इस बार सिर्फ बच्चों की ही नहीं बल्कि प्रदेश के शिक्षा बोर्ड, शिक्षकों, अभिभावकों और पूरी शिक्षा व्यवस्था की भी परीक्षा है
ये नेता शिक्षा का भी राजनीतिकरण करने पर उतारू हैं

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

शैक्षिक सत्र 2021-22 खत्म हो रहा है। बच्चे परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए हैं। कोरोना काल में शिक्षा के गिरे स्तर को संवारने में पूरा महकमा लगा हुआ है। इस बार सिर्फ बच्चों की ही नहीं बल्कि प्रदेश के शिक्षा बोर्ड, शिक्षकों, अभिभावकों और पूरी शिक्षा व्यवस्था की भी परीक्षा है।

ऐसे समय में प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा छात्रों से संवाद करना बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए निश्चय ही सराहनीय है लेकिन कई मायनों में सरकार की ऐसी कोशिश सिर्फ इवेंटबाजी ही साबित होती है। जब हमारे संवाददाता ने इस बारे में कई अध्यापकों, छात्रों और अभिभावकों से सम्पर्क कर उनकी राय जाननी चाही तो बहुत-सी वो बातें निकल कर आईं जो बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा करती हैं।

नाम न छापने की शर्त पर गुरुग्राम में कार्यरत एक अध्यापक ने इस बारे अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि शिक्षा के बजट में कटौती करने और गरीब छात्रों की स्कॉलरशिप में घोटाला करने वाली बीजेपी के अनपढ़ और अहंकारी नेता क्या जानें शिक्षा का महत्व! हर बात में राजनीति के अवसर तलाशने वाले जुमलेबाज नेता अब परीक्षाओं पर भी इवेंटबाजी कर रहे हैं।
हालांकि हमारे संवाददाता को कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने सरकार के इस प्रयास की सराहना की लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नही था कि सरकार ने शिक्षा के स्तर में क्या – क्या सुधार किए गए?

एक अन्य अध्यापक ने तो यहां तक कह दिया कि आखिर पूरे साल हमारा क्या काम है! हम कोई पशु चराने तो नहीं आते हैं, बच्चों को पूरे सत्र पढाते हैं और उन्हें परीक्षाओं के लिए तैयार करते हैं लेकिन आखिर में ये नेता अपनी सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में अपना ज्ञान बांटने आ जाते हैं; ये नेता शिक्षा का भी राजनीतिकरण करने पर उतारू हैं।

खट्टर सरकार द्वारा हटाए गए 15 साल के अनुभवी पीटीआई से इस बारे बात की गई तो उसने कहा कि बीजेपी सरकार ने शिक्षा का बेड़ागर्क कर दिया। उन्होंने बताया कि 40 हजार से ज्यादा रिक्त पदों से बेहाल पड़ा प्रदेश का शिक्षा विभाग रामभरोसे काम कर रहा है। शिक्षक अपनी नौकरियां बचाने के लिए सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं। हमें लम्बे अनुभव के बाद भी घर बैठा दिया गया है। कला अध्यापकों को भी हटा दिया गया और नवनियुक्त अध्यापकों को कार्यभार नहीं सौंपा जा रहा है।

कई सम्मान हासिल करने वाले इस पीटीआई ने बताया कि प्रदेश में अधिकारियों के पद भी बड़ी संख्या में खाली पड़े हैं। ये पहली सरकार है जिसने नए स्कूल खोलने की बजाय छात्रों की कम संख्या का हवाला देकर बड़े पैमाने पर स्कूल बन्द कर दिए।
बीएलओ का काम देख रहे एक प्राथमिक शिक्षक ने बताया कि विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के बावजूद उनकी गैर शैक्षिक कार्यों में ड्यूटी लगाई जा रही है जिससे बच्चों की पढाई प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि अगर इन्हें छात्रों के हितों की इतनी ही फिक्र है तो स्कूलों में अध्यापकों की कमी पूरी क्यों नहीं करते।

एक शिक्षिका ने कहा कि विद्यालय पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को समाप्त कर दिया गया। रोजगारपरक शिक्षा रही नहीं, इसलिए आज की शिक्षा सिर्फ मजदूर पैदा कर रही है। उन्होनें कहा कि सरकार खुद अच्छी शिक्षा के मुद्दे पर गम्भीर नहीं है इसलिए वो जानबूझ कर विद्यालयों में बच्चों को समय पर किताबें उपलब्ध नही कराती; पूरा सत्र बीत जाता है लेकिन विद्यालयों में किताबें ही नही पहुंच पातीं और परीक्षा के समय छात्रों से संवाद के नाम पर सारे नेता राजनीति करने आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा के दयनीय हालात के लिए जिम्मेदार नेताओं को सबसे पहले अपने जमीर से संवाद करना चाहिए।

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