दिनोद धाम जयवीर फोगाट

03 अप्रैल,आज के बिगड़ते संस्कारों के जिम्मेवार हम स्वयं ही है। हम बचपन में अपने बच्चो को संस्कार नहीं कुसंस्कार परोस रहे हैं। बच्चा अपने मां बाप का झगड़ा देख कर बड़ा हो रहा है, बाप की गलत कमाई से उसको शिक्षा मिल रही है तो हम उससे अच्छे की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। समाज को सुधारना है तो पहले अपने आप को अपने घर को और अपनी संतान को सुधारो।

हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि आज वर्तमान युग में इंसान को कहीं भी चैन नहीं है। सब स्वार्थ में भाग रहे हैं। कोई मर्यादा कोई कायदा नहीं रहा। वजह संस्कारों की कमी है। पुरातन युगों में सामाजिक संस्थाएं मजबूत होती थी। बच्चे के जन्म से ही संस्कारों की शिक्षा प्रारंभ हो जाती थी। आज भी हम उस युग के संस्कारों को जिंदा कर सकते हैं। संस्कार जिंदा होंगे सुसंगत से। अगर आपका संग अच्छा है तो सब कुछ ठीक है। उन्होंने कहा कि आज सबसे बड़ा पाप मां बाप की बेकद्री का है। घर घर में ये कुसंस्कार आ गया है। बड़े बुजुर्गो और मां बाप की अवेहलना हमें दिशा हिन कर रही है। कुछ साल पहले तक मां बाप से बढ़ कर इंसान के लिए कुछ नहीं होता था क्योंकि बचपन से ही दादा दादी बच्चों को ऐसी कहानी सुनाते थे जिसमें शिक्षा होती थी, वीरता की बात होती थी, संस्कारों की बात होती थी। गुरु महाराज जी ने कहा कि बच्चा बचपन से ही इस शिक्षा के साथ बड़ा होता था कि किसी का बुरा मत करो, कर भला हो भला। परोपकार और दया की भावना उनमें डाली जाती थी।

बच्चें अपने घर के वातावरण से ही सीखते हैं संस्कार

गुरु महाराज जी ने प्रेरक कथा सुनाते हुए कहा कि किसी भी बच्चे के आचरण का मुख्य आधार उनका अपना घर का वातावरण ही होता है। आज बच्चा घर से ही भ्रष्टाचार, विलासिता, बुरा आचरण सीख रहा है। हर चीज में मिलावट है। जैसा अन्न होगा वैसा ही मन होगा। उन्होंने कहा कि एक घर में बुजुर्ग मां की बेकद्री होती थी। उसके अपने बेटे और बहू उसको तंग रखते थे। उसका छोटा पोता ये सब देखता था। जब बुढ़िया मरी तो उसके सारे सामान के साथ उसकी थाली को भी जब उसका बेटा बाहर फेकने लगा तो उस बूढ़े का पोता बोला कि पिताजी इस कटोरे को क्यों बाहर फेंक रहे हो ये तो आपके काम भी आएगा। गुरु महाराज जी ने कहा कि समाज दर्पण का काम करता है। इसमें हमारे अपने संस्कार नजर आते हैं।

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