निष्काम ही हमारे को बंधन से मुक्त रख सकते हैं: धर्मदेव

मुक्ति नहीं चाहिये, बस कर्म के बंधन ही नहीं हो.
निष्काम साधना को ही माना गया है श्रेष्ठ साधना.
केवल साधना से ही प्राप्त होता है आत्मिक बल

फतह सिंह उजाला
पटौदी।
 शिक्षा, संस्कृति, मानवता को समर्पित और वेदों सहित धर्मग्रंथों के मर्मज्ञ महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने कहा है कि, उनको मुक्ति की कोई चाहत नहीं है, बस कर्म के कोई बंधन नही हों। काई भी कर्म हो, वह बंधन का कारण बन जाता है। लेकिन निष्काम कर्म करने से बंधन रहित रहा जा सकता है। यह बात उन्होंने माघ माह की चतुर्थी मकर संक्राति के मौके पर अपने जीवन की 18वीं कल्पवास साधना आश्रम हरिमंदिर परिसर में ही पर्णकुटी में आरंभ किये जाने के मौके पर कल्पवास साधना के महत्व पर चर्चा के दौरान कही।

शुक्रवार मकर सक्रांति के दिन प्रातः के समय संपूर्ण विधिविधान और मंत्रोच्चारण के बीच दादा गुरू ब्रहमलीन स्वामी अमरदेव और गुरू ब्रहमलरन स्वामी कृष्णदेव को स्मरण कर देवताओं का आहवान करते हुए पवित्र हवन कुंड में आहुतियां अर्पित करते महादेव का रूद्राअभिषेक किया गया। इस मौके पर कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए श्रद्धालूओं ने भी अपनी भागीदारी निभाई। महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा माघ माह भारतीय अध्यात्म, धर्म-कर्म और संस्कृति में साधना के लिए श्रेष्ठ है, प्रयागराज के किनारे पर माघ माह की हाड जमा देने ठंडे के बावजूद इस एक माह के दौरान असंख्य साधु-संत और तपस्वी नितांत एकांत में कठोर जप-तप सहित साधना करते हैं, वैसे अनेक साधु-संत कंदराओं में भी ध्यान साधना करते हैं। वास्तव में साधना से ही आत्मिक शक्ति और बल प्राप्त होता है। इस साधना का उद्देश्य साधु-संतो और तपस्वी के लिए अपनी चेतना को ही जागृत करना होता है, जिसे कि जीव कल्याण के हितार्थ सदुपयोग किया जाए। उन्होंने उदाहरण देते कहा कि, माता सीता ने भी अशोक वाटिका में यही कल्पवास साधना की थी। कल्प के समय की गणना संभव नहीं, लेकिन मान्यता के मुताबिक माघ माह में ही की जाने वाली साधना को कल्पवास साधना कहा गया है।

सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय
महामंडलेश्वर धर्मदेव ने कहा कि, संसार में सभी मानव किसी न किसी कारण से दुखी अथवा परेशान हैं। सभी तन, मन और धन को लेकर परेशान और दुखी हैं। लेकिन ‘मन के हारे हार है और मन के जीते ही जीत भी है’ यह बात को नहीं भूलना चाहिये। मन ही हिम्मत हार जाये तो, कोई भी मानसिक रूप से कभी जीत ऽभी नहीं सकेगा। आश्रम हरिमंदिर पर्णकुटी में आरंभ की एक माह की कल्प साधना की थीम भी, सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय ही है। उन्होंने कहा कि, मेरी व्यक्तिगत न कोई चाहत है और न ही कोई जरूरत भी है। मेरा साधु जीवन, शरीर का रोम-रोम और प्रत्येक सांस केवल और केवल पृथ्वी के सभी जीवों के कल्याण सहित उनकी पीड़ा को अपने में समेटने मात्र के लिए ही है।

 कर्म करो फल की इच्छा नहीं करो
भगवान श्री कृष्ण ने भी 5158 वर्ष पहले कहा था कि, जैसा कर्म करोगे-वैसा ही फल भी मिलेगा, अर्थात कर्म करो फल की इच्छा नहीं करो। वास्तव में कर्म ही बंधन का कारण भी है। निष्काम किये गए कर्म में बंधन नहीं होता है। निष्काम भाव के साथ की गई साधना ही श्रेष्ठ साधना है। ऐसी साधना किसी भी प्रकार के बंधन में साधक को बाध्य नहीं करती है। कल्पवास साधना के दौरान केवल और केवल प्रभू या फिर परमात्मा का ही स्मरण किया जाता है। संसार का दस्तूर रहा है कि यहां निरंतर बदलाव होता ही रहता है। ऐसे में स्थायित्व केवल साधना के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा की जाने वाली साधना का जो भी प्रतिफल मिले, वह प्रत्येक जीव, मानव को सबल बनाये, यही कामना है।

मंत्र साधना ही सर्वश्रेष्ठ
महामंडलेश्वर धर्मदेव ने कहा कि, मंत्र साधना ही सर्वश्रेष्ठ है और रहेगी। हमारे ऋषि-मुनियो-मनिषियों और देवी देवताओं के द्वारा रचित और कहे गए मंत्र में ही इस ब्रह्मांड का रहस्य भी समाहित है। कल्पवास साधना सही मायने में जीव कल्याण के लिए की जाने वाली बेहद कठोर लेकिन सर्वजन हित की ही साधना है।  महामंडलेश्वर धर्मदेव ने बताया कल्पवास साधना से पहले पूरे विधिविधान और मंत्रोच्चारण के बीच में सभी देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए हवन-यज्ञ में आहुतियां अर्पित की जाती है और सभी मानव सहित प्रत्येक जीव के कल्याण सहित सुखमय जीवन, स्वास्थ्य, किसी भी रोग अथवा महामारी से बचाव के संकल्प के साथ में 13 फरवरी तक अपनी कल्पवास साधना को जारी रखेंगे। इस दौरान साधनस स्थल पर सभी और हरि ओम-हरि ओम सहित हरि नाम ही गुंजायमान होता रहेगा।

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