आधुनिक भारत के नवनिर्माण में सामाजिक समरसता एक सहरानीय कदम

डॉ मीरा, सहायक प्राध्यापिका (वाणिज्य)

सामाजिक समरसता से ही एक राष्ट्र का सशक्तिकरण संभव है, इसकी आवश्यकता राष्ट्र के निर्माण में हमेशा ही रही है और यह आज भी सर्वोपरि है।

भारतीय संविधान ने हमें मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्य भी दिए हैं। सामाजिक समरसता से शांति, सहयोग और भाईचारे की भावना विकसित करते हुए,आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास को बढ़ावा देना भी हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है।

समता के लिए सामाजिक समरसता एक सर्वश्रेष्ठ तत्व है और इसको हमने वैचारिक एवं बौद्धिक स्तर पर तो स्वीकार कर लिया है, परंतु हम अपने व्यवहार में इसे परिवर्तित करने में अभी भी पूर्ण रूप से सफल नहीं हुए हैं। सामाजिक समरसता का मतलब समाज में समानता लाते हुए, नैतिक मूल्यों में समृद्धि करना है। समृद्धि और समरसता वे नैतिक मूल्य हैं जो समाज में शांति,लोगों में धैर्य और विश्वास,ईमानदारी, सहिष्णुता और बंधुत्व को प्रोत्साहित करते हैं।

आपदा के समय में समरसता की भूमिका-
किसी भी महामारी या प्राकृतिक आपदा के समय आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और गरीबी आदि की दर में वृद्धि हो जाती है। जैसे कोरोना का काल में उद्योग बंद होने से करोड़ों श्रमिक रोजगार से वंचित रहे और स्कूल व कॉलेज बंद होने से विद्यार्थियों को भी शिक्षा ग्रहण करने में भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा बहुत बड़ी संख्या में गरीब लोग अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाए। ऐसे समय में सरकार,कॉरपोरेट जगत, एनजीओ,कर्मचारी वर्ग,सामाजिक संस्थाएं तथा आमजन ने अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर अपना मौलिक कर्तव्य समझा और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।

युवाओं का सामाजिक समरसता के प्रति बढ़ता रुझान-
सामाजिक समरसता आर्थिक विकास व साक्षरता के बिना नहीं आ सकती। वर्तमान समय में भारत में साक्षरता दर बढ़ने से आज का युवा, समाज में असमानता को बढ़ावा देने वाली कुरीतियों और जातिगत भेदभाव आदि से ऊपर उठकर सभ्य समाज की ओर अग्रसर है। समरसता भारतीय संस्कृति और सभ्यता का आधार है। सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करते हुए संत रविदास जी ने भी कहा है कि हमें सभी जीवों में समान प्राणों का अनुभव करना चाहिए। उनका मानना था कि सारा मानव-वंश एक जैसे ही प्राण तत्वों से निर्मित है।

डॉ.भीमराव अंबेडकर ने भी कहा था कि हम अपने व्यवहार में समता बंधुता और स्वतंत्रता लाकर ही सामाजिक समरसता को हासिल कर सकते हैं। भारतीय संविधान की उद्देशिका में वर्णित है कि भारत के नागरिक स्वतंत्रता,समानता, बंधुत्व और न्याय को अपनाएं ।

समता का हनन करने वाले रूढ़ीवादी विचारों को नकारना है अति आवश्यक

एक देश की एकता, केवल समूहों की एकजुटता भर नहीं है बल्कि सम्पूर्ण देश की सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए जिसमें सभी धर्म,जाति और वर्ग के लोग मौजूद हो और वे बिना भेदभाव के सब प्रकार के रीति-रिवाजों और त्योहारों का सम्मान करते हुए उन्हें हर्षोउल्लास से मनाएं और एक दूसरे की संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करें

हमें भारत की सामाजिक विविधता और विभिन्नता का सम्मान करते हुए,अपने व्यवहार में ऐसे जीवन मूल्यों और आदर्शों को लाना होगा जो समानता को दर्शाते हो और ऐसे रूढ़िवादी विचार जो समता का हनन करते हो उनका त्याग कर जब हम अपने मन-मस्तिक,वाणी और व्यवहार में समता लायेंगे तब जाकर सामाजिक समरसता आएगी ।

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