महज़ यूपी चुनाव जीतने के लिए हिजाब के ख़िलाफ़ साज़िश रची गई?
क्या हमारे संविधान निर्माता मूर्ख थे जिन्होंने धार्मिक आज़ादी की वकालत की थी
अनुच्छेद 25 कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को ” अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मनाने , आचरण करने और प्रचार करने का हक होगा ”
कोई भी विवाद संविधान के दायरे में हल होना चाहिए
अशोक कुमार कौशिक
मोटी समझ कहती है कि स्कूल और कॉलेज की एक ड्रेस तय की जा सकती है और छात्रों को उसे मनना अनिवार्य होगा पर दिक्कत ये है कि इस देश का एक संविधान है और उस संविधान में नागरिकों और अन्य के कुछ मूल अधिकार लिखे हुए हैं । बात साफ है कोई भी विवाद उसी के दायरे में हल होना चाहिए और होगा भी । तो आइए थोड़ा आगे बढ़ें ।
हिजाब का समर्थन नहीं, हम तुम्हारी निकृष्टता का विरोध कर रहे हैं। एक अकेली लड़की को सौ वहशी भगवा गमछा लेकर घेरते हैं और नारा लगाते हैं, हम इस निकृष्टता पर थूकते हैं। लेकिन भगवाधारियों की गुंडई ने उसे मजबूर किया कि वो मुक़ाबला करे। वो चाहती तो भाग सकती थी। वो डरकर रोने भी सकती थी। शायद मेरी बहन होती तो डर कर रो देती, वह रोई नहीं, अल्लाहु अकबर बोलकर चलती गई, हम उसकी बहादुरी का समर्थन कर रहे हैं। वो चाहती तो उन्हें गालियाँ दे सकती थी।
हम किसी सही-गलत के चक्कर में आपकी नीचता का समर्थन करने को बाध्य नहीं हैं, क्योंकि हमारे दिलो-दिमाग पर नफरत का कब्जा नहीं हुआ है।
आप मुस्कान को जानते हैं? मुस्कान वो हिजाबी लड़की है जिसने मांड्या (कर्नाटक) के सरकारी कॉलेज में अकेले भगवाथारियों का मुक़ाबला किया। वो सौ से ज़्यादा थे, वो अकेली थी। कर्नाटक एक सामान्य घर की लड़की है। उसके माता-पिता किसी राजनीतिक दल में नहीं हैं।
दुपट्टा ओढ़ना जिसे हिजाब कहा जाता है,मुंह भी खुला रहता है, दुपट्टे से सर ढकना व ब्रेस्ट के उभारों को ढका जाता है l
फ़िर संघियो को क्या प्रॉब्लम है? हिजाब/घुघट को संस्कृत का हिस्सा है जिसे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी, पारसी, सभी पहनते/ओढ़ते है l
ये स्कर्ट, पैन्ट, टीशर्ट, हाफ पैंट कौन सा लिबास है ? क्या ये ईसाई लिबास है? या वेस्टर्न लिबास है , उसको भी मत पहनने दीजिए। इससे तो संस्कृत नष्ट होती है ?
ये सब छोड़िए , साड़ी भी “मेसोपोटामिया (इराक) सभ्यता” का हिस्सा हैl इसे भी मत पहनिए और ना पहनने दीजिए l कहा जाता है कि जनेव भी मिस्र (Egypt) का है, उसे भी धारण करने से रोक दे !
कुर्ता, पायजामा, शेरवानी, मुस्लिमो का है, साड़ी, दुपट्टा, सलवार मुस्लिमो का है l शर्ट, पेंट कोट, ब्रा, यहूदियो का है l तो आपका क्या है? घाघरा चोली? या धोती कमीज?
