विधायक बैठे हैं उम्मीदों के सहारे कभी तो बारी आएगी

विधायक के समर्थकों को सब्र के फल से डाईबिटिज होने का भय

पवन कुमार

कोसली विधायक लक्ष्मण यादव

रेवाड़ी,25 दिसंबर I कहते है कि सब्र का फल मीठा होता है I आज के जमाने में यह बात गले नहीं उतरती,किसी विधायक का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है और विधायक बनने से पहले ना केवल 5 साल उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है बल्कि पार्टी के अधिकारियों कि आओ-भगत भी करनी पड़ती है,तब कहीं जाकर वह विधायक बनता है I विधायक बनने से पहले उम्मीदवार आश्वासनों के सहारे वोट बैंक बनाते और विधायक बनने के बाद वायदा पूरा करने के लिए भी प्रयासरत रहते है,बेशक़ परिस्थितियां उसके हक़ में ना होकर विपरीत हो पर I

विधायक बनते ही समर्थको में एक उम्मीद अवश्य जाग जाती है कि विधायक घर का है,कान पकड़ कर भी काम करवा लेंगे I विधायक के पास उतनी पावर नहीं होती, जितनी मंत्री के पास होती है I विधायक मंत्री बनने के चक्कर में चंडीगढ़ भागते-भागते थक जाता है और वह अपने वोटबैंक और मुख्यमंत्री के बीच में दो पाटों में कबीर कि तरह पिस कर रह जाता है और उसके बाद वह केवल यह सोचने पर विवश हो जाता है कि बैठे है नदिया किनारे,कभी तो लहर आएगी,लेकिन परेशानी तब और भी बढ़ जाती है जब लहर वहां तक पहुँचती ही नहीं और उन्हें आश्वासन मिलता है कि सब्र का फल मीठा होता है,पर सब्र का फल इतना भी मीठा नहीं होना चाहिए कि देखते ही देखते 5 साल निकल जाये और फिर विधायक अगले विधानसभा चुनाव में वोट मांगने लायक भी ना रहे I

आज कोसली विधायक लक्ष्मण यादव कि भी कुछ इसी तरह कि दुर्दशा है,पर वह कहें तो किससे कहें, और जायें भी तो जायें कहां I कोसली विधायक के माथे पर तनाव कि लकीरे, चहरे पर मायूसी और लब पर ख़ामोशी साफ नज़र आती है,वह कहें भी तो किस से कहें और उनके समर्थकों में भी लक्ष्मण यादव को मंत्री ना बनाये जाने पर मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के प्रति भारी नाराजगी साफ नज़र आती है I अभी दो साल निकले है,फिर तीन निकलेंगे,फिर चार निकलेंगे और फिर पांच और मामला जयूँ का तियूँ रहा तो हालात ऐसी हो जाएगी कि सरकार के साथ चले तो कुछ मिले नहीं और विरोध करे तो कहलाये बागी I यह बात भी सच है कि हक़ कभी माँगा नहीं जाता है,छीना जाता है और हक़ छिन ने के लिए अपनी आवाज़ को बुलंद करना पड़ता है,ताकि उसकी गुंज मुख्यमंत्री के कानों तक पहुंचे और वह तभी संभव है जब पाने कि ख़ुशी ना हों और खोने का गम नहीं और फिर भी यह साबित कर सके कि हम किसी से कम नहीं और नौबत यहां तक आ सकती है कि मंत्री ना बने तो जोगी बन जायेगे I

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