एग्जिट पोल भरोसे के लायक होते है?, बंगाल का उदाहरणगोदी मीडिया ने जो खाया है वही निकालेगा अशोक कुमार कौशिक “उत्तर प्रदेश चुनावों के परिणाम चौंकाने वाले होंगे।” यही सबसे सुरक्षित वाक्य था, और इसलिए बड़ा प्रयोग भी किया गया। अब भी खुद को रोक रहा था, लेकिन रोक नहीं पाया। ठीक तो यही होता कि दो दिनों बाद परिणाम आ ही जाते, फिर कुछ लिखता। सुरक्षित तो यही था। लेकिन मन में आया लिख ही दूं। मेरे लिए परिणाम चौंकाने वाले तब होंगे जब बीजेपी सरकार बनाने में असफल होगी। इसके पीछे 3-4 कारण हैं – 1. बेरोज़गारी एक बड़ा मुद्दा है। लेकिन ज्वाइनिंग के लिए प्रदर्शन करने वाले युवा, जो खूब पीटे गए, वो भी चुनाव के दौरान “टोंटी चोर अखिलेश”, “मुल्ला अखिलेश” से जुड़े व्हाट्सएप फॉरवर्ड नौकरी के लिए बनाए गए ग्रुप में भेजता रहा। ग्रुप में भी किसी ने कोई खास विरोध नहीं किया। 2. कौड़ियों के भाव में अपनी मेहनत बेचने पर मजबूर व्यक्ति, जो रोज़ाना सब्जी तक नहीं खरीद सकता(जैसा उसने खुद बताया), उसकी सारी भूख राम के नाम से मिट रही है। वो सीधे बोलता है, “भैया धर्म गया तो बचेगा ही क्या?” 3. जाति आधारित हिंसाओं के पीड़ितों के दुख दर्द में शामिल होने वाले कहते हैं कि कुछ भी हो अब सड़कों पर गुंडई नहीं होती। सवाल पूछो कि ये गुंडई भी तो सड़कों पर हुई तो कहते हैं कम होती है, पहले ज्यादा होती थी। इसके अलावा भी दो चार बातें हैं। मैंने इन्हीं का जिक्र इसलिए किया क्योंकि मुझे ये मुद्दे असरदार लगते थे। मुझे लगता था कि इन मुद्दों पर सत्ता के खिलाफ सामूहिक गुस्सा पैदा हो सकता है। उत्तर प्रदेश में घूमते हुए लगा कि मुद्दे असरदार ज़रूर हैं लेकिन व्हाट्सएप, टीवी, अखबार आदि के ज़रिए ऐसा इंजेक्शन लोगों को दिया गया है, कि अब उन्हें असर नहीं होता। एग्जिट पोल मेरे इस लगने को सही बता रहे हैं, और मुझे इस बात का अफ़सोस है। ये भी हो सकता है, कि शायद मैं गलत होऊं, ये एग्जिट पोल गलत हों। 10 को सब साफ हो जाएगा। लेकिन मेरे लिए जो मुझे लगा उसका गलत साबित होना चौंकाने वाला होगा। बेरोज़गारी, नफरती हिंसा, पितृसत्तावाद, महंगाई – इन सबसे लोगों को फर्क नहीं पड़ता। अगर पड़ता होगा तो मैं चौंकूंगा। अगर नहीं पड़ता होगा तो बीजेपी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाएगी। एग्जिट पोल भरोसे के लायक होते है?मेरा एक दोस्त 2-3 साल पहले सीएसडीएस के चुनावी सर्वे को कर रहा था। टीए के साथ दिन भर का 800 रूपये मिल रहा था जिसमें रहने और खाने का जुगाड़ करना था, जो कि संभव नहीं था। और संभव इस लिए भी नहीं था कि एक बच्चे के पास 100 के करीब फॉर्म थे और हर फॉर्म में 45 से 50 सवाल। और ये सब करना था 4 से 5 दिन में। माने अगर एक आदमी का ठीक से सर्वे लिया जाय तो कम से कम 2 घंटे का टाइम लगेगा। माने कोई वाकई इस को सच में करता, अच्छे से तो उसे कम से कम 2 हफ्ते का समय चाहिए था। इन सब परेशानियों का हल ये था कि उसने अपने सर्वे के सारे फॉर्म कमरे के अंदर भरे (कमरे के अंदर फॉर्म भरने में भी 4 दिन लगे)। याद रहे सीएसडीएस का सर्वे इन समाचार चैनलों के सर्वे से ज्यादा विश्वसनीय माना जाता है (पता नहीं क्यों?)। ज़्यादा दिमाग़ चलाने की ज़रुरत नहीं मीडिया की हक़ीक़त इस एग्ज़िट पोल को देखकर समझ सकते हैं, वैसे इसी गोदी मीडिया ने बंगाल के चुनाव के बाद एग्जिट पोल में भाजपा की सरकार बनाई थी। दो दिन का और सब्र कर लो, गोदी मीडिया ने जो खाया है वही निकालेगा भी, जो भारतीय मीडिया रूस के 11 हज़ार सैनिक को मार सकता है वह अखिलेश को हरा भी सकता है ! Post navigation विश्व महिला दिवस पर सभी पुरूषों को महिला सम्मान व अस्मिता की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए : विद्रोही नव भारत के निर्माण में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है : राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय