-कमलेश भारतीय

आज तो अखबार खेल , खिलाड़ी और राजनीति से भरे पड़े हैं । चाहे बिजेंद्र के नेतृत्व में हरियाणा सरकार की खेल नीति का विरोध हो या फिर हरभजन यानी भज्जी के राज्यसभा में भेजे जाने की पसंद हो या फिर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा सरकार की खेल नीति की आलोचना हो । अखबारों में खेल और खिलाड़ी ही छाये हुए हैं । वैसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी लाॅन टेनिस के खिलाड़ी हैं और वैटरन खिलाड़ी के रूप में खेलने विदेश भी गये थे और यही नहीं मुख्यमंत्री के तौर पर जहां भी , जिस भी शहर के विश्रामगृह में रात बिताते तो दूसरी सुबह इनके बैडमिंटन खेलने का इंतजाम किया जाता था और शहर के खिलाड़ी ढूंढे जाते थे । खबरें तब भी आती थीं । वे लिएंडर पेस के साथ भी मुख्यमंत्री आवास में खेले और लिएंडर ने भी खूब इनके खेल को सराहा ।

वैसे खिलाड़ियों का राजनीति में प्रवेश नया नहीं है । सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा में लाए थे और मैच देखने मुम्बई तक स्टेडियम में दिखते थे । इसके बावजूद सचिन ने कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करने से मना कर दिया था और उनकी राज्यसभा में बहुत कम हाजिरी चर्चा का विषय बनती रही थी । कभी कपिल देव को राजनीति में लाने की कोशिशें हुईं लेकिन वे क्रिकेट की पिच छोड़कर राजनीति के मैदान में नहीं आए । हाॅकी खिलाड़ी असलम शेर खान कभी कांग्रेस की ओर से सांसद बने थे । कीर्ति आजाद , चेतन चौहान और इन दिनों गंभीर गौतम भाजपा की ओर से सांसद बने । कीर्ति ने भाजपा छोड़ दी लेकिन फिर चुनाव भी हार गये । पंजाब में हाॅकी खिलाड़ी परगट सिंह जालंधर छावनी से जीते लेकिन मंत्री पद मिला चन्नी सरकार में जो सिर्फ छह माह रही । इसी प्रकार हरियाणा में हाॅकी खिलाड़ी संदीप सिंह पिहोवा से भाजपा की टिकट पर चुने गये और खेलमंत्री बने लेकिन प्रभावशाली साबित न हुए । बबिता फौगाट यानी दंगल गर्ल चुनाव जरूर लड़ीं लेकिन सफलता न मिली । कपिल देव को हरियाणा के खेल विश्विद्यालय का कुलपति बनाने में सरकार को सफलता न मिली । एक बार फिर कपिल देव राजनीति की पिच से बाहर रह गये । अमिता सिंह बैडमिंटन की राष्ट्रीय खिलाड़ी भी उत्तर प्रदेश से राजनीति में बहुत पहले कदम रख चुकीं । दीपिका पादुकोण ने फिल्म क्षेत्र को चुना । सौरभ गांगुली ने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन उनकी सहानुभूति दीदी ममता बनर्जी से छिपी नही है । अभी ऐसी चर्चा छिड़ी रहती है कि धोनी भी राजनीति के मैदान में लाये जा सकते हैं ।

बड़ी बात यह है कि खिलाड़ी होकर बिजेंद्र ने नेतृत्व किया खिलाड़ियों की मांगों के आंदोलन का । सिर्फ ड्राइंग रूम की राजनीति नहीं की । वैसे दिल्ली से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन सफलता न मिली । चेतन शर्मा एक बार बसपा की टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन हार गये । पैरा एथलीट दीपा मलिक को रोहतक से चुनाव लड़ाने की चर्चायें छिड़ी थीं लेकिन भाजपा ने टिकट अरविंद शर्मा को दे दिया था । वीरेंद्र सहवाग भी रोहतक से चुनाव नहीं लड़े जबकी पेशकश हुई थी भाजपा की ओर से ।
हरभजन सिंह यानी भज्जी को कांग्रेस सरकार ने डीएसपी बनाया तो आप पार्टी ने अपनी सरकार आने पर राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया है जिससे वे एक बार फिर चर्चा में हैं । बड़े ही बेमन से हरभजन सिंह ने क्रिकेट से संन्यास लेते कहा था कि इनका कोई गाॅडफादर नहीं था, नहीं तो वे कप्तान तक बनते । अब वे राज्यसभा में जाकर इस दुख को याद रखेंगे और दूसरे नये खिलाड़ियों के गाइडलाइन बनेंगे तो सचमुच अपना दुख कम कर सकेंगे । बहुत बहुत स्वागत् है भज्जी । आओ राजनीति के अंगने में ,,,,,
पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी

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