रास्ते राजस्व विभाग, पटवारी के खाते में कॉलोनाईजरों के नाम ही दर्ज.
कॉलोनाईजरों के द्वारा काटी गई कालोनियों में ऐसे ही मामले सामने आये.
सरकार के द्वारा अपू्रव सभी कालोनियों के रास्ते राजस्व रिकार्ड में दर्ज हो.
प्लाट धारक पटवारी के रिकार्ड में कॉलोनी के कुल रकबे का ही हिस्सेदार.
स्थानीय निकाय के रिकाार्ड व अधिकार क्षेेत्र से बाहर रास्ते पक्के बनाये

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। 
हरियाणा सरकार ने भले ही प्रदेश में काटी जा रही अवैध कॉलोनियों को 50 से 70 प्रतिशत मकान बनने पर पास करके अपू्रवल दे दी है। लेकिन इन कालोनियों में जमीन के टुकड़े की खरीद-फरेख्त, आवागमन के रास्ते सहित क्रेता-विक्रेता के मालिकाना हक पर गहराई के साथ जांच की जाये तो, इन्हीं कालोनियों में जो कि पालिका, परिषद, निगम के दायरे में शामिल है, बहुत ही पेचिदगी भरे गोलमाल की आाशंका से इकार नही किया जा सकता है।

गौर तलब है कि अधिकांश कालोनियां कृषि योग्य भूमि पर ही काटने या विकसित करने का सिलसिला लबे समय से चला आ रहा है। हालांकि पारदर्शिता के लिए जमीन का रकबा सहित एनओसी जैसे नियम-कानून सरकार के द्वारा बनाये और लागू किये गए है। इस प्रकार की सरकार द्वारा अपू्रव कालोनियों में सम्बधित पालिका, नगर परिषद, नगर निगम , बिजली विभाग , जनस्वास्थ्य एंव अभियांत्रीकी विभाग द्वारा पक्की गलिया, बिजली, पेयजल , सिवरेज, स्ट्रीट लाईट की मूलभूत सुविधा मुहैया भी करा दी जाती है ।

कथित रूप से चौकाने वाली और हैरान करने वाली बात है यह सामने आई है कि , अभी तक ऐेसी तमाम कॉलोनियों के रास्ते राजस्व विभाग अथवा पटवारी के खाते में कॉलोनाईजरों के नाम पर ही दर्ज है, केवल जमीन का रकबा ही खरीददार के नाम पर दर्ज किया गया होता है। इस मामले में जानकारों के मुताबिक  सरकार को चाहिए कि अधिकृत की गई कॉलोनियो के रास्ते की जमीन अधिग्रहण करने की कोई योजना कैबिनेट में तैयार करके कॉलोनियों में रह रहे कॉलोनीवासियो को राहत प्रदान करे। ताकि कॉलोनाईजर राजस्व रिकार्ड में उनके नाम पर दर्ज रास्तों की जमीन को ना बेचने की योेजना या फिर अपना ही मालिकाना हक न जताने पाये ।

नीरू शर्मा पूर्व पार्षद,  जयवीर सिहं जांगु, सोनू रोहिल्ला, महाबीर सिंह जाटव आदि का कहना है कि सरकार ने समय समय पर जनहितार्थ अहम फैंसला लेकर अवैध कॉलोनियो को पास करने को लेकर ऐतिहासिक कदम उठाये है । लेकिन जिन कॉलोनियो को सरकार द्वारा पास किया गया है , अभी तक उनके काटे गए रास्ते कॉलोनाईजरों के नाम पर दर्ज है । जबकि फर्रुखनगर में करीब 5 से 20 साल पुरानी कॉलोनिया जो सरकार द्वारा पास की गई है । उनके रास्तो का मालिकाना हक नगरपालिका के पास नही होने के बाद भी रास्ते पकके कर दिए गए है । वही बिजली विभाग ने खम्बे , लाईट की व्यवस्था , जनस्वास्थ्य एंव अभियांत्रीकी विभाग ने सिवरेज , पेयजल व्यवस्था करा दी है । इतनी सुविधा मिलने के बाद भी अधिकृत कॉलोनीवासी अपने आप को महफूज नही समझ रहे । उन्हे डर सताने लगा है कि कही कॉलोनाईजर लोभवश उन रास्तो को बेच ना दे।

उन्होने बताया कि राजस्व रिकार्ड में काटी गई कॉलोनी का नक्शा नही होता है । रिकार्ड में तो मात्र  कनाल, मरला, सरसाई में प्लाटो की खरीदी गई जमीन दर्शाई जाती है । प्लाट धारक पटवारी के रिकार्ड में मात्र काटी गई कॉलोनी के कुल रकबे का हिस्सेदार है। जबकि कॉलोनी के रास्ते के रूप में छोडी गई जमीन का कॉलोनाईजर ही रिकार्ड में मालिक दर्ज होता है। फर्रूखनगर में इस प्रकार के मामले कई सामने आ चुके है कि जब कॉलोनाईजरों ने रास्ते की जमीन ही बेच डाली है । बिना रास्ते के प्लाट धारक कोर्ट कचेहरी में धक्के खा रहे है । नीरू शर्मा ने सरकार से मांग करते हुए कहा है कि नगरपालिका फर्रूखनगर ही बल्कि प्रदेश के अन्य शहर , गांवों में पास कॉलोनियों के रास्तो को राजस्व रिकार्ड में नगर पालिका या पंचायत के नाम दर्ज कराया जाए।

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