कमलेश भारतीय

यह एक चौकाने वाली टिप्पणी आई है मद्रास हाईकोर्ट की कि सिर्फ दस प्रतिशत पुलिस अधिकारी ही ईमानदार हैं और बाकी भ्रष्ट अफसरों को बाहर करने का यही समय है । जज जस्टिस पी वेलमुगन का कहना है कि पुलिस विभाग में 90 प्रतिशत अफसर भ्रष्ट हैं । केवल दस प्रतिशत अफसर ही ईमानदार और काबिल हैं । अधिकारियों को संवेदनशील बनाने और भ्रष्ट अफसरों को बाहर निकालने का यही समय है ।

यह टिप्पणी बहुत ही उदास कर गयी और वैसे भी हमारी मुम्बइया फिल्मों में जब तक हीरो विलेन और उसके साथियों की बुरी तरह पिटाई करके हांफ रहा होता है , उससे पहले पुलिस नहीं पहुंचती । यह आम दृश्य हैं हमारी फिल्मों में ।

अभी परमवीर सिंह की याद है क्या ? मुम्बई पुलिस के चीफ जिन्होंने प्रतिमाह सौ करोड़ रूपये की वसूली के मंत्री के आदेश की बात उजागर करके बवाल मचा दिया था ? अब यह मामला ऐसा आगे बढ़ा कि न तो वे मंत्री रहे और न ही परमवीर पुलिस प्रमुख लेकिन यह सच्चाई उजागर नहीं हुई कि क्या ऐसा ही होता था या होता आ रहा है ? सोचने की बात है । दूर क्यों जाना । हमारे अपने हिसार के पुलिस अधिकारी पर पचास लाख रुपये मांगने का आरोप लगाया है एक कारोबारी ने । भगवान् करे यह आरोप एकदम झूठा साबित हो और हमारे अधिकारी पाक साफ निकल आएं ।

वैसे हिसार रेंज के एक बड़े अधिकारी रहे रेशम सिंह ने एक पते की बात बताई थी कि हमने पुलिस लाइन में सभी पुलिस वालों को एकत्रित कर जनता से बड़े अदब से पेश आने के लिए कहा । एक सप्ताह बाद कुछ पुलिस वाले आकर कहने लगे कि हमसे ‘जी’ ‘जी’ कह कर बात नहीं होती क्योंकि ऐसा कहने से वे हमें पुलिस वाले मानने से ही इंकार कर रहे हैं । जनता भी इनके भद्र व्यवहार पर हैरान हो गयी । दूसरा भ्रष्टाचार के मामले में ऐसी बात प्रचलित है कि यदि दोनों पार्टियों जाकर कहती हैं कि हमने राजीनामा कर लिया है और हमारी कम्प्लेंट रद्द कर दो तो सामने वाला अधिकारी कहता है कि हमारा नामा यानी पैसा कहां है और राजीनामा इसी को कहते हैं कि आप राजी और हमारा नामा इधर लाओ तो हो गया राजीनामा भाई ।

भ्रष्टाचार पर अनेक फिल्में बनी हैं और ये हमारे समाज का ही आइना हैं और हमारे समाज से ही आई हैं । हालांकि अच्छे व्यवहार वाली भी कुछ फिल्में बनी हैं । मनोज वाजपेयी वाली शूल ऐसी ही बेहतरीन छवि वाली फिल्म है । महाराष्ट्र के ऐसे ही एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अधिकारी पर ‘अब तक छप्पन’ फिल्म बनी थी लेकिन वे आरोपों में घिर गये थे । पंजाब के आतंकवाद के दिनों में जिन पुलिस अधिकारियों ने अच्छा काम किया उनमें से एक अजीत सिंह को तो बाद में जेल हुई और वे मानसिक परेशानी में आत्महत्या को मजबूर हुए । पुलिस अधिकारियों को समय रहते नया प्रशिक्षण और व्यवहार सिखाने की बाकई बहुत जरूरत है क्योंकि इसका माटो है -सेवा , सुरक्षा और सहयोग ।

देखिए कब पुलिस की छवि एक परम दयालु और सहयोगी इंसान की बनती है ?
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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