फूलों की वर्षा और संघर्ष की जीत

-कमलेश भारतीय

आखिर 378 दिन का सबसे लम्बा संघर्ष जीत कर दिल्ली के आसपास के बाॅर्डरों पर बैठे दिल्ली को घेरे रहने के बाद जो जीत मिली उसका जश्न मनाते हुए किसानों ने घर वापसी शुरू कर दी है । सरकार ने भी अब सड़कों पर जो कील या वेरिकेट्स लगाये थे , उन्हें हटाना शुरू कर दिया है यानी दोनों तरफ वापसी हो रही है जो देश के लिए व लोकतंत्र के लिए सुखद है । भाजपा सरकार ने बिना कोई चर्चा किये और विरोध करने वाले सांसदों को बाहर निकाल कर ये तीन कृषि कानून पारित किये थे जिन पर किसान की कभी सहमति न हुई । इससे टकराव बढ़ा अन्नदाता और सरकार के बीच जो इतना बढ़ा कि 378 दिन तक बढ़ता रहा । सरकार ने विरोध को दबाब और अन्य तरीकों से दबाने की कोशिश की जो बुरी तरह नाकाम रही और आखिरकार सरकार को झुकने के लिए मजबूर होना पड़ा और बिना किसी वार्ता के कानून वापस लेने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर देने में ही भलाई समझी । अब वापसी हो रही है और उम्मीद जताई जा रही है कि पंद्रह दिसम्बर तक सब सामान्य हो जायेगा और सभी टोल नाके भी पहले की तरह शुरू हो जायेंगे । एक अनुमान के अनुसार बताया गया है कि पोल नाकों के बंद पड़े रहने से कम से कम 329 करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पड़ा सरकार को और यही नहीं व्यापार पर भी आवाजाही प्रभावित होने से काफी असर पड़ा । ये छोटे मोटे नुकसान झेलने को तो सरकार तैयार थी लेकिन जब ऐन सिर पर पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव सिर पर आ गये तब वह राजनीतिक नुकसान झेलने की हिम्मत न बची रह गयी जो नुकसान पश्चिमी बंगाल में सहा था । इसलिए बिना किसी वार्ता के तीन कृषि कानून वापस लेने में ही भलाई समझी ।

अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा को इतने लम्बे चले संघर्ष से नुकसान होगा या नहीं ? पहले तो इतनी हिंसा की किसानों पर कि जहां जहां प्रदर्शन करने जाते वहीं वहीं लाठीचार्ज और आंसू गैस छोड़ी जाती और अब अचानक से बरसाये गये इस प्यार से क्या किसान सब कुछ भूल जायेगा ? अब तो किसान जीत कर जा रहा है और उस पर जगह जगह फूलों की वर्षा हो रही है , क्या यह वर्षा या खुशी या जश्न भाजपा के लिए है ? नहीं । बिल्कुल नहीं । भाजपा को अपने देर से लिये फैसले का खमियाजा तो भुगतना पड़ेगा। कितना ? यह कहा नहीं जा सकता पर खमियाजा भुगतना होगा । किसानों ने बता दिया कि उन्हें पगड़ी संभालने का हुनर और हिम्मत आ गयी है । अब सोच समझ कर फैसले लेना । हां , किसान यह भी कह रहे हैं कि आपने चाहे हमें पंजाब व हरियाणा में बांट दिया था लेकिन हमने यह लड़ाई मिल कर लड़ी है और यह किसान की जीत है । सब से बड़ी जीत ।
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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