प्रस्तुति-सुरेश गोयल धूप वाला

मेजर करतार सिंह

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत  संघ चालक रहे मेजर करतार सिंह उच्च मानवीय गुणों वाले संत  स्वभाव के व्यक्ति थे , जो उन्हें  अनेको में दुसरो से श्रेष्ठ बनाते है।  उनका ज्ञान , संकल्पशक्ति  , ईमानदारी , देश प्रेम की भावना , कर्तव्य परायणता व  अनेको औऱ गुणों के साथ दयालुता के गुण उनमे कूट -कूट कर भरे थे। विश्व मे ऐसे बहुत से व्यक्ति हुए है, जो उच्च व उत्तम नैतिक जीवन मूल्यों का विकास कर  महानता व  श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हुए है । मेजर करतार सिंह उन्ही में एक थे।

प्रारम्भिक जीवन—-हिसार के समीप माईड  गांव में उनका जन्म हुआ। प्राइमरी  शिक्षा उन्होंने गांव के ही स्कूल में प्राप्त की। सात भाई बहनों में वे सबसे बड़े थे। उनकी पूज्य माता बचपन मे ही उन्हें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गई थी।

प्रतिदिनगांव माईड  से सातरोड रेलवे स्टेशन आकर हिसार के जाट हाई स्कूल में  पैदल चल कर आया करते थे। 1954 तक उन्होंने दयानंद   महाविद्यालय से पढ़ाई की।

1954 में सेना में भर्ती—–उनके पिता उन्हें बाल्य अवस्था से ही सेना में भर्ती होकर देश सेवा की प्रेरणा देते रहे थे।  वे स्वयं भी सेना में थे । प्रथम व  दूसरे विश्व युद्व में उनकी महत्व पूर्ण भूमिका रही थी  ।यही कारण रहा कि वे सेना में भर्ती होने के लिए आकर्षित हुए। 1954 में वे जाट रेजिमेंट बरेली में एक सिपाही के रूप में भर्ती हुए।  वहाँ जाकर उन्हें मालूम हुआ कि मैट्रिक पास भी सेना में उच्चाधिकारी पद  प्राप्त कर सकता है ।इसके लिए उन दिनों  अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान होना  बहुत ही आवश्यक था। इसी कारण उनमे अंग्रेजी की पढ़ाई की धुन उनमे सवार हो गई और वे इसमें पूरी तरह सफल भी हुए।
1958 में आई एम देहरादून में ट्रेनिंग शुरू की।  1960 में 2nd लेफ्टिनेंट के पद पर उनकी नियुक्ति हो गई।

1962 के भारत -चीन के युद्ध के समय तवांग घाटी से निरंतर 10 दिनों तक भूखे प्यासे पैदल चलते रहे। व अपने गंतव्य तक पहुंच सके। इस बीच उन्होंने जंगली जानवरों का शिकार कर अपना पेट नही भरा। भूखे प्यासे रहकर पूरी तरह शाकाहारी रहे।

1965 में भारत -पाकिस्तान के युद्ध मे उन्हें वीरता के लिए  सेना मेंडल प्राप्त हुवा । पाकिस्तानी पेटन टैंको को उड़ा दिया था औऱ दुश्मन छ कके छुड़ा दिए। उड़ाने वाले परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद कंपनी के वे कमांडर थे ।उनके  नेतृत्व  व निर्देशन में अब्दुल हमीद ने 7 पेटेंट टैंको  को उड़ा दिया था।

1971 के  भारत- पाकिस्तान के युद्ध मे  93000 पाकिस्तानी युद्ध बंदियों को पकड़ कर उन्हें सुरक्षित रांची में रखने की महत्व पूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई ।

भारतीय सेना की तीन विभिन्न रेजिमेंट जाट रेजिमेंट  ग्रेनेडियर रेजिमेंट व जम्मू कश्मीर लाइट इम्फन्ट्री  में सेवा करने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुवा , जो कुछ बिरले ही लोगो को यह सौभाग्य मिलता है।

समाज सेवा का मिला सौभाग्य—-
सेना में सेवा  से मुक्त होने के बाद वे आर्यसमाज व कई अन्य समाजसेवी संस्थाओ  से जुड़ गए। आर्यसमाज व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ उनमे प्रमुख था । उनका इसके साथ जुड़ने का विशेष कारण भी रहा । उन्हें मालूम था कि संघ एक अनुशासित  ,  राष्ट्र भक्ति से ओतप्रोत  व सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर कार्य करने वाली गैर सरकारी गैर राजनीतिक  विश्व की सबसे बड़ी संस्था है । उन्होंने इस संस्था में पूरी तन्मयता मेहनत व पूरी निष्ठा के साथ कार्य किया। यही कारण रहा कि उन्हें हरियाणा प्रदेश के आरएसएस के प्रांत संघ चालक ( अध्यक्ष)जैसा महत्वपूर्ण दायित्व को संभालने का अवसर प्राप्त हुआ।

वे पूरी तरह गोसेवक रहे क़ाबरेल कि गौ शाला के वे प्रधान रहे, उन्होंने इसे  विकास की गति दी। वे अन्य कई धार्मिक सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे।

वे विभिन्न धार्मिक – सामाजिक संस्थाओं में हमेशा दान देने में अग्रणी रहे। लोगो की सेवा ही उन्होंने अपना ध्येय बना लिया था। जीवन पर्यंत वे जरूरत मन्दो की सेवा करते रहे।

कुछ दिन बीमारी के बाद गत शनिवार को वे देवलोक सिधार गए।

जो क्षति उनके जाने से हुई है , उसकी भरपाई होना बहुत मुश्किल है।

उनका यह राष्ट्र सेवा  के प्रति विशेष मोह ही प्रदर्शित करता है कि उन्होंने अपने एक मात्र पुत्र भूपेंदर सिंह को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा दी । उनके पुत्र  वायु सेना में भर्ती हुए ओर  सेना में उन्हें उत्कृष्ट कार्य करते हुए महामहिम राष्ट्र पति  ने उन्हें वीर चक्र जैसा बहुत ही सम्मानजनक पदक देकर  सम्मानित किया।

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