यह संभव नही तो फिर कर्मों को छोड़ देने से ही क्या होगा.
माया के स्वभाव बल से ही सब कर्म अपने आप होते रहते.
हमारा अपना जो स्वधर्म है उसी का ही नाम नित्य यज्ञ है

फतह सिंह उजाला

गुरूग्राम। क्या जन्म और मृत्यु भी कभी टल सकती है ? यदि इनमें से एक भी बात नहीं हो सकती, तो फिर कर्मों को छोड़ देने से ही क्या होगा ? इसका अभिप्राय यह है कि जब तक माया का आधार बना हुआ है, तब तक कर्मों का त्याग हो ही नहीं सकता । माया के स्वभाव बल से ही सब कर्म अपने आप होते रहते हैं । जब हम रथ पर बैठते हैं; तब चाहे हम कितने ही निश्चल होकर क्यों न बैठें, फिर भी परतन्त्रता के कारण हम हिलते डुलते रहते ही हैं । व्यक्ति को यह बात भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि जब तब माया का संग बना हुआ है, तब तक कर्मों का त्याग हो ही नहीं सकता। सनातन संस्कार और हिंदूत्व सहित धर्म-कर्म के प्रति जनजागरण को भारत प्रवास पर निकले काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने भिवण्डी में आयोजित धर्म सभा में उपस्थित सनातन धर्मावलम्बियों को अपना आशीर्वचन एवम् मार्गदर्शन प्रदान करते हुए यह बात कही।

उन्होंने कहा कि जब तक गुणों की जननी माया का आधार बना हुआ है, तब तक व्यक्ति अपने अज्ञान के कारण जो काम करता है, वे सब अपन आप गुणों पर अवलम्बित रहते हैं। फिर व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि उसके जो विहित कर्म हैं, उन्हें वह अपने मन के किसी आवेश के कारण छोड़ भी दे तो भी क्या इन्द्रियों के स्वाभाविक धर्म मर जाते हैं ? क्या कान सुनने का काम छोड़ देते हैं ? या क्या आँखों का तेज नष्ट हो जाता है ? या क्या नाक बन्द हो जाते हैं और वे सूँघना छोड़ देते हैं ? क्या भूख-प्यास आदि इछाओं का अन्त हो जाता है ? अथवा जागृति और स्वप्न की अवस्थायें नष्ट हो जाती हैं ? या पैर चलना भूल जाते हैं ?  मौजूद श्रद्धालूओं को आशिर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि भगवान इन्हें और शक्ति एवं सामर्थ्य दें, ताकि ये और उत्साह से सनातन धर्म की सेवा करते रहें ।

अपना जो स्वधर्म, उसी का नाम नित्य यज्ञ
जगद्गुरु शंकराचार्य ने कहा कि अपना जो स्वधर्म है, उसी का नाम “नित्य यज्ञ है, और उसका पालन करने में पाप लेश मात्र भी नहीं होता । जब यह स्वधर्म छूट जाता है और मन में किसी ऐसे-वैसे परधर्म के प्रति प्रवृत्ति या रुचि उत्पन्न होती है; तभी मनुष्य संसार अर्थात् जन्म-मरण के बन्धन में पड़ता है । इसीलिए जो व्यक्ति सदा स्वधर्म के अनुसार आचरण करता है, उसके द्वारा उन कर्मों के आचरण में ही निरन्तर यज्ञ कर्म होते रहते हैं । इसीलिए जो ऐसे कर्म करता है, उसे संसार के झमेले बन्धन में नहीं डाल सकते । पूज्य शंकराचार्य ने कहा कि बड़े भाग्य से मानव शरीर मिलता है, अस्तु कर्म योनि में यदि व्यक्ति को जन्म मिला है, तो सावधान रहकर धर्म द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलते हुए विहित कर्मों को पूरे मनोयोग से करते रहना चाहिए।

कर्मों की सहायता से मोक्ष भी प्राप्त
यदि कोई निष्कर्मता की साधना करना चाहे तो वह इस संसार में सम्भव ही नहीं है । इस बात का विचार ब्यक्ति को स्वयं करना चाहिए कि निषिद्ध कर्म करते रहना चाहिए या विहित कर्म । इसीलिए जो-जो कर्म उचित हों और सामने आएं , वे सब निष्काम मन से करने चाहिए । इस सम्बन्ध में एक और विलक्षण बात है, जो व्यक्ति के समझ में प्रायः नहीं आती । वह यह कि इस प्रकार आपसे आप जिन कर्मों का  आचरण किया जाता है, वे मोक्षदायक होते हैं । व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो व्यक्ति शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार और स्वधर्म के अनुरूप सब कर्म करता है, निश्चयपूर्वक वह उन्हीं कर्मों की सहायता से मोक्ष भी प्राप्त करता है ।

धर्म मंच पर  सन्त एवम् विद्वत्जन विराजमान
धर्म मंच पर केन्द्रीय मंत्री श्री कपिल पाटिल ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज का आशिर्वाद प्राप्त किया । धर्म मंच पर धर्म पीठ के स्वामी नारायणानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी अरुणानन्द जी महाराज, श्री कमलेश शास्त्री जी, स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी केदारानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी बृजभूषणानन्द जी महाराज, स्वामी बृजभूषणानन्द, महाराष्ट्र सरकार के नगर विकास मंत्री, सार्व. बांधकाम मंत्री एवं ठाणे व गड़चिरौली के पालक मंत्री एकनाथ शिंदे ,स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी केदारानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी बृजभूषणानन्द जी महाराज, श्री कमलेश शास्त्री जी, स्वामी अरुणानन्द जी महाराज, स्वामी ओमानन्द जी महाराज व कार्यक्रम के सूत्रधार नामदेव जी महाराज सहित अन्य सन्त महापुरुष, धर्माचार्य विराजमान जी महाराज सहित अन्य सन्त एवम् विद्वत्जन विराजमान थे।

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