फिर पहनेंगे क्या ? एक काम कीजिये, सभी को नंगा कर दीजिए, जिससे कपड़े की ज़रूरत ही खत्म हो जाए l बाकी कुंठित व सड़े हुए समाज से निष्पक्षता उंम्मीद बेमानी है l
हिजाब अच्छा है या बुरा, यह बहस की बात हो सकती है, लेकिन आप किसी महिला को इस तरह 100 गिध्दों का झुंड लेकर आतंकित नहीं कर सकते। एक विचार से प्रेरित होकर किसी व्यक्ति या समुदाय आतंकित करना ही आतंकवाद है। मैं इस आतंक का विरोध कर रहा हूं। मैं स्कूलों में जहर घोले जाने का विरोध कर रहा हूं।
हम सबने भी पढ़ाई की है, हर तरह के, हर विचार के, हर पहनावे के छात्र एकसाथ पढ़ते थे। उन्हीं कॉलेजों में ब्राह्मण छात्र चुटिया रखकर, सिख छात्र पगड़ी पहनकर आते हैं लेकिन सुई हिजाब पर अटकी। मैं बच्चों को विषैला बनाने के इस अभियान का विरोध कर रहा हूं।
चूड़ी पहनना या सिंदूर लगाना भी तो कर्मकांड है, पितृसत्ता की निशानी है! तुम कुएं के मेंढक इतने प्रोग्रेसिव हो गए हो कि हमारी माओं बहनों के माथे से जबरन सिंदूर पोंछ दोगे। तुम हमारी औरतों के सिर से घूंघट खींच दोगे? या उन्हें घेरकर हूट करोगे?
अनुच्छेद 25 कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को ( न केवल नागरिकों को) को ” अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मनाने , आचरण करने और प्रचार करने का हक होगा ” अच्छा अब अगर ऐसा है तो फिर किसी कॉलेज में या स्कूल में कोई ड्रेस कोड लागू किया ही नहीं किया जा सकेगा। आखिर एक हिन्दू स्त्री ऐसे में घूंघट को अपनी धार्मिक आचरण बता सकती है तो एक मुस्लिम महिला बुरखा को । ऐसे में देखना यह होगा कि क्या यह उस धर्म का “आवश्यक हिस्सा” है ?
अगर है तो बात आगे बढ़ती है और नहीं तो फिर उसपर धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता का अधिकार लागू ही नहीं होता । इसलिए भगवा गमछा लहराने वाले जवान सुन ले न्यायालय में आपका दावा एक झटके में खारिज हो जाएगा क्योंकि भगवा गमछा धारण करना हिन्दू धर्म का “अनिवार्य हिस्सा” नहीं अनिवार्य हिस्से का मतलब न्यायालय के एक निर्णय से समझा जा सकता है जो लाउड स्पीकर्स पर अजान पर प्रतिबंध लगाने के मामले में उठा । न्यायालय के समक्ष मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया कि अजान हमारे धर्म का आवश्यक हिस्सा है इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती यहाँ न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अजान देना आपके धर्म का “आवश्यक हिस्सा” है किंतु लाउड स्पीकर्स पर अजान देना आपके धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं है । अजान बिना लाउड स्पीकर्स के भी दी जा सकती है । इस्लाम की किसी किताब में कहीं नहीं लिखा कि अजान लाउड स्पीकर पर ही दो ।
ठीक यही बात लागू होती है हमारे अभी के मुद्दे पर । जब भी न्यायालय में कोई ऐसा मुद्दा आता है तो सबसे पहले देखा जाएगा कि क्या वह क्रियाकलाप धर्म का आवश्यक हिस्सा है या नहीं । ऐसा एक मामला केरल में उठ चुका है और उसका फैसला भी केरल हाइकोर्ट दे चुका है । वहाँ ठीक यही प्रश्न था कि क्या बुरखा / हिजाब इस्लाम का आवश्क हिस्सा है ? न्यायालय ने कुरान व हदीस की रीडिंग्स करवाई और अंत में इस निर्णय पर न्यायालय पहुंचा की मुस्लिम महिला के लिए शरीर का