-शिकायत के निर्णय में जितनी जल्दबाजी रजिस्ट्रार ने दिखाई है, वह निष्पक्षता पर संदेह पैदा करती है
–रजिस्ट्रार के बिना हस्ताक्षर के व बिना डिस्पैच नम्बर के आदेश का सोशलमीडिया में जारी हो जाना, दर्शाता है कि आदेश कही और लिखा गया, रजिस्ट्रार ने तो मात्र दबाव में हस्ताक्षर किये 
— दूसरों की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले रजिस्ट्रार अनिल यादव की खुद की निष्पक्षता सन्देहास्पद

नारनौल । श्री गौड़ ब्राह्मण सभा के चुनाव का कार्यक्रम जारी हो चुका था। लेकिन चुनाव में व्यवधान डालने के लिए महज 4-5 लोगों ने अनर्गल शिकायत 15 दिसम्बर 2021 को जिला उपायुक्त के पास की। वह शिकायत को महज कुछ घण्टों में रजिस्ट्रार सोसायटी के पास पहुंच गई। जिला रजिस्ट्रार ने भी आनन फानन में 16 दिसम्बर को दोनों पक्षों को सुना तब जाकर फैसला किया जाना दर्शाया है। जबकि शिकायतकर्ता ने क्या शिकायत की है? दूसरे पक्ष अर्थात सभा प्रधान या कार्यकारिणी पर आरोप क्या हैं इसकी कोई जानकारी दी ही नहीं गई। ना ही शिकायत की कॉपी दूसरे पक्ष को दी गई। फर्म एवं सोसायटी रजिस्ट्रार ने चुनावी प्रक्रिया को समाचार पत्रों में प्रकाशित न करवाने तथा मतदाता सूची एवं वार्ड बंदी को लेकर आपत्तियों को दरकिनार करने को उचित ठहराते हुए चुनाव को रद्द कर दिया।

पुष्ट जानकारी के अनुसार राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद चुनाव प्रक्रिया को रोका गया। इस बात की पुष्टि आज सोशल मीडिया पर वायरल हुए आदेश को देखने पर हुई। सोशल मीडिया पर दो तरह के आदेश वायरल किए गए पहले तो वह आदेश पत्र वायरल किया गया जिस पर किसी प्रकार का कोई क्रमांक नहीं था और ना ही संबंधित अधिकारी के उस पर हस्ताक्षर थे। कुछ समय अंतराल बाद हस्ताक्षर एवं क्रमांक युक्त आदेश पत्र वायरल किया गया। इससे यह अंदेशा स्पष्ट होता है की शिकायतकर्ताओ को इस बात की पहले से ही पूर्ण अपेक्षा थी कि यह आदेश पारित किया जाएगा।

आरोप है कि रजिस्ट्रार अनिल यादव, ने ना तो सभा के प्रधान या सचिव को और ना ही आरओ या एआरओ को कोई लिखित नोटिस दिया। जबकि वो अपने आदेश में नोटिस ना देने को बड़ी चूक बताते हुए, इलेक्शन को रोक रहे हैं, व खुद शिकायत का निपटान करते हुए, नोटिस नहीं दे रहे हैं। आरओ या एआरओ को तो फोन तक पर सूचना नहीं दी गई। यहां शिकायतकर्ता के एक सदस्य का भी कहना है कि कार्यालय द्वारा उनको भी आज सुनवाई के लिए इसी प्रकार की लिखित रूप से आदेश नहीं दिया गया। शिकायतकर्ता में शामिल श्रीमती बबीता गौड़ ने सोशल मीडिया पर ऐसा दावा जताया है । 

बताया जा रहा है की करीब 2 बजे शिकायतकर्ता उनके आफिस से निकले हैं, और करीब 3 बजे एक आदेश जो उनके लेटरपैड पर हैं, जिस पर ना कोई नम्बर हैं और ना ही रजिस्ट्रार अनिल यादव के हस्ताक्षर हैं, मीडिया में वायरल हुआ है। इतनी जल्दी कार्रवाई व बिना हस्ताक्षर व डिस्पैच नम्बर का आदेह सोशलमीडिया में वायरल होना रजिस्ट्रार की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करता है। 

फर्म एवं सोसाइटी एक्ट यह कहता है कि किसी भी प्रकार की शिकायत मिलने पर उसका निराकरण करने के लिए दूसरे पक्ष को लिखित नोटिस देकर तलब किया जाता है। इस मामले में संबंधित अधिकारी द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया। सोसायटी एक्ट के नियम 33 के तहत प्रथम कॉलेजियम चुनाव के बाद कार्यकारिणी गठन की सूचना जारी होने के बाद उसकी कार्य अवधि 3 साल की होती है। इस आदेश के तहत वर्तमान कार्यकारिणी का कार्यकाल 3 जनवरी तक है।

एक्ट के अनुसार मतदाता सूची में किसी प्रकार की गड़बड़ी एवं वार्ड बंदी में गलती के बारे में फर्म एवं सोसायटी रजिस्टार का दायित्व होता है कि वह शिकायत सुनकर उसका निराकरण करें।  इसे भी अनदेखा किया गया क्यों?

जानकारी के अनुसार इस मामले में वर्तमान कार्यकारिणी द्वारा चुनावी प्रक्रिया की अधिसूचना एक्ट में दर्ज नियम की समय सीमा से पूर्व ही शुरू कर दी गई। वैसे आजकल सोशल मीडिया पर हर चीज की जानकारी हाथों हाथ वायरल हो जाती है। लोग भी समाचार पत्रों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की अपेक्षा सोशल मीडिया को ज्यादा प्रमुखता देने लगे हैं। कार्यकारिणी ने तथा चुनाव अधिकारीयो ने विभिन्न समाचार पत्रों वह सोशल मीडिया पर चल रहे स्थानीय ग्रुपों में चुनाव प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी जारी कर दी थी। फिर फर्म एवं सोसायटी रजिस्ट्रार ने इस नियम का सहारा लेकर की हिंदी व अंग्रेजी समाचार पत्रों में इसे अधिसूचना के रूप में विज्ञापित क्यों नहीं किया गया आधार बना कर चुनाव को रोक दिया?

आम जनता में यह चर्चा है, की बिना शिकायत की कॉपी दिए, बिना सचिव को नोटिस दिए, बिना रिकार्ड मंगवाए, बिना जांच किये, आदेश पारित करने की जल्दी, रजिस्ट्रार सोसायटी को क्यों थी? क्या इसके पीछे किसी शक्तिशाली राजनेता का हाथ है। चर्चा है कि अनिल यादव  भी एक एमएलए के आशीर्वाद से नारनौल में आये हैं, बताया जा रहा है कि इस आदेश के पीछे भी उसी एमएलए का हस्तक्षेप का अंदेशा जताया जा रहा है।

जिला महेन्द्रगढ़ के ब्राह्मण समाज में हजारों ब्राह्मण शामिल हैं, किन्तु 4 या 5 लोगों की अनर्गल शिकायत पर तत्काल कार्रवाई करना, इसी बात को साबित करता है कि रजिस्ट्रार, किसी भारी दबाव में थे। कुछ भी हो, समाज की गति को रोकने वाले कुछ लोग अपने उद्देश्य में कामयाब हो गए, व राजनीति करने वाले नेता भी उन्हीं को बैसाखी बना कर अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं।

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