भारत में चुनी सरकार का और ऊपर करतार का चल रहा है कानून. डा. नरेंद्र यादव और पत्रकार एफएस उजाला ने धर्मदेव को भेंट किया संविधान. महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करके अर्पित की गई श्रद्धांजलि फतह सिंह उजालापटौदी । गीता और रामायण के समान ही हमारा संविधान अनमोल धरोहर है । पांच दिन पहले पूरे देश में गर्व के साथ गणतंत्र दिवस मनाया गया । हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 26 जनवरी 1950 को भी संविधान लागू किया गया था । डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखे गए संविधान में सभी भारतीयों को बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार की जानकारी देते हुए सभी अधिकार प्रदान किए गए हैं। आज 30 जनवरी वह तारीख है, जिस दिन महात्मा गांधी जिनका भारत की आजादी में अमूल्य योगदान रहा है उनकी नाथूराम गोडसे के द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी । फिर भी गांधी जी के द्वारा प्राण त्यागने की समय उनकी जबान पर अंतिम शब्द हे राम ही थे । यह बात एक माह की कठोर कल्पवास साधना पर बैठे धर्माचार्य ,धर्म ग्रंथों और वेदों के मर्मज्ञ महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने गांधी पुण्यतिथि के मौके पर कही । इससे पहले आश्रम हरी मंदिर परिसर में महामंडलेश्वर धर्मदेव के साधना स्थल पर पहुंच क्षेत्र के विख्यात बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नरेंद्र यादव और वरिष्ठ पत्रकार फतह सिंह उजाला के द्वारा महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज को भारतीय संविधान की पुस्तकें भेंट की गई । भारतीय संविधान की पुस्तकों को देखकर महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने पहली प्रतिक्रिया में कहा कि भारतीय संविधान बहुत ही पवित्र और मूल्यवान है । इस संविधान की बदौलत ही आज हम सभी अपने-अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए जीवन यापन भी कर रहे हैं । उन्होंने कहा भारत और भारतवासियों को आजादी दिलाने में अनेकानेक वीरांगनाओं, योद्धाओं, स्वतंत्रता सेनानियों अन्य लोगों के द्वारा अपने अपने तरीके से यातनाएं रहते हुए शहादत भी दी गई । महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने भारतीय संविधान और परम पिता परमेश्वर के विधान की तुलना करते हुए कहा कि प्रत्येक इंसान का कर्तव्य है की इन दोनों का ईमानदारी के साथ में पालन करते हुए अमल भी किया जाना जरूरी है । जिस प्रकार से हम गीता और रामायण में दी गई शिक्षा और उपदेशों को जीवन में आत्मसात करते हैं , ठीक उसी प्रकार से ही भारतीय संविधान को भी प्रत्येक भारतीय को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए । संविधान ने हमें जो आजादी दी है , उस आजादी का मतलब यह नहीं कि हम आजादी की सीमा को ही लंांघते हुए ही चले जाएं । आजादी की सीमा का अतिक्रमण एक प्रकार से अपराध और उद्दंडता की श्रेणी में ही शामिल होता है । ऐसा कोई भी कृत्य करने से हम सभी को बचना चाहिए । हमारे अपने संविधान का सीधा और सरल मतलब यही है कि देश के जो नियम कायदे कानून है उसके दायरे में ही रहना चाहिए । वास्तव में संविधान का मतलब नियम मर्यादा और अनुशासन है घर परिवार की तरक्की समाज की एकता राज्य और राष्ट्र की तरक्की के लिए अनुशासन का होना प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत जरूरी है । उन्होंने कहा तंत्र अनुशासन को कहते हैं , हमारे स्वयं के अपने ऊपर भी तंत्र अथवा अनुशासन लागू होना चाहिए । एक प्रकार से स्वयं पर नियंत्रण भी होना चाहिए । उन्होंने कहा कि जब हम माता पिता आचार्य को देव मानते हैं तो हम सभी को राष्ट्र को भी देव ही मानना चाहिए । उन्होंने कहा माता-पिता आचार्य और राष्ट्र को देवता ही समझें । महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा भगवान राम भगवान श्री कृष्ण के द्वारा जो उपदेश दिए गए, जिनका हम आजीवन अनुसरण करते हुए पालन कर रहे हैं । ठीक उसी प्रकार से भारत के संविधान का निर्माण अथवा रचना करने वालों के द्वारा संविधान में लिखी गई बातों को भी जीवन में धारण करने का संकल्प लेकर राष्ट्र की तरक्की में अपना योगदान देना चाहिए । स्कूलों के पुूस्तकालय में उपलब्ध हो संविधानइस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार फतह सिंह उजाला ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल में जिस प्रकार से बिना किसी भेदभाव के राष्ट्रहित को सर्वाेपरि रखते हुए कार्य किए जा रहे हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को ऐसी नीति भी अवश्य बनानी चाहिए कि देशभर में दसवीं कक्षा से ऊपर जितने भी स्कूल हैं , वहां के पुस्तकालयों में कम से कम पांच-पांच संविधान की पुस्तकें अवश्य उपलब्ध करवाई जाए । जिससे कि युवा वर्ग संविधान को पढ़कर अपने मौलिक अधिकारों को पहचान एक अच्छा और राष्ट्र के प्रति समर्पित नागरिक बनकर अपना सहयोग प्रदान करें । पत्रकार फतह सिंह उजाला ने महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज से विशेष अनुरोध किया कि हरियाणा के सीएम और शिक्षा मंत्री से बात करके सबसे पहले हरियाणा राज्य के ही सभी सरकारी स्कूलों में जहां जहां भी पुस्तकालय हैं , वहां पर संविधान की पुस्तकें उपलब्ध करवाने के लिए बात कर आगामी शिक्षा सत्र से इस सुविधा को स्कूलों के पुस्तकालय में उपलब्ध करवा दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही पुस्तको को मार्गदर्शक और मित्र कहा गया है तो, संस्था में संपन्न होने वाले आयोजनों में अतिथियों को भी संविधान की पुस्तक भेंट करने पर विचार कर अमल में लाया जाना चाहिये। Post navigation पुराना रेलवे फाटक 45 ए पर अंडर पास का मुद्दा हुआ गरम हरियाणा में सरकार इंडियन नेशनल लोकदल की बनेगीः प्रकाश भारती