जननी जने तो भक्त जन या दाता या शूर, नहीं तो जननी बांझ ही रहे काहे गंवाए नूर…

-भविष्य में ना हो शिवपुरी कालोनी जैसी घटनाओं की पुनरावृति
-शिवपुरी कालोनी में बेटे द्वारा मां की हत्या की घटना पर चिंतन जरूरी
-अध्यात्म, संस्कृति, प्रकृति की ओर से युवाओं को ले जाना जरूरी

गुरुग्राम। जननी जने तो भक्त जन या दाता या शूर, नहीं तो जननी बांझ ही रहे काहे गंवाए नूर…। एक महिला कैसा पुत्र पैदा करे, यह बात इसी को केंद्र मानकर लिखी गई है। वैसे तो हर मां ऐसा ही पुत्र पैदा करती है कि वह समाज में उनका नाम रोशन करे। जीवन पर्यन्त उनका सहारा बनकर रहे। लेकिन शिवपुरी कालोनी गुरुग्राम में बेटे को खाना देकर लौट रही एक मां की उसी बेटे द्वारा चाकूओं से निर्मम हत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह एक तरह से समाज में विघटन होने जैसी स्थिति बनती जा रही है।

इस घटना पर सामाजिक चिंतक, युवाओं, बच्चों में संस्कारों के समावेश के वाहक बोधराज सीकरी ने गहरी चिंता व्यक्त की है। साथ ही कहा है कि कहीं ना कहीं हमारे संस्कारों में कमी रह गई है, तब ऐसी घटनाएं हो रही हैं। कलयुग के इस दौर में भी हर घर में श्रवण कुमार हों, ऐसी शिक्षा-दीक्षा बच्चों, युवाओं को दी जानी जरूरी है। श्री सीकरी ने कहा कि हम सब जानते हैं कि कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। हमारे देश में भी लोगों के रोजगार छूटे हैं। इसी दौर में हमें बहुत से नए अवसर भी मिले हैं, जिन्हें अपनाकर हम आगे बढ़ सकते हैं। किसी कारण से नौकरी छूट जाना थोड़े समय के लिए तनाव और निराशा का कारण तो बन सकता है, लेकिन अपनों का खून बहा देना तर्कसंगत, न्यायसंगत नहीं है।

कोरोना से जूझकर लाखों लोगों ने नए सिरे से जिंदगी को शुरू किया है। नए रोजगार तलाशे हैं। किसी भी असफलता से निराश होकर बैठ जाना, परिवार में अशांति पैदा करना सही नहीं ठहराया जा सकता। बोधराज सीकरी का कहना है कि बाकी सब चीजों के साथ हमें 21वीं सदी के 22वें साल में अब अपनी संस्कृति, संस्कारों, प्रकृति और अध्यात्म को अपनाना जरूरी हो गया है। भागदौड़ भरी जिंदगी में इन सबके लिए समय निकालना बहुत जरूरी है। कोई भी काम हम अकेले सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते। इन कार्यों में समाज, सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक व्यक्तियों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। हमें बच्चों, युवाओं को सही पथ पर चलाने के लिए समय-समय पर उनकी काउंसलिंग करनी चाहिए। संगोष्ठियों के माध्यम से उनके जीवन से जुड़े पहलुओं, अनुभवों पर चर्चा करनी चाहिए। आज के समय में मानसिक संतुलन और शांति इंसान के लिए बहुत जरूरी हो गए हैं। सहनशक्ति भी घटती जा रही है।

बच्चों, युवाओं को मानसिक असंतुलन, अवसाद से बाहर निकालने को हम सबके सांझा प्रयास जरूरी हैं। महाभारत काल में भी श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को गीता का संदेश देकर एक तरह से अवसाद से बाहर निकाला था। जीवन दर्शन उन्हें कराया था। बोधराज सीकरी का समाज के हर व्यक्ति को संदेश है कि हमारे धार्मिक गं्रथ गीता, रामायण का सुबह-शाम हर घर में पठन-पाठन हो। इससे घर में शांति, मानसिक शांति, काम-धंधे में बढ़ोतरी होने के साथ तमाम बाधाएं दूर होंगी।

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