किसका दबाव है, मुख्यमंत्री का, गृहमंत्री का या राव इंद्रजीत का

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम नगर निगम सदा ही भ्रष्टाचार के आरोपों के लपेटे में रहा है और निगम का भ्रष्टाचार का सीधा-सा अर्थ है गुरुग्राम की जनता की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग लेकिन आज हम भ्रष्टाचार की बात नहीं करेंगे, आज हम नीति की बात करेंगे।

 गुरुग्राम निगम ने फरीदाबाद निगम को कई वर्ष पहले 150 करोड़ रूपए दिया था, जो वापिस आना चाहिए था लेकिन न तो वह पैसा वापिस आया और न ही उसका ब्याज। उलटा हुआ कि जब कोरोना काल में लॉकडाउन हुआ तब से सफाई की कंपनी इकोग्रीन की फरीदाबाद निगम की पेमेंट भी गुरुग्राम निगम द्वारा की जा रही है। बड़ा सवाल यह है कि गुरुग्राम निगम यह पैसा क्यों दे रहा है?

गुरुग्राम की जनता ने निगम में 35 जनप्रतिनिधि पार्षद के रूप में चुनकर भेजे हैं, जिनका काम यही है कि गुरुग्राम में विकास सही प्रकार से हो और गुरुग्राम की जनता का टैक्स रूपी पैसे का सदुपयोग हो सके। तो यह कैसा सदुपयोग है? क्यों नहीं आवाज उठाते कोई भी पार्षद या मेयर टीम?

 गुरुग्राम में मुख्यमंत्री का आवागमन लगा ही रहता है। शायद ही कोई सप्ताह ऐसा जाता हो, जिसमें एक-दो बार गुरुग्राम न आए हों। कष्ट निवारण समिति के चेयरमैन भी मुख्यमंत्री ही हैं और मुख्यमंत्री की जानकारी में यह सब न हो, यह गले से उतरने वाली बात नहीं। प्रश्न वही कि क्या पार्षद मुख्यमंत्री के दबाव में नहीं बोल रहे?

हरियाणा के स्थानीय निकाय के मंत्री अनिल विज उर्फ गब्बर हैं। पिछले दिनों वह अकस्मात दौरा भी करके गए थे निगम का और कुछ लोगों को दंडित भी करके गए थे। ऐसे में यह सोचना कि निकाय मंत्री अनिल विज को इसकी जानकारी नहीं है, तो ऐसे ही है जैसे सूरज में शीतलता आ गई। सवाल फिर वही कि क्या निकाय मंत्री अनिल विज का दबाव है, जिसके कारण यह नहीं बोल रहे?

चार साल से कुछ अधिक समय पूर्व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने आन-बान-शान का सवाल खड़ा कर अपनी मेयर टीम बनाई थी और मुख्यमंत्री को आइना दिखाया था। तो उस हिसाब से कह सकते हैं कि निगम के मेयर और पार्षद राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव में हैं तो वह क्या उनके प्रभाव में खामोश हैं?

निगम का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है और चार वर्ष से अधिक हो चुके हैं। इन निगम पार्षदों को दोबारा पार्षद बनना है तो जनता के सम्मुख जाना ही पड़ेगा और तब यह जनता को कैसे समझाएंगे कि हमने किसके दबाव में या किन मजबूरियों में गुरुग्राम की जनता का पैसा लुटने दिया? क्या उस समय जनता मुख्यमंत्री के कहने से, निकाय मंत्री के कहने से या राव इंद्रजीत के कहने से इन्हें वोट देगी?

ऐसे ही अनेक प्रश्न हैं, जिनका जवाब वर्तमान निगम पार्षदों को जनता के बीच देना पड़ेगा कि कैसे बिना काम हुए निगम से पेमेंट हो जाती हैं, कैसे एक काम की दो-दो बार पेमेंट हो जाती है और कैसे निगम काम स्तरहीन होते हैं?

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