भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। सोमवार रात्रि मानेसर में 20-25 एकड़ में बसी झुग्गियों और गोदामों में लगी आग में वर्तमान समाज के चेहरे को बेनकाब कर दिया। आग इतनी भयंकर थी कहा जा सकता है कि शायद गुरुग्राम में प्रथम बार इतनी भयंकर आग लगी। कई जिलों से और प्राइवेट संस्थाओं से भी फायर ब्रिगेड बुलानी पड़ी। प्रात: तक आग का मंजर जारी था। सैकड़ों झुग्गियां जलकर स्वाह हो गईं। कह सकते हैं कि हजारों आदमी बिल्कुल बेघर हो गए, जिनके पास न सिर पर छत बची, न पहनने के कपड़ों के अतिरिक्त और कुछ वस्तु। जो बचा वह है भूख से बिलखते बच्चे, महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग, जिनमें कुछ बीमार भी हैं, कुछ स्थितियों को देख विक्षिप्त स्थिति में आ गए हैं। कह सकते हैं कि बहुत ही मार्मिक दृश्य था।झुग्गियों के अतिरिक्त वहां कबाड़ के गोदाम भी थे। कह सकते हैं कि आर्थिक हानि की पूर्ति हो सकती है परंतु उन गोदामों में भी मजदूर या कर्मचारी अवश्य रहते होंगे, उनके भी घर और आसरा छिन गए। बड़ा प्रश्न है कि इन हजारों आदमियों को कौन सहारा देगा और कैसे ये अपने आपको संभाल पाएंगे। संवदेनाहीन राजनैतिक दलों का चेहरा सामने आया : पटौदी के विधायक सत्यप्रकाश जरावता ने प्रात: ही पटौदी-चंडीगढ़ रूट पर जानवाली बस को हरी झंडी दिखाई और स्वागत में मालाएं पहनी लेकिन मानेसर अग्निकांड के बारे में दो शब्द भी न बोले और चंडीगढ़ रवाना हो गए। अब देखें सत्तारूढ़ दल भाजपा की संवेदनाएं :भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने नवनिर्मित कार्यालय गुरूकमल में बैठना आरंभ किया। उनके स्वागत के लिए भाजपा के लगभग सभी अधिकारी पहुंचे। किसान मोर्चा ने तो फूलों की जगह सब्जियों से उनका स्वागत किया, जिससे वे किसान मोर्चे की महक दिखा सकें। वैसे आपको बता दें कि किसान मोर्चा इन मामलों में अग्रणी ही रहता है। मोदी के मन की बात चाहे उन्हें न पता हो कि क्या कह दी लेकिन उनके अखबारों में ब्यान जरूर छप जाते हैं कि उन्होंने इतने किसानों को मन की बात सुनवा दी। इस कार्यक्रम में उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को कुछ निर्देश भी दिए लेकिन इस अग्निकांड के बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं किया। राजनैतिक दल ही जब समाज के प्रति संवेदना नहीं रखेंगे तो क्या कहूं बस अनुमान लगाइए। भाजपा की ही बात नहीं आज कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी गुरुग्राम आए थे। उनके साथ उनके सांसद पुत्र और कई विधायक भी थे। मौका था पूर्व मंत्री राव धर्मपाल की पुण्यतिथि का। उस समय में भी वह भाजपा पर तंज कसने में तो नहीं चूके लेकिन मानेसर की घटना के बारे में कोई जिक्र नहीं किया। तात्पर्य यह कि यह भी केवल और केवल ऑफिसों की राजनीति करते हैं, जनता से कोई सरोकार नहीं। आम आदमी पार्टी की बात करें तो वह समाजसेवा, सेवाभाव के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर रही है। इसमें कई नेता पिछले दिनों सम्मिलित भी हुए हैं लेकिन आज की घटना पर न तो किसी का ब्यान आया और न कोई वहां मदद करने पहुंचा। ताऊ देवीलाल के वंशज जजपा और इनेलो के भी कार्यकर्ता यहां प्रचुर मात्रा में हैं, ऐसा कहना है इन पार्टियों के सुप्रीमों का। और मुझे याद पड़ता है कि ताऊ देवीलाल भी गरीब, कमजोर, निसहायों के समर्थक थे और ओमप्रकाश चौटाला भी गरीब, कमेरे, आशक्त, निशक्त, लाचार व्यक्तियों के समर्थक होने का दावा करते थे लेकिन यहां कुछ नहीं दिखाई दिया। कोरोना काल से ही गुरुग्राम में कैनविन फाउंडेशन अपने आपको गरीब, निसहाय, असहाय की सबसे बड़ी मददगार होने का दावा करती रही है और यह भी सुनने में आया कि उन्हें कहीं किसी ने सम्मानित भी किया है। परंतु आज जब इस अग्निकांड के समय वहां से बचे पीडि़तों को चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता थी तो वहां के बारे में कैनविन फाउंडेशन ने भी कुछ नहीं सोचा। तो क्या समझे कि ये संस्थाएं भी जहां इनका राजनैतिक स्वार्थ हो, वहीं मदद के लिए जाती हैं। अग्निकांड से अपना घर-बार छोड़ निसहाय लोग केवल मजबूर, परेशान इंसान हैं। उनमें हिंदू-मुसलमान, ईसाई या सिख नहीं केवल मानव हैं। सिख पर याद आया कि गुरूद्वारों ने रैडक्रॉस से मिलकर उन लोगों के खाने का प्रबंध करने में सहयोग दिया है। रैडक्रॉस ने भी वहां उनके खाने का प्रबंध किया है और प्रशासन ने रहने के लिए भी अस्थाई रूप से छत तो दे ही दी। उपरोक्त बातें लिखने का तात्पर्य किसी की बुराई करने का नहीं, यह बताने का है कि मुख्यमंत्री की स्मार्ट सिटी, देश-विदेश में साइबर सिटी के नाम से प्रख्यात, गुरू द्रोण की कर्मस्थली, हरियाणा को सबसे अधिक राजस्व देने वाले गुरुग्राम में संवेदनाएं मर चुकी हैं। कहीं ऐसा नहीं दिखाई देता जो चंद वर्ष पूर्व तक दिखाई दिया करता था। मुख्यमंत्री कहते हैं मनोहर लाल भ्रष्टाचार का काल: अब तक तो हमने बात की घटना के बाद की परिस्थितियों की लेकिन अब इशारा घटना से पहले की परिस्थितियों पर भी कर देते हैं। वह मानेसर निगम की जमीन थी। जहां झुग्गियां और कबाड़ के गोदाम थे। तो उस जमीन पर कब्जा किसी की अनुमति से हुआ? निगम ने उसके लिए क्या किया? यह तो माना नहीं जा सकता कि निगम की जमीन पर कोई भी जाकर बैठ जाए। कोई न कोई बिचौलिया अवश्य होगा, जो निगम के अधिकारियों से सांठ-गांठ कर झुग्गी और गोदाम वालों से पैसे ले निगम में पहुंचाता होगा और बीच में कुछ कमाता होगा। यह सवाल मुख्यमंत्री के लिए हैं। Post navigation शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल तंत्र व किसानों को बर्बाद कर रही है बीजेपी-जेजेपी: हुड्डा स्थानीय निकाय चुनाव और जजपा-भाजपा