-तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने अमृत महोत्सव पर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल को किया संबोधित

गुरुग्राम। तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने अमृत महोत्सव के तहत प्रवचनों में नारी शक्ति के जीवन चित्रण को अपने शब्दों में पिरोया। उन्होंने नारी को जीवन दायिनी भी कहा और घर को बेहतर घर बनाने में उसकी भूमिका का भी प्रस्तुतिकरण किया।

साध्वी कनक प्रभा जी ने कहा कि महिला सृजन का प्रतीक है। उसकी जीवन चुनौतीपूर्ण होता है। उसकी कलात्मक अंगुलियों में नैसर्गिक सृजनशीलता है। अपने बचपन में गुड्डे-गुडिय़ों का निर्माण करती है। किशोरावस्था में प्रवेश होने के बाद रसोईघर में उसकी सृजन यात्रा शुरू होती। यौवन की दहलीज पर कदम रखने के बाद या शादी के बाद नए घर को सजाने-संवारने में उसका सृजन-चेतना अंगड़ाई लेने लगती है।

उन्होंने कहा कि बच्चों का जन्म महिला सृजन क्षमता का एक अनूठा उदाहरण है। बच्चों के पालन-पोषण और उनमें श्रेष्ठ संस्कारों के संप्रेषण में जिस सृजनशीलता की अपेक्षा रहती है, उस पर सामान्यत: महिला वर्ग का एकाधिकार है, ऐसा मानना भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा। सृजन यात्रा के विभिन्न पड़ावों को पार करती हुई महिला एक ऐसे पड़ाव पर पहुंचती है, जहां उसका स्वयं का विस्तार होता है। परिवार का स्वरूप कुछ व्यापक बन जाता है। इस भूमिका पर वह एक संस्था का अंग बनकर खड़ी होती है। संस्था के संचालन एवं संस्था द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों को अंजाम देने के लिए वह अपने समय तक अपनी शक्ति का समुचित नियोजन करना चाहती है। हालांकि संस्था से जुडऩे के बाद वह सीख लेती है, फिर भी कुशल कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए उसे विशेष रूप से अपना निर्माण करना होता है।

काम के प्रति समर्पित एक कार्यकर्ता के कर्म को भी साध्वी कनकप्रभा जी ने बेहद बारीकी से समझाया। उन्होंने कहा कि एक सफल कार्यकर्ता अपने संगठन के विकास में अपना विकास देखता है। वह संगठन के संविधान एवं उसके संचालन की प्रक्रिया से परिचित रहता है। पद, प्रतिष्ठा और नाम की भूख से इतर काम करने में विश्वास करता है। वह अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करना जानता है। नियत समय पर अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए वह अथक परिश्रम करता है। जिसमें दृढ़ इच्छा-शक्ति के साथ काम करने का जज्बा होता है, जो अपनी योगयता और सामथ्र्य बढ़ाने की दृष्टि से जागरुक रहता है। जो निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान, हीनता-अतिरिक्तता आदि द्वंद्वों में उलझे बिना निश्चिंतता से काम करता है। अपनी सफलता का श्रेय अपने नेतृत्व को देना चाहता है। इस प्रकार और भी अनेक सूत्र हो सकते हैं, जिनको साधकर कार्यकर्ता अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता है।

उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ मंडल गुरुदेव श्री तुलसी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में नए कार्यकर्ताओं के निर्माण की दिशा में प्रस्थान करना चाहता है। आचार्य श्री महाश्रमण का मंगल आशीर्वाद और सार्थक मार्गदर्शन महिला वर्ग के सपनों को साकार करने तथा उम्मीदों को पूरा करने में आलम्बन बना रहेगा, ऐसा विश्वास है।

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