महाशिवरात्रि भगवान शिव व पार्वती का विवाह उत्सव भी

अशोक कुमार कौशिक 

‘महाशिवरात्रि’ के विषय में भिन्न-भिन्न मत हैं, कुछ विद्वानों का मत है कि आज के ही दिन शिवजी और माता पार्वती विवाह-सूत्र में बंधे थे जबकि अन्य कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं कि आज के ही दिन शिवजी ने ‘कालकूट’ नाम का विष पिया था जो सागरमंथन के समय समुद्र से निकला था।          

ज्ञात है कि यह समुद्रमंथन देवताओं और असुरों ने अमृत-प्राप्ति के लिए किया था। एक शिकारी की कथा भी इस त्यौहार के साथ जुड़ी हुई है कि कैसे उसके अनजाने में की गई पूजा से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उस पर अपनी असीम कृपा की थी। यह कथा पौराणिक “शिव पुराण” में भी संकलित है।

 प्राचीन काल में, किसी जंगल में एक गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार करता तथा अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था। एक बार शिव-रात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए निकला, पर संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार न मिला। उसके बच्चों, पत्नी एवं माता-पिता को भूखा रहना पड़ेगा इस बात से वह चिंतित हो गया।         

सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया, और वहाँ एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर, चढ़ गया। उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ जरूर आयेगा। वह पेड़ ‘बेल-पत्र’ का था और उसी पेड़ के नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था।

रात का पहला प्रहर बीतने से पहले एक हिरणी वहाँ पर पानी पीने के लिए आई। उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा। ऐसा करने में, उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा हो गयी। हिरणी ने जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी, तो घबरा कर ऊपर की ओर देखा, और भयभीत हो कर, शिकारी से, काँपते हुए स्वर में बोली, ‘मुझे मत मारो।’ शिकारी ने कहा कि वह और उसका परिवार भूखा है इसलिए वह उसे नहीं छोड़ सकता। हिरणी ने वादा किया कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आयेगी। तब वह उसका शिकार कर ले। शिकारी को उसकी बात का विश्वास नहीं हो रहा था। उसने फिर से शिकारी को यह कहते हुए अपनी बात का भरोसा करवाया कि जैसे सत्य पर ही धरती टिकी है; समुद्र मर्यादा में रहता है और झरनों से जल-धाराएँ गिरा करती हैं वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है। क्रूर होने के बावजूद भी, शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने ‘जल्दी लौटना’ कहकर, उस हिरनी को जाने दिया।         

थोड़ी ही देर बाद एक और हिरनी वहाँ पानी पीने आई, शिकारी सावधान हो गया, तीर साधने लगा और ऐसा करते हुए, उसके हाथ के धक्के से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी। इस हिरनी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर, हिरनी ने उसे लौट आने का वचन, यह कहते हुए दिया कि उसे ज्ञात है कि जो वचन दे कर पलट जाता है, उसका अपने जीवन में संचित पुण्य नष्ट हो जाया करता है। उस शिकारी ने पहले की तरह, इस हिरनी के वचन का भी भरोसा कर उसे जाने दिया।

अब तो वह इसी चिंता से व्याकुल हो रहा था कि उन में से शायद ही कोई हिरनी लौट के आये और अब उसके परिवार का क्या होगा। इतने में ही उसने जल की ओर आते हुए एक हिरण को देखा, उसे देखकर शिकारी बड़ा प्रसन्न हुआ। अब फिर धनुष पर बाण चढाने से उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी लेकिन पत्तों के गिरने की आवाज से वह हिरन सावधान हो गया। उसने शिकारी को देखा और पूछा, “तुम क्या करना चाहते हो ?” वह बोला, “अपने कुटुंब को भोजन देने के लिए तुम्हारा वध करूँगा।” वह मृग प्रसन्न हो कर कहने लगा, “मैं धन्य हूँ कि मेरा यह शरीर किसी के काम आएगा, परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा पर कृपया कर अभी मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप कर और उन सबको धीरज बँधा कर यहाँ लौट आऊँ।” शिकारी का ह्रदय, उसके पापपुंज नष्ट हो जाने से अब तक शुद्ध हो गया था इसलिए वह विनयपूर्वक बोला, “जो-जो यहाँ आये, सभी बातें बनाकर चले गये और अभी तक नहीं लौटे, यदि तुम भी झूठ बोलकर चले जाओगे, तो मेरे परिजनों का क्या होगा ?” अब हिरन ने यह कहते हुए उसे अपने सत्य बोलने का भरोसा दिलवाया कि यदि वह लौटकर न आये; तो उसे वह पाप लगे जो उसे लगा करता है जो सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरे का उपकार नहीं करता। शिकारी ने उसे भी यह कहकर जाने दिया कि ‘शीघ्र लौट आना।’         

रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होते ही उस शिकारी के हर्ष की सीमा न थी क्योंकि उसने उन सब हिरन-हिरनियों को अपने बच्चों सहित एकसाथ आते देख लिया था। उन्हें देखते ही उसने अपने धनुष पर बाण रखा और पहले की ही तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव-पूजा संपन्न हो गयी। अब उस शिकारी के शिव कृपा से सभी पाप भस्म हो गये इसलिए वह सोचने लगा, “ओह, ये पशु धन्य हैं जो ज्ञानहीन हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को कि मैं अनेक प्रकार के कुकृत्यों से अपने परिवार का पालन करता रहा।” अब उसने अपना बाण रोक लिया तथा मृगों से कहा की वे सब धन्य है तथा उन्हें वापिस जाने दिया। उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर “गुह’’ नाम प्रदान किया।         

 पौराणिक कथाओं के अनुसार, आज के ही दिन भगवान सदाशिव ज्योतिर्लिंग स्वरुप में प्रकट हुए थे. जिस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, उस दिन भी शिवरात्रि थी. आज महाशिवरात्रि पर परिघ योग और उसके बाद शिव योग बन रहा है, वहीं मंगल, शनि, चंद्रमा, शुक्र और बुध मकर राशि में पंचग्रही योग बना रहे हैं. आज का शुभ समय दोपहर 12:10 बजे से दोपहर 12:57 बजे तक है. महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने का विधान है. आइए जानते हैं महाशिवरात्रि के मुहूर्त , मंत्र , पूजा विधि , कथा , भोग , आरती आदि के बारे में.

महाशिवरात्रि 2022 मुहूर्त एवं मंत्र
शिव पूजन के लिए मुहूर्त का ध्यान करना बहुत महत्वपूर्ण नहीं होता है क्योंकि शिवजी की पूजा आप कभी भी कर सकते हैं. महाशिवरात्रि को शिव योग दिन में 11:18 बजे से लग रहा है. आप प्रात:काल से भी शिव पूजा कर सकते हैं. महाशिवरात्रि की निशिता काल पूजा का समय रात 12:08 बजे से देर रात 12:58 बजे तक है.

शिव जी की पूजा के लिए कई मंत्र हैं, लेकिन सबसे आसान और प्रभावी मंत्र ओम नम: शिवाय है. आप इस मंत्र से ही पूजा करें क्योंकि इसका उच्चारण शुद्धता के साथ करने में आसानी होती है. आप अपनी राशि के अनुसार शिव मंत्र का भी उपयोग कर सकते हैं.

शिव स्तुति मंत्र
ओम नम: श्म्भ्वायच मयोंभवायच नम: शंकरायच मयस्करायच नम: शिवायच शिवतरायच।।
: महाशिवरात्रि पर आपकी राशि के लिए कौन सा शिव मंत्र रहेगा प्रभावी, जानें यहां

महाशिवरात्रि पूजा विधि
1. शुभ मुहूर्त में भगवान शिव के मंदिर जाएं या फिर घर पर ही पूजा की व्यवस्था कर लें. स्नान के बाद साफ वस्त्र पहन लें. पूजा स्थान पर बैटें, हाथ में जल, पुष्प और अक्षत् लेकर महाशिवरात्रि पूजा का संकल्प करें.
2. अब शिव​लिंग को गंगाजल से फिर गाय के दूध से अभिषेक करें. इसके बाद सफेद चंदन लगाएं. अक्षत्, सफेद फूल, मदार का फूल, भांग, धतूरा, शमी का पत्ता, फल, बेलपत्र आदि अर्पित करें. बेलपत्र के चिकने वाले भाग को शिवलिंग से स्पर्श कराएं. इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हैं.
3. शिवजी को शहद, घी, शक्कर, भस्म आदि भी चढ़ा सकते हैं. अब महादेव को वस्त्र अर्पित करें. वस्त्र नहीं है, तो रक्षासूत्र अर्पित करें. महादेव को मालपुआ, ठंडाई, लस्सी, हलवा, मखाने की खीर आदि का भोग लगा सकते हैं.
4. नारियल, तुलसी, हल्दी, सिंदूर, शंख आदि का प्रयोग शिव पूजा में वर्जित है, इसका ध्यान रखें. माता गौरी, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की भी पूजा कर लें.
5. अब आप शिव चालीसा का पाठ करें. व्रत हैं तो चित्रभानु की महाशिवरात्रि की कथा का पाठ या श्रवण करें. बिना व्रत के भी इस कथा का श्रवण कर सकते हैं. पाप, कष्ट, रोग, दोष का नाश होगा.
: महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को चढ़ाएं बेलपत्र, जानें अर्पण विधि, मंत्र और लाभ
6. अब आप घी के दीपक या कपूर से भगवान शिव की आरती जय शिव ओंकारा गाएं. आरती के दीपक को घर में सभी जगहों पर ले जाएं. अंत में भगवान शिव को प्रणाम कर लें और अपनी मनोकामना उनसे कह दें. पूजा में कमियों के लिए क्षमा भी मांग लें.

इस प्रकार से आप महाशिवरात्रि की पूजा विधिपूर्वक संपन्न कर सकते हैं. मंत्र जाप या रूद्राभिषेक कराना है, तो किसी योग्य ज्योतिषाचार्य की मदद ले सकते हैं.

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