” बेटी ने पिता के संस्मरण का संपादन कर पुस्तक के रूप में दी अनुपम सौगात” ” सरिता शर्मा द्वारा सम्पादित पुस्तक “जीवन जो जिया ( मेरे पापा की कहानी )” लोकार्पित” “शब्द शक्ति साहित्यिक संस्था ने किया आयोजन” अनिल श्रीवास्तव “छुपाये राज कितने भी, सभी की अपनी जिंदगानी है ” अपनी पंक्तियों के माध्यम से अपने विचार रखते हुए प्रख्यात साहित्यकार लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने कहा ” गिरते हुए नैतिक मूल्यों के वर्तमान दौर में उन जीवन मूल्यों को पुर्नस्थापित करने की चेष्टा पुस्तक में की गई है । संवेदनशील आम आदमी अपना जीवन समर्पित भी कर दे तो अधिकांश बुनियाद का पत्थर बनकर रह जाते हैं उनको वो श्रेय नहीं मिल पाता जो मिलना चाहिये । पुस्तक में किस्सागोई कमाल की है ।” अवसर था शब्द शक्ति साहित्यिक संस्था के तत्वावधान में आर्य समाज मंदिर मॉडल टाउन में रविवार 12 दिसम्बर 2021 को प्रातः 1130 बजे लोकार्पण समारोह एवं पुस्तक चर्चा के आयोजन का जिसके अंतर्गत सरिता शर्मा द्वारा संपादित पुस्तक “जीवन जो जिया (मेरे पापा की कहानी ) ” को लोकार्पित किया गया जिसमें लेखक पिता रतन सिंह शर्मा के संस्मरण को प्रस्तुत किया गया है ।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात साहित्यकार डॉ घमंडी लाल अग्रवाल एवं मुकेश शर्मा ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई । कार्यक्रम की अध्यक्षता आकाशवाणी के पुर्व महानिदेशक लक्ष्मीशंकर बाजपेयी एवं प्रख्यात कवयित्री ममता किरण ने की । अशोक शर्मा ने स्वागताध्यक्ष दायित्व का निर्वहन बड़ी जिम्मेदारी से किया । संस्कृति गौड़ के मधुर कंठ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना एवं अतिथि गण द्वारा दीप प्रज्जवलन से विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । कार्यक्रम का सधा हुआ संचालन संस्थापक अध्यक्ष नरेन्द्र गौड़ ने किया । सर्वप्रथम शहीदों को नमन करते हुए दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई । लेखक रतन सिंह शर्मा के पुत्र पवन भारद्वाज द्वारा लिखी पुस्तक की सारगर्भित भूमिका का वाचन कर मनमोहन पुष्करना ने वाणी कौशल का परिचय दिया । “20 वर्ष की उम्र में जवान हुए और फिर वहीं ठहर गए । उनका जीवन एक मिसाल है । रूढ़िवादी परिवेश के बावजूद उदार विचार वाले थे ।”कार्यक्रम की सह- अध्यक्ष ममता किरण ने अपने अनूठे अंदाज में कहा ” पिता के अनुभव की हर कहानी एक – एक झुर्री में ढल रही है ।” इस पुस्तक के माध्यम से हम अपने पिता के जीवन को महसूस कर सकते हैं । हम महापुरुषों से प्रेरित तो होते हैं लेकिन समाज , परिवार से भी हमे ऐसे व्यक्तित्व को चुनकर सामने लाना चाहिये । ” मुख्य अतिथि डॉ घमंडी लाल अग्रवाल ने कहा ,” सिर्फ मित्र ही नहीं वरन मार्गदर्शक और समय से आगे सोचने वाले पिता के लिए बेटी ने अनुपम सौगात दिया है । पुस्तक में सकारात्मक एवं प्रेरणात्मक संदेश देते हुए संस्मरण है ।उन्होंने कहा मेरे संज्ञान में ऐसी पहली पुस्तक है जिसमे पिता के संस्मरण को बेटी ने संपादित कर प्रस्तुत किया है ।” मुख्य अतिथि मुकेश शर्मा ने राहत इंदौरी का शेर उद्धृत करते हुए कहा“न हमसफर , न किसी हमनशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का कांटा हमीं से निकलेगा ” उन्होंने आगे कहा , ” जीवन के पीछे तप छुपा होता है । तप की अपनी शक्ति होती है। सरिता शर्मा ने परिवार को पुस्तक के रूप में विरासत सौंप कर विशिष्ट और सराहनीय कार्य किया है । यह पितऋण से मुक्त होने जैसा और समाज मे मान्यताएं व आदर्श स्थापित करने जैसा कार्य है ।” मुख्य वक्ता डॉ रवि दुबे ने कहा कि ये लेखक का बड़प्पन है कि मित्रवत व्यवहार करने वाले व दूसरो पर सर्वस्व लुटाने वाले एक राजा की तरह उन्होंने जीवन यापन किया है । उन्हें हरियाणवी साहित्य , संस्कृति से जितना लगाव है उतनी ही रुचि अंग्रेजी और उर्दू में भी है । आजकल संस्कृत सीखने की ललक भी है । कुशल नेतृत्व क्षमता के स्वामी रतन शर्मा जी के साथ पितृ दिवस मनाने जैसा अनुभव इस कार्यक्रम से हो रहा है । उन्होंने अपनी कविता से मनोभावों को व्यक्त किया । “कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता ,कभो धरती तो कभी आसमान है पिता “ सुरेंद्र मोहन कौशिक ने आत्मीयता भरे संबोधन में कहा, ” सरल कहानी के माध्यम से पुस्तक में प्रभावशाली ढंग से संस्मरण प्रस्तुत करने के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं ।” संपादक सरिता शर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ “राम तुम्हारा चरित्र स्वयं काव्य है ..” उद्धृत करते हुए कहा पिता का व्यक्तित्व ही इतना विराट है कि सब कुछ सहज हो गया । उन्होंने सीमित साधनों में संघर्ष करते हुए न सिर्फ परिवार के लिए बल्कि सभी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया इसलिए इस पुस्तक का शीर्षक होना चाहिए “जीवन जो औरों के लिए जिया” उन्हें कितना भी दुःख सहना पड़ा लेकिन उन्होंने दूसरों के लिए भलाई करना नहीं छोड़ी । “ हरिहर भारद्वाज ने कहा लेखक सबका भला सोचने वाले, पारखी नजर, रखने वाले थे । गीता शर्मा ने व्यापक अर्थों वाली प्रभावशाली कविता पढ़ी । सहपाठी कौशिक जी, कर्नल साहब , आर. डी. शर्मा सहित अन्य वक्ताओं ने पुस्तक, लेखक व संपादक के विषय मे बेबाकी से अपने विचार रखे ।इस अवसर पर नरेंद्र खामोश, बी एल सिंगला, अनिल श्रीवास्तव, रेनू गौड़, सुरिंदर मनचन्दा , सुनील शर्मा, मनोज भारद्वाज, संजीव शर्मा सहित कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे । Post navigation स्वतंत्रता सेनानी घमंडी लाल की धर्मपत्नी का निधन पॉलीथीन मुक्त गुरूग्राम की ओर नगर निगम का एक ओर कदम