भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम के निगम पार्षद और जनता पूछ रहे हैं कि क्या कारण है कि हर बार निगम की सामान्य बैठक का समय और एजेंडा दे दिया जाता है और फिर वह स्थगित कर दी जाती है। ऐसा एक बार हो तो कोई आकस्मिक कारण हो सकता है लेकिन जब बार-बार यही घटना दोहराई जाए तो विषय विचारनीय हो जाता है।

निगम में गुरुग्राम के जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्ति की ओर जा रहा है। लगभग साढ़े चार वर्ष हो गए हैं। ऐसे में सभी पार्षद अपनी छवि स्वच्छ करना चाहते हैं ताकि आगामी चुनाव जीत पाएं। इधर निगम में भ्रष्टाचार के बोलबाले की चर्चाएं आम हैं। चर्चाएं निरर्थक भी नहीं लगतीं, करोड़ों की पेमेंट बिना काम हुए कर दी जाती है।  पार्षदों के दस्तखत कोई और कर देता है। जांच में अनेक अनियमितताएं पाने से अफसरों को सस्पेंड किया जाता है लेकिन फिर वह कार्य पर आ जाते हैं। जनता की कमाई द्वारा की गई करोड़ों की पेमेंट का भेद खुलता है तो वह पेमेंट वापिस आने की बात कहकर मामला रफा-दफा हो जाता है। वह पेमेंट किसकी गलती से दी, करोड़ों की पेमेंट में अनेक अधिकारी अवश्य संलिप्त होंगे, उन पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई? इसी प्रकार जिस अधिकारी की एफआइआर दर्ज हो और वह ड्यूटी पर ले लिया गया हो, जिसकी शिकायत विधायक सिंगला भी कर रहे हों लेकिन कार्यवाही कोई नहीं।

ये सब बातें भारत सारथी कोई अपनी ओर से नहीं कह रहा है, सर्वविदित हैं। भारत सारथी जनता की ओर से यह सवाल अवश्य पूछना चाहता है कि मुख्यमंत्री जो गुरुग्राम की कष्ट निवारण समिति के अध्यक्ष तो है हीं, साथ ही यदि देखा जाए तो माह में करनाल, चंडीगढ़ से अधिक नहीं तो बराबर उपस्थिति गुरुग्राम में उनकी रहती है। 

केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत इनसे भी प्रश्न है कि अपनी आन-बान-शान के सवाल पर यह मेयर टीम उन्होंने गठित की थी और उनकी छवि सदा ईमानदारी की रही है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अनेक पार्षद बार-बार मेयर की और निगम में भ्रष्टाचार की शिकायत मंत्री जी से कर चुके हैं। एक बार तो मेयर के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी आया था, वह भी राव इंद्रजीत ने रूकवाया था। तो प्रश्न यही है कि वह क्यों नहीं देख पा रहे निगम के भ्रष्टाचार?

यह तो हुई मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री की बात, अब बात करें अन्य निकाय मंत्री की। पहले तो इस विभाग के मंत्री गब्बर कहलाये जाने वाले अनिल विज थे। उनकी तरफ से एक बार दौरा कर कुछ जांच की बात की गई, अधिकारियों पर एफआइआर दर्ज कराने की भी बात की गई लेकिन मामला वही ढाक के तीन पात।

वर्तमान में निकाय मंत्री डॉ. कमल गुप्ता हैं। वह भी एक बार निगम का दौरा कर गए थे। जिस समय वह पहुंचे, अधिकारियों की उपस्थिति बहुत कम थी लेकिन उसके पश्चात उनकी ओर से किसी कार्यवाही की कोई बात सुनी नहीं गई।

निगम की सदन की सामान्य बैठकों का स्थगन इसी रूप में देखा जा रहा है कि अधिकारियों और पार्षदों को समझाकर रखें, जिससे कहीं सदन में कोई पार्षद या अधिकारी पोल खोल दें।

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