प्रदर्शन न करना इस्लाम के आवश्यक क्रियाकलाप का हिस्सा है । ऐसे में मुस्लिम लड़कियों का सर ढकना व फूल स्लीव्स ड्रेस पहनना उनका मूल अधिकार है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि शरीर ढकना मुस्लिम महिलाओं का मूल अधिकार है पर बुरखा उनका मूल अधिकार नहीं है । ऐसे में ऐसी ड्रेस जो फुल स्लीव हो और जिसमें शरीर ढक जाए उसे अनिवार्य रूप से मुस्लिम महिलाओं पर लागू किया जा सकता है । इसलिए with फुल स्लीव ड्रेस हिजाब मुस्लिम महिलाओं का मूल अधिकार है पर बुरखा नहीं ।
वैसे इस अधिकार पर “लोक व्यवस्था , स्वास्थ्य व सदाचार ” के नाम पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है पर हिजाब से न तो लोकव्यवस्था को खतरा है न स्वास्थ पर इसका कोई विपरीत प्रभाव पड़ सकता है , रही बात सदाचार की तो वह परिभाषित नहीं है पर अब तक के निर्णयों के आधार पर ये सदाचार का उल्लंघन भी नहीं है ।
क्या हमारे संविधान निर्माता मूर्ख थे जिन्होंने धार्मिक आज़ादी की वकालत की थी, धर्मनिरपेक्ष भारत को आत्मसात किया था। महज़ यूपी चुनाव जीतने के लिए हिजाब के ख़िलाफ़ साज़िश रची गई। महज़ यूपी चुनाव जीतने के लिए धुर्वीकरण की साज़िश कर्नाटक में रची जा रही है।
कर्नाटक के शिमोगा में दूसरी घटना एक कॉलेज में तिरंगा हटाकर भगवा झंडा फहराने की सामने आई है। लेकिन ताज्जुब है कि बीजेपी और आरएसएस ने अभी तक इसकी निंदा नहीं की। वीडियो में साफ दिख रहा है कि एबीवीपी समर्थक छात्र इस घिनौनी हरकत को अंजाम दे रहे हैं।
आरएसएस ख़ानदान का हमारे तिरंगे से नफ़रत नई बात नहीं है। संघ के नागपुर मुख्यालय में 27 साल तक तिरंगा नहीं फहराया गया। नागपुर के कुछ युवकों ने वहाँ जाकर झंडा फहराना चाहा तो आरएसएस ने उनके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करा दी। उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।
कर्नाटक में यही करने की कोशिश की गई है। यह कोई पर्दा प्रथा का विरोध नहीं हो रहा है। यह एक धर्म के प्रति दूसरे धर्म के लोगों के नफरत का इजहार है जो इस रूप में हमारे सामने आ रहा है। इसका सूत्रधार आरएसएस नाम का संगठन है और ये नफरत ही उसकी प्राणवायु है।
हम नफरत के कारोबार का विरोध करते हैं। आप किसी पर हिजाब थोपते हैं तो मैं उसके खिलाफ हूं। आप किसी का हिजाब नोचते-खींचते हैं तो भी मैं इसके खिलाफ हूं।
आप बड़े प्रगतिशील हैं तो प्रगति के लिए प्रगतिशील तरीका अपना सकते हैं। आप अपनी मध्ययुगीन प्रगतिशीलता के लिए किसी महिला की अस्मिता पर हमला नहीं कर सकते। आप इस देश के संविधान और इस देश की संस्कृति के साथ द्रोह कर रहे हैं।
वैसे हिजाब को इतना सीरियली मत लीजिए क्योंकि अनुच्छेद 25 सिक्खों को तो बाकायदा कृपाण रखने का मूल अधिकार देता है वो भी लिखित में । सोचिए एक समुदाय को आप वेपन साथ रखने का अधिकार संविधान में लिख के दे रहे हैं वहीं दूसरे समुदाय को एक सर ढकने का कपड़ा भी नहीं पहनने देंगे आप ?
हम हिजाब का समर्थन नहीं, हम नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन और आपकी घिनौनी हरकतों का विरोध कर रहे हैं। कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है।
अंत में यही एक बात है जो मायने रखती है बाकी सारा हो हल्ला बेकार है , फालतू है ।