किसान आंदोलन पर निष्क्रियता हावी रही अहीरवाल में
बाजरे के समर्थन मूल्य न मिलने तथा डीएपी खाद की किल्लत पर कोई आंदोलन नहीं।
कैसे खट्टर और मोदी की निगाह में आकर राजनीतिक लाभ लिया जा सके।
पांच राज्यों में संभावित हार से घबराई भाजपा
भाजपा शीर्ष और स्थानीय नेतृत्व क्या क्षमा याचना करेगा?

अशोक कुमार कौशिक

 हरियाणा का दक्षिणी रेतीला हिस्सा जिसे अहीरवाल के नाम से पुकारा जाता है, जिसका अतीत स्वाभिमान और हक के लिए लड़ने वाली जुझारू कौम का रहा, आज वहां चाटुकारिता और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति हावी है। इतिहास बताता है की एक छोटी सी घटना पर उद्वेलित होकर यहां के लोगो ने औरंगजेब को नाको के चने चबा दिया। कहावत है नारनोल के गोरवे मारियो ताहिरबेग। सतनामियो की इस स्वाभिमान लड़ाई ने इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान दर्ज किया।

हक और स्वाभिमान की दूसरी लड़ाई नारनौल के नजदीक नसीबपुर के मैदान में लड़ी गई जिसका नेतृत्व राव तुलाराम, राव कृष्ण तथा राव गोपाल देव ने किया। इस लड़ाई को लेकर स्वयं अंग्रेज इतिहासकारों ने उनकी प्रशंसा की गाथा लिखी

तीसरी शौर्य गाथा 18 नवंबर 1962 को रेजांगला में मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चार्ली कंपनी के 114 जवानों ने चीन के 1300 जवानों साथ 23 डिग्री माइनस के मौसम में लड़ते हुए दर्ज की, जिसकी प्रशंसा स्वयं चीनी कमांडरों ने की।अन्याय और हक को लेकर एक और लड़ाई नारनौल की आईटीआई मैदान में रघु यादव के नेतृत्व में जल युद्ध के लिए लड़ी गई। यह लड़ाई हरियाणा में उपलब्ध नहरी पानी के असमान वितरण को लेकर थी। इस आंदोलन ने सरकार की चुले हिला दी थी। पर इसका एक दुष्परिणाम भी सामने आया कि इस लड़ाई के बाद क्षेत्र में कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। हां ! कुछ जुझारूपन पूर्व विधायक नरेश यादव के नेतृत्व में जरूर दिखाया गया। पर यह भी एक कटु सत्य है की जनता ने जुझारू और संघर्षशील नेता रघु यादव और नरेश यादव को नकार दिया। उपरोक्त गाथा इसलिए लिखी गई कि ईस क्षेत्र में अपने हक और स्वाभिमान के लिए राजनीतिक संघर्ष शून्य है। यह आरोप लगता है की रामपुरा हाउस ने समांतर नेतृत्व को उठने नहीं दिया। अब यहां लड़ाई रामपुरा हाउस व अन्य के बीच में आकर ठहर गई है। 

कांग्रेस में अपनी उपेक्षा से दुखी होकर अहीरवाल के जेयष्ट राव राजा  इंद्रजीत सिंह ने भाजपा की राह पकड़ी 2014 में देश में भाजपा के प्रति लहर बनाने में दक्षिण हरियाणा का बड़ा योगदान है । जिस दक्षिणी हरियाणा में मुख्यमंत्री के लिए अनेक लोगों को जनता के सामने ताज पहनाया था बहुमत मिलने के बाद झटके के साथ उनको नकार दिया। संघ कैडर से मनोहर लाल खटटर को ताज बना दिया गया। भाजपा ने तो अपने कैडर के लोगों को ही ज्यादा प्रमुखता दी। भाजपा की इसी मनमानी का दुष्परिणाम यह मिला की 2019 के चुनाव में उन्हें निर्दलीय वह दुष्यंत चौटाला की बैसाखी पर निर्भर होना पड़ा। अहीरवाल का नेतृत्व पिछले कार्यकाल से इस कार्यकाल तक संघर्ष करता दिखाई दिया। हर प्रकार की चाटुकारिता भाजपा में बेअसर रही।

