तखत करने के आरोप लगे थे। तत्कालीन निकाय मंत्री अनिल विज ने उन्हें सस्पेंड किया था। उनके कराए कार्यों की जांच के भी आदेश दिए गए थे। पता नहीं क्या हुआ लेकिन वह वर्तमान में अधिक क्षेत्र के एक्सइएन की तरह निगम में कार्य कर रहे हैं। यद्यपि विधायक सुधीर सिंगला से जब इस बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि मैंने भी निगम कमिश्नर से पत्र डालकर यह सवाल पूछा है। इसी प्रकार के अनेक मसले खड़े हैं।

वास्तव में इन सबके पीछे सुविधा शुल्क का मामला नजर आता है। कोई अपने नाम से तो बात नहीं कहता, क्योंकि हमाम में सब नंगे हैं परंतु यह चर्चा जरूर सुनी जाती है कि जब टेंडर पास होता है तो ठेकेदार से सुविधा शुल्क लिया जाता है। फिर जब वह कार्य करने जाता है तो पार्षद भी खुश करना जरूरी होता है। उसके बाद जेई, एसडीओ, एक्सइएन और एससी या चीफ इंजीनियर से भी वास्ता पड़ता है। अब इसमें एक तरह से देखें तो वह कहावत याद आती है कि दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली है। तो अब इसकी शिकायत कौन करे और जांच कौन करें? जहां जांच की बात आती है तो कई जांच ऐसी बैठती हैं, जो संलिप्त होते हैं वही जांच कर लेते हैं। इन परिस्थितियों में जैसे परिणाम निकलने चाहिए, वैसे ही निकल रहे हैं।

एक-एक आदमी कई-कई फर्में बना लेता है और नई फर्म, नए सांझियों के साथ काम ले लेता है। अब यह समझ में नहीं आया कि कोई भी अलग-अलग फर्म बनाकर अलग-अलग फर्म से काम क्यों लेता? क्योंकि आमतौर से तो यह माना जाता है कि जो जितना पुराना होता है, उसका उतना ही विश्वास बढ़ता है। तो यहां यही ध्यान आता है कि वह विश्वास फर्म का बनाना ही नहीं चाहते होंगे। खैर जो भी है, समझदार समझ गए होंगे बाकी यदि मुख्यमंत्री जांच कराएंगे तो सब सामने आ ही जाएगा।

यह तो वर्तमान बात रही लेकिन अब अतिक्रमण की ही बात देखो। सदर बाजार में अतिक्रमण हटाने की मुहिम चल रही है, जबकि बाजार के प्रधान बबलू गुप्ता कहते हैं कि यह मुहिम तो अच्छी है लेकिन सदर बाजार तक ही क्यों? डाकखाना चौक से बस अड्डे तक जो बेशुमार पटरी वाले बैठे हैं और निगम वाले उनसे उगाही करते हैं, उन्हें क्यों नहीं उठाते? क्या वह सड़क नहीं है? वास्तव में तो बाजार में तो बसें नहीं चलतीं, पैदल व्यक्ति होता है। यहां तो बसें भी चलती हैं। दुर्घटना हुई तो क्या जिम्मेदार निगम होगा?

इसी प्रकार पर्यावरण संरक्षण विभाग के प्रदेश प्रमुख नवीन गोयल बार-बार अपनी उपलब्धियों का बखान करते हैं। आज वह सैक्टर-4 में थे तो मैं पूछना चाहूंगा कि उन्हें पिछले साल भी दिखाया था कि ग्रीन बैल्ट पर किस प्रकार कब्जा है, पार्किंग बनी है, जानवर बंधे हैं तो यहां कैसे पर्यावरण शुद्ध होगा? क्या मुख्यमंत्री एक चक्कर वहां भी लगाकर देखेंगे?

सीसीए स्कूल ने तो ग्रीन बैल्ट में पार्किंग भी बना रखी है, जिसकी सूचना निगम की मेयर और निगम अधिकारियों को भी है। कई साल से बनी हुई है यह। दबे शब्दों में अधिकारी कहते हैं कि मुख्यमंत्री का आशीर्वाद है इन पर। सवाल वही कि निगम बना भ्रष्टाचार काल-मनोहर लाल की नाक का सवाल।

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