नव संवत्सर पर विचार गोष्ठी आयोजित

अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम इकाई  ने किया आयोजन

गुरुग्राम – अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम इकाई के तत्वावधान में रविवार 3 अप्रैल 2022 सायं 4 बजे नव संवत्सर पर गूगल मीट के माध्यम से एक विचार गोष्ठी का आयोजम किया गया । अ. भा. सा. परिषद हरियाणा के प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की जबकि साहित्य परिक्रमा के सम्पादक डॉ इंदुशेखर तत्पुरुष ने मुख्य अतिथि के रुप मे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई । जींद इकाई अध्यक्ष डॉ मंजुलता रेढु ने विशिष्ट वक्ता के रुप मे अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज की ।

मीनाक्षी पांडेय के मधुर कंठ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । त्रिलोक कौशिक ने कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन सहज ढंग से करते हुए कहा, ” भारतीय संस्कृति, संस्कार हमारे रक्त में है , इसे ओढ़ने की जरूरत नहीं है ।”

इकाई अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने अतिथिगण का शाब्दिक स्वागत करते हुए कहा, ” नव संवत्सर नएपन का आह्वान है । प्रकृति नएपन से नहाई हुई होती है । इसमे सृष्टि की आकांक्षा है ।” उन्होंने तत्पुरुष जी और मनीषी जी की कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

डॉ इंदुशेखर तत्पुरुष ने अपने व्यक्तव्य में कहा, ” यदि हमारी चेतना लुप्त हो जाये, विस्मृतियाँ शून्य हो जाएं तो हमें शायद आज की तारीख पता न चल पाये लेकिन खगोलीय गणना में पारंगत व्यक्ति सिर्फ आकाश और चन्द्रमा की कलाओं और स्थिति देखकर पता लगा सकता है कि आज तिथि क्या है । सूर्य संक्रांति के आधार पर हिंदी मास के नाम चैत्र, वैसाख आदि रखे गये हैं । संवत्सर का एक अर्थ वात्सल्य भी है । इसका एक सांस्कृतिक पक्ष ये भी है कि माँ के आराधना के साथ संवत का आरंभ होता है । अंधानुकरण के चलते हम अपने रीति रिवाज, विधि विधान को भूलें नहीं बल्कि उन्हें अपने जीवन मे आत्मसात करें ।” विशिष्ट वक्ता डॉ मंजुलता रेढु ने गर्वानुभूति और पूर्ण हार्दिकता से सभी को नव संवत्सर की बधाई देते हुए कहा , भारतीय संस्कृति जैसे जीवन मूल्य, उदारता, दिशाओं को प्रशस्त करने वाला अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। शुक्ल पक्षीय प्रतिपदा से जो उल्लास, ऊर्जा ,स्फूर्ति हमे मिलती है वर्ष भर उस का संचरण होता है ।

प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने कहा नव संवत खुशहाली, सम्पन्नता का भी प्रतीक है । हम अच्छाइयों को प्रचारित – प्रसारित करें, मिथक का भंजन करें । उन्होंने कहा , “रुप की चिड़िया प्रेम का दाना खाते- खाते खाती है , नस-नस में बस चुकी गुलामी जाते- जाते जाती है ।” उन्होंने तत्पुरुष जी के उद्बोधन में प्रवाहित ज्ञान गंगा की विशेष सराहना की । उन्होंने नव संवत्सर पर दो छोटी कविताओं का पाठ कर वातावरण को सरस बना दिया । मनीषी जी ने परिषद के विस्तार का आह्वान करते हुए कहा इसमें भारतीय संस्कृति की भावना निहित है ।

इसके पूर्व संस्कृत के विद्वान विवेक पांडेय ने संक्षेप में बताया कि कुल साठ संवत्सर होते हैं । नितांत वैज्ञानिक संवत्सर का आधार खगोलीय गणना है । भारत भूषण ने कहा, बसंत से नवजीवन का संचार शुरू होता है । चैत्र शुक्ल पक्ष से प्रकृति भी नए वस्त्र धारण करती हुई प्रतीत होती है । इकाई उपाध्यक्ष विधु कालरा ने आमंत्रित अतिथिगण एवं श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया ।

इस अवसर पर पूर्णमल गौड़ , रमेश चंद्र शर्मा, डॉ मुक्ता, संतोष गोयल, अनिल श्रीवास्तव, हरीन्द्र यादव, मोनिका शर्मा सहित इकाई के कई सदस्य और श्रोता उपस्थित थे ।

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