दिनोद धाम जयवीर फोगाट

22 जनवरी,भारत का गौरवशाली आध्यात्मिक इतिहास इस बात का गवाह है कि जब जब इंसान ने बड़ी से बड़ी दुख विपत्ति तकलीफ में अपना विश्वास और श्रद्धा नहीं छोड़ी तब-तब परमात्मा ने उसे आकर बचाया है और उसे उस विपत्ति से बाहर निकाला है। हम दुख तकलीफ में अपने सांसारिक नातों को पुकारते है लेकिन जिससे हमारा आदि नाता है उसे सबसे आखिर में याद करते हैं। यदि हम परमात्मा को सुख में ही याद करले तो दुख आएं ही ना। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर कँवर साहेब जी महाराज ने कहा कि भक्तनि कर्मा बाई का जीवन इस बात का परिचायक है कि प्रभु से सच्चा प्यार होने पर काठ की मूर्ति भी बोल पड़ती है। इसी प्रकार भगत प्रल्हाद ने भी विपत्ति आने पर परमात्मा पर विश्वास नहीं छोड़ा नतीजा परमात्मा ने स्वयं प्रकट होकर प्रह्लाद की बार-बार रक्षा की। पुत्र राम नाम का जाप करता था जबकि पिता स्वयं से बड़ा किसी को नहीं मानता था इसी बात पर पिता पुत्र में विरोध हो गया लेकिन भगत प्रल्हाद ने अपना भक्ति धर्म नहीं छोड़ा। पिता ने ना जाने क्या क्या कष्ट दिए लेकिन भगत प्रल्हाद की परमात्मा से प्रीति नहीं टूटी अंततः जीत परमात्मा के प्रति आसक्ति प्रेम और प्रीत की ही हुई। गुरु महाराज जी ने कहा कि जिसकी परमात्मा से लगन सच्ची है उसे किसी और से लगन लगाने की आवश्यकता नहीं है यदि आपने परमात्मा को ही अपना बना लिया तो पूरा जगत आपका बन जाता है। 

हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि द्रोपदी का चीर हरण प्रसंग इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है की जिसका सहाई स्वयं परमात्मा हो उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है। जिस सभा में भीम अर्जुन जैसे महाबली बैठे हो भीष्म पितामह जैसे धर्म परायण बैठे हो उस सभा में द्रौपदी सब की ओर कातर दृष्टि से देखती रही लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की।आखिरकार उसने सच्चे मन से अपने इष्ट को पुकारा, परमात्मा को पुकारा और देखते ही देखते परमात्मा ने स्वयं प्रकट होकर द्रौपदी की लाज बचा ली। परमात्मा की उस अनुकंपा को देखकर यह समझ नहीं आ रहा था कि नारी की साड़ी है या साड़ी की नारी है नारी में ही साड़ी है यह साड़ी में ही नारी है। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि इसी प्रकार नरसी भगत की एक पुकार पर स्वयं परमात्मा उसका भात भरने चले आए उन्होंने कहा कि यदि आपका विश्वास दृढ़ है तो परमात्मा को आपका काम साधने में कोई हिचक नहीं है। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि जिस तुलसीदास जी को लोग तुलसीया तुलसीया कहकर उनका मजाक उड़ाते थे उसी तुलसीदास जी को उन्हीं लोगों ने बहुत बड़ा ओहदा दिया। कारण सतगुरु की दया। तुलसीदास जी तो लिखते भी हैं की माया से माया मिली कर के लंबे हाथ गरीब तुलसीदास की कोई ना पूछे जात लेकिन जब वही तुलसिया गोस्वामी तुलसीदास बन गए तब उन्हीं लोगों ने उनकी आवभगत की उस समय का नजारा देखकर तुलसीदास जी ने कहा कि तुलसीदास गरीब था तो कोई ना पूछे छांह दया हुई गुरुदेव की तो चरणामृत ले ले जा। गुरु महाराज जी ने कहा कि किसी साधु संत महात्मा या भगत को कभी सताना नहीं चाहिए क्योंकि जो भगत को जो परमात्मा के भगत को सताता है उसकी कभी गति नहीं बन पाती।

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