बच्चों की स्वास्थ्य जांच एवं उपचार के लिए एक भी स्थाई चिकित्सक मौजूद नहीं

एसएनसीयू-बच्चों की नर्सरी) एवं पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) जैसी सुविधाएं महज ढिंढोरा

नारनौल – बच्चों की सेहत की सुरक्षा के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग के पास नागरिक अस्पताल में बीमार नवजात देखभाल केंद्र (एसएनसीयू-बच्चों की नर्सरी) एवं पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) जैसी सुविधाएं तो हैं, लेकिन बच्चों की स्वास्थ्य जांच एवं उपचार के लिए एक भी स्थाई चिकित्सक मौजूद नहीं है।

इन हालातों में प्रतिनियुक्ति पर एक चिकित्सक को महेंद्रगढ़ से बुलाया जा रहा है। जो बच्चे शनि व रवि या राजपत्रित अवकाश के दिन पैदा होते हैं, उनके बीमार होने की सूरत में अभिभावकों की हालत खराब हो जाती है।

कहने को तो सन 1955 में बने नागरिक अस्पताल नारनौल को जिला स्तरीय अस्पताल होने का दर्जा प्राप्त है, लेकिन कमाल की बात यह है कि यहां पर करीब एक महीने से बच्चों के चिकित्सक की भारी कमी बनी हुई है। करीब एक माह पहले तक यहां पर बच्चों के डाक्टर के रूप में डा. संदीप यादव ने खासी लोकप्रियता बटोरी थी, लेकिन निजी कारणों के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। दूसरे चिकित्सक डा. मदन का रेवाड़ी ट्रांसफर हो गया। सूत्रों मुताबिक उनका दाखिला पीजी में होने के चलते उन्होंने भी त्यागपत्र दे दिया है।

इन हालातों में नागरिक अस्पताल नारनौल में इस समय एक भी स्थाई बाल रोग विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है। जबकि इस जिला स्तरीय अस्पताल में सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) एवं न्यूट्रीशन रिहेबिलेशन सेंटर (एनआरसी) जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। एसएनसीयू वह यूनिट है, जहां नवजात कमजोर बच्चों को मशीन में लगाकर स्वास्थ्य लाभ दिया जाता है, जो बिल्कुल नि:शुल्क होती है, जबकि इसी मशीन की प्राइवेट में सुविधा लेने पर करीब दस हजार रुपये प्रतिदिन का खर्च आ जाता है।

इस समय महेंद्रगढ़ व नांगल चौधरी के अस्पतालों में एक-एक बाल रोग विशेषज्ञ सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन नारनौल, कनीना, अटेली, सतनाली व अन्य कई सामुदायिक केंद्रों व उप सामुदायिक केंद्रों पर बाल रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। इन हालातों में लोगों को निजी अस्पतालों में जाकर महंगा ईलाज लेने को बाध्य होना पड़ रहा है।

अन्य स्टॉफ की भी है जरूरत

वर्ष 2011 में स्थापित एसएनसीयू को वैसे तो नागरिक अस्पताल में एक साल बाद ही नई बिल्डिंग मिल गई, लेकिन स्टॉफ नर्सों के दस पद स्वीकृत होने के बावजूद महज पांच ही कार्यरत हैं। एक एलटी एवं एक काउंसलर भी लगा है, जबकि कई अन्य पद रिक्त स्वीकृत हैं। यहां का वेंटीलेटर इंस्टाल नहीं करने के चलते चालू नहीं है।

नर्सरी आए बच्चों की एक साल करते हैं देखभाल

नर्सरी में आए बच्चे स्वास्थ्य की दृष्टि से कमजोर होते हैं तथा उन्हें मशीन में लगाना पड़ता है। यहां करीब आठ दिन रखने उपरांत अगले 28 दिन तक आशा वर्कर इनकी निगरानी रखती हैं। शिशु बाल मृत्यु दर पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार की हिदायत अनुसार एक साल तक ऐसे कमजोर बच्चों की निगरानी की जाती है।

बंद है एनआरसी

अस्पताल के आपातकालीन वार्ड के नए भवन में द्वितीय तल पर करीब दस बैड का बना न्यूट्रीशन रिहेबिलेशन सेंटर बंद है। इसे कोविड-19 के चलते बंद किया गया था, जो अब तक निरंतर बंद हैं। यहां के स्टॉफ को अस्पताल की अन्य सेवाओं में इस्तेमाल किया जा रहा है।

थोड़ा है थोड़े की जरूरत है

सिविल सर्जन डा. अशोक कुमार ने बताया कि जिले में तीन पीडीट्रिशियन हैं। डीएच, एसडीएच व सीएचसी पर भी होने चाहिए। बच्चों के उपचार के लिए नर्सरी में एक एनएचएम चिकित्सक एवं मेडिकल अफसरों की नियुक्ति की हुई है। कुछ और चिकित्सकों की जरूरत है, जिनके लिए उच्चाधिकारियों को लिखा गया है।

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