गुरुग्राम,22 दिसंबर -गुरुग्राम विश्वविद्यालय परिसर सेक्टर-51 में लोक प्रशासन विभाग द्वारा राष्ट्रीय गणित दिवस के अवसर पर एवं सुशासन दिवस को समर्पित राष्ट्रीय संवाद का आयोजन किया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राज्यसभा सांसद लेफ्टिनेंट जनरल डॉ.डीपी वत्स ,विशिष्ट अतिथि के रूप में नागेंद्र और कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में गुरुग्राम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मार्कण्डेय आहूजा ने शिरकत की। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद,लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. डीपी वत्स ने सुशासन और अनुशासन पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि उनके कर्मों, नीतियों, सिद्धांतों और व्यवहार को हमेशा याद किया जा सके।उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण-राष्ट्र आराधना व जनता की सेवा में समर्पित किया है। स्व श्री अटल वाजपेयी के लिए राष्ट्र धर्म सर्वोपरि था।अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री वत्स ने कहा कि सुशासन का सामान्य अर्थ है बेहतर तरीके से शासन। ऐसा शासन जिसमें गुणवत्ता हो और वह खुद में एक अच्छी मूल्य व्यवस्था को धारण करता हो। उन्होंने कहा कि सबका साथ, सबका विकास’ एक नारा नहीं, बल्कि सुशासन की आत्मा है।सभी देशों में कोई न कोई शासन प्रणाली तो चल ही रही है, लेकिन अनुशासन के साथ सुशासन का शासन लोकतांत्रिक जीवन शैली के लिए आवश्यक है। जिसमे देश के लोग प्रसन्न हो, उनका विकास हो, देश के हर फैसले में उनकी हामी शामिल हो ऐसे शासन को ही हम सुशासन कह सकते हैं। जब कोई नेता स्वहित छोड़ जनता के हित में कार्य करता हैं वही सुशासन है साथ ही देश के नागरिको को देश हित एवं शांति के लिए कुछ नियमो का पालन करना अनिवार्य हैं।

सेवा से साकार होगा ‘सुशासन’-डॉ. मार्कण्डेय आहूजा

इस अवसर पर गुरुग्राम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मार्कण्डेय आहूजा ने सुशासन के महत्व को समझाते हुए कहा कि सन 1947 से,पहले सुराज’ की अवधारणा ही ‘सुशासन’ की अवधारणा थी।भारत में रामराज्य की कल्पना सदियों से की जाती रही है। धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से रामराज्य को पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य कहा जा सकता है। रामराज्य की जो परिकल्पना की गयी है वह किसी भी सरकार या शासक के लिए एक सपना पूरा होने जैसी स्थिति हो सकती है लेकिन रामराज्य में भी कुछ कमियां थी जिसे उठाने का साहस किसी ने नहीं किया, जैसे देवी सीता को एक धोबी के कहने पर वन में छोड़ने का आदेश देना, एक राजा के रूप में दिया गया ये आदेश सही हो सकता है किन्तु एक पति के रूप में उन्होंने सही नहीं किया। आज हम ‘आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक मजबूत और विकसित भारत के स्वप्न को हम सुशासन से ही साकार कर सकते हैं। सुशासन का संबंध सामाजिक विकास से है। सुशासन के माध्यम से जहां हम अधिक सामाजिक अवसरों का सृजन कर सकते हैं, वहीं लोकतंत्र को अधिक सुरक्षित व मजबूत भी बना सकते हैं। सुशासन की अवधारणा ‘नागरिक पहले’ के सिद्धांत पर टिकी है, क्योंकि इसी सिद्धांत पर चल कर जहां नागरिकों को सरकार के करीब लाया जा सकता है, वहीं सुशासन में जनता की भागीदारी एवं सक्रियता को भी बढ़ाया जा सकता है।हम कह सकते हैं कि आम जन की सेवा के माध्यम से सुशासन के संकल्प को पूरा किया जा सकता है।

इस मौके पर कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री नागेंद्र ने कहा कि सुशासन की पहली मूलभूत आवश्यकता है, जवाबदेही, क्योंकि निर्णयों के अच्छे परिणाम तभी प्राप्त किए जा सकते हैं, जब हम इनके प्रति जवाबदेह हों।इस जवाबदेही का प्राण तत्व पारदर्शिता होती है, अतः सुशासन के लिए हमें जवाबदेही के साथ व्यवस्था में पारदर्शिता भी लानी होगी।तभी हम सुशासन की कल्पना कर सकते हैं।

गुरुग्राम विवि के लोक प्रशासन विभाग द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय संवाद’ में काफी संख्या में प्रोफेसर, विद्यार्थी, एवं शिक्षकगण ने हिस्सा लिया और विद्वान वक्ताओं ने अपने अपने विचार साझा किए।

इस मौके पर डॉ..राकेश कुमार योगी,प्रों. एम. एस. तुरान ,डॉ.अन्नपूर्णा ,डॉ.अमन वशिष्ठ , डॉ.अशोक खन्ना,डॉ. शुभम गांधी, डॉ.एकता ,डॉ.सीमा महलावत , डॉ.नीलम वशिष्ठ जी आदि मौजूद रहे।वहीँ मंच का संचालन डॉ. सुमन वशिष्ठ ने सफलतापूर्वक किया!

error: Content is protected !!