शिक्षाविद 94 वर्षीय महिपाल का निधन अपूरणीय क्षति.
शोक संतप्त परिजनों को स्वामी धर्मदेव ने दी सांत्वना

फतह सिंह उजाला

पटोदी । 9 दशक के बाद का जीवन बुजुर्गों और धर्म शास्त्रों के मुताबिक शतायु की श्रेणी में ही माना गया है।  भारतीय सनातन संस्कृति धर्म ग्रंथ और पुराणों में भी कहा गया है कि गृहस्थ के चार आश्रम होते हैं । लेकिन 9 दशक अर्थात 90 वर्ष के बाद व्यक्ति अथवा इंसान को शतायु की श्रेणी में ही माना गया है। शतायु जीवन जीना सही मायने में परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा से ही संभव है । वहीं इसके लिए बहुत संयम , अनुशासन के साथ ही दृढ़ निश्चय और आसपास का माहौल खुशनुमा तथा परिजनों का साथ और स्नेह का भी होना जरूरी है । यह बात आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय पटौदी के अधिष्ठाता एवं महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने वयोवृद्ध शिक्षाविद पूर्व शिक्षा अधिकारी स्वर्गीय श्रीमहिपाल सिंह चैहान के देहावसान के उपरांत उनके शोक संतप्त परिजनों को सांत्वना देते हुए कही ।

गौरतलब है कि पूर्व शिक्षा अधिकारी जाने-माने शिक्षाविद 94 वर्षीय श्री महिपाल सिंह अपने अंतिम समय तक शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर ही सक्रिय रहे । सरकारी शिक्षण संस्थानों में अध्यापन करवाने के उपरांत सेवानिवृत्ति के बाद करीब 2 दशक से अधिक समय तक शिक्षाविद महिपाल सिंह ने आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय में अनेकानेक छात्रों को अध्ययन करवाया । महामंलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा की शतायु व्यक्ति का दर्शन मात्र ही दर्शन करने वाले के लिए देवतुल्य और देवताओं के आशीर्वाद से कम नहीं है।  शिक्षा एक ऐसा धन है , जिसको जितना अधिक बांटा जाए वह उतना ही अधिक बढ़ता भी है। लेकिन इसके स्वरूप अलग है ।

महामंलेश्वर धर्मदेव महाराज ने भावुक मन से कहा कि आज यह जानकर जितनी प्रसंता है वही कछ न कुछ मन को पीड़ा भी है कि शिक्षाविद महिपाल सिंह के द्वारा पढ़ाए गए अनेक छात्र उनके जीवन काल में जीवित रहते हुए ही सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं । यही एक अध्यापक और गुरु के लिए अपने आप में गर्व करने का विषय होता है कि उसके पढ़ाएं हुए बच्चे समाज में रहकर सरकार और गैर सरकारी संस्थानों में अपनी योग्यता साबित के साथ साथ अपने शिक्षकों और गुरुओं का भी निरंतर मान बढ़ाते रहते हैं । अंत में उन्होंने शोक संतप्त परिवार को सांत्वना देते हुए कहा की स्वर्गीय महिपाल सिंह की कमी को तो पूरा नहीं किया जा सकता । लेकिन जो शिक्षा के संस्कार का बीजारोपण उनके द्वारा किया गया है , उस पर अमल करके अपना जीवन और दूसरों का भी जीवन अनुकरणीय बनाया जा सकता है । उन्होंने परमपिता परमेश्वर से स्वर्गीय श्री महिपाल को अपने श्री चरणों में स्थान उपलब्ध करवाने का कामना की।

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