रेवाड़ी,पवन कुमार,

21 मार्च द कश्मीर फाइल्स फिल्म हॉलीवुड के समर्थन ना देने के बावजूद सुपर हिट हो गई। व्हाट्सप्प पर कुछ सन्देश मिले कि द कश्मीर फाइल्स से पहले शूद्र द राइजिंग फिल्म देखनी चाहिए। इसलिए यह फिल्म मेरे लिए देखनी जरूरी हो गई । शूद्र द राइजिंग स्वर्ण समाज द्वारा एक दलित बच्चे कि जीभ काटने को लेकर पैदा हुए टकराव के ऊपर आधारित है । उस बच्चे का दोष केवल इतना था कि उसने मन्त्र सुन लिए थे और उसको कंठस्थ हो गये थे,जिस पर स्वर्ण समाज ने एतराज उठाया और सजा के रूप में उसकी जीभ काट दी और उसके बाद फिर बदले कि भावना से दलित समुदाय ने स्वर्णो पर हमला बोल दिया और उसके बाद मौका मिलते ही स्वर्णो ने दलितों पर हमला कर दिया और मार-काट करके उनकी महिलाओ के साथ जादती की । इस खुनी संघर्ष के बाद स्वर्ण-दलित में दीवार खड़ी हो गई जो वर्षो से आज भी कायम है ।

यह भी सच है कि पहले स्वर्णो ने दलितों का आर्थिक और सामाजिक शोषण हुआ है । उन्हें पड़ने लिखने का अधिकार नहीं,छुआ-छूत अपनी चर्म सीमा पर था । लेकिन आज वो स्थिति नहीं है, समाज बहुत बदल गया है । मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जब भारत पर आक्रमण किया तो जाति आधार पर छुआ-छूत के कारण दलित वर्ग ने स्वर्णो का साथ नहीं दिया और प्रणाम यह निकला कि हिन्दू राजा महाराजा मुसलमानों से युद्ध हारते चले गये । इसमें कुछ योगदान देश के गदारों का भी था । हमें अपने अतीत और अपनी गल्तीयों से सबक लेना चाहिए अन्यथा भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनते देर नहीं लगेगी ।

आज हिन्दू समाज को एक जुट होने कि आवश्यकता है । हमारे देश को दो ही चीजे कमजोर करती है एक जातिवाद और दूसरा भ्रष्टाचार । जातिवाद के कारण हम आपस में लड़ते है और संधठित नहीं हो पाये । हमारे कट्टर दुश्मन हम हावी हो जाते है । अब मनु समृति को भी बदलने कि आवश्कता है क्योंकि मनु समृति के समय हिन्दू धर्म विरोधी कट्टर धर्म नहीं थे । बाबा साहब ने सभी को एक समान लाकर खड़ा कर दिया। आरक्षण कि जरुरत ऊपर उठकर बराबर आने के लिए था,ना कि दया का पात्र बनने के लिए। आजादी के बाद तीन पीड़िया आ चुकी है,आरक्षण का फायदा दलित समाज ने नहीं उठाया,उन परिवारों ने ही उठाया है जिन्होंने शुरू में उठाया । आरक्षण से समाज का कभी उथान नहीं हो सकता । मुझे बड़े कठोर शब्दों में लिखना पड़ रहा है हिन्दू धर्म कि आड़ में पाखंड भी खत्म होना चाहिए । करोनाकाल में संकट मोचन मंदिरों में ताला लगा देखा है । धर्म रहने कि संस्कृति का नाम है ना कि धर्म का सहारा लेकर पाखंड करने का ।

मैं शांति प्रिय उन व्यक्तियों के बारे में कहूंना चाहूंगा जो हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे कि बात करते है । हमारा भाईचारा बौद्ध,जैन,सिख से तो है ही और ईसाईयों और अन्य धर्मो से हो सकता है परन्तु मुस्लिम धर्म के हर नियम और सिद्धांत हिन्दू धर्म के विपरीत है । जब दो भाइयों के अलग-अलग विचार है तो वह एक घर में नहीं रह सकते है तो दो विपरीत धर्म एक साथ कैसे रह सकते है । जरा सोचिए और गहराई से सोचये कि अपने को अपना कर रहना या फिर गेरों का गुलाम बनना है । जहां द कश्मीर फाइलस जहां हिंदू-मुस्लिम विवाद पर आधारित है वहीं शुद्र द राईंिजग जातिवाद पर आधारित है और दोनों ही देश के लिए अभिशाप है।

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