भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हर जगह कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन समाप्त हो गया और आज किसान अपने-अपने धरना स्थलों से अपने घरों की ओर वापिस जाने भी लग गए लेकिन बड़ा प्रश्न कि क्या वास्तव में किसान आंदोलन समाप्त हो गया?

प्रधानमंत्री के आंदोलन वापिस करने की घोषणा के बाद भी किसान अपने घरों पर नहीं गए। उन्होंने संसद में कानून निरस्त करने की बात कही। उसके पश्चात किसानों ने मांग रखी कि मुकदमे वापिस लिए जाएं, शहीद किसानों को सम्मान दिया जाए, एमएसपी कानून बनाया जाए, बिजली कानून बनाया जाए आदि-आदि और जब इनमें कुछ पर सरकार की स्वीकृति मिली और कुछ के लिए कमेटी गठित करने की बात कही। अब किसान धरना-स्थलों से उठने की बात पर सहमत हुए लेकिन उसके पश्चात भी बातें अभी बाकी हैं।

किसानों ने संयुक्त मोर्चा भंग नहीं किया है और न ही अभी हथियार डालें हैं। उनका कहना है कि सरकार पर भरोसा नहीं। वर्तमान में उन्होंने 15 तारीख को मीटिंग भी रखी है और उसके पश्चात एक माह बाद भी मीटिंग की घोषणा कर रखी है। इन बातों से साफ आभास होता है कि किसानों को अभी भी सरकार पर विश्वास नहीं है। इसीलिए संयुक्त किसान मोर्चा भंग नहीं किया गया है और एक माह बाद मीटिंग रखी है। इसके पीछे सूत्रों से प्राप्त कारण यह है कि जो कमेटी गठित होगी, उसका रवैया क्या होगा, क्योंकि उसमें संयुक्त किसान मोर्चा 4-5 सदस्य होंगे। बहुमत तो अन्य सदस्यों का होगा।

दूसरी बात वह यह देखना चाहते हैं कि सरकार ने घोषणा तो कर दी कि आंदोलन में दर्ज सभी मुकदमे वापिस ले लिए जाएं लेकिन लिए नहीं हैं। केंद्र ने राज्य सरकारों पर यह बात छोड़ दी है। अत: किसान अभी सरकार पर विश्वास कर नहीं पा रहे हैं। और करें भी कैसे, पिछले कटु अनुभव उन्हें सरकार पर विश्वास न करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। आज भी हरियाणा के मंत्रियों द्वारा किसानों के प्रति सद्भावना के शब्द सुनने को नहीं मिल रहे।

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