जिस स्वाभिमान और उपेक्षा से पीड़ित होकर राव राजा ने भाजपा का दरवाजा खटखटाया था आज मैं उस भाजपा में भी सहज नहीं है। इसका एक कारण वह भाजपा कैडर से नहीं है और दूसरा भाजपा में कांग्रेसी कल्चर नहीं होना। भाजपा ने उन को कमजोर करने के लिए उनके समानांतर नेतृत्व को उभारना शुरू कर दिया इस बात से आहत होकर राव राजा ने भी अपनी ताकत दिखाने के लिए अपने तरकश के तीर छोड़ने शुरू कर दिए। रामपुरा हाउस के खिलाफ कांग्रेस व भाजपा के हर हथकंडे फेल हो गए। पर इस लड़ाई में चाटुकारिता के रास्ते आगे बढ़ने की होड़ सी लग गई और हक स्वाभिमान के साथ संघर्ष करने की क्षमता क्षीण होती चली गई। आज के राजनीतिक नेतृत्व ने एक राह अपना ली रामपुरा की जी हजूरी अथवा सत्तासीन सरकार की हां में हां मिलाना आधुनिक राजनीतिक कौशल बन गया। स्थानीय नेतृत्व को भी इसका भान हो गया क्योंकि उन्हें वोट मोदी के नाम पर ही मिले थे इसलिए वह विरोध के स्वर बुलंद नहीं कर सके।

अब हम आते हैं मुद्दे की बात पर पिछले एक साल से हरियाणा के बॉर्डर पर कृषि कानून के खिलाफ गांधीवादी तरीके से किसान आंदोलन चल रहा है। कल 19 नवंबर को देश के प्रधानमंत्री ने नए कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की । पर किसान इस कानून को संसद में निरस्त करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बनाने की बात पर अभी भी अड़े है। इस किसान आंदोलन में पंजाब के सिख और अहीरवाल के ऊपरी इलाके के जाट वह अन्य किसान मैदान में जमे है । दक्षिण हरियाणा में यह लड़ाई गौण रही। नए कृषि कानून की तपन यहां की लोगों को महसूस नहीं हुई।

हरियाणा, पंजाब व पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने भाजपा व उसके सहयोगी दलों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी पंजाब में अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया हरियाणा में दुष्यंत चौटाला को काफी मुश्किलों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के आसन्न चुनावो के चलते भाजपा सबसे संकट के दौर से गुजर रही है। भाजपा के लोगों को गांव व शहरों में घुसने नहीं दिया जा रहा। वही अहीरवाल में उनका खुले मंच से स्वागत किया जाता है। भाजपा के नेता अपने क्षेत्र में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे, वहीं दक्षिणी हरियाणा में शेखी बघारते हैं।

आखिर समझ नहीं आता की अहीरवाल के नेताओं और जनता को सांप क्यों सूंघा हुआ है? आश्चर्य तो तब होता है जब अतीत की जुझारू कौम और इलाका, किसान आंदोलन पर चुप्प ही नही रहा अपितु उसके विरोध में उतर आया। कुछ लोगो ने किसानों को खालिस्तानी, नकली किसान, जाटों का आंदोलन जैसे अलंकारों से नवाजा । सबको भाजपा के झंडे के नीचे ही अपना भविष्य उज्जवल नजर आया। सबसे बड़ी टीस तो तब पैदा हुई कि जब कुछ नेता एसवाईएल का मुद्दा उठाने लग गए। कृषि कानून के खिलाफ खड़े होने की बजाय पंजाब से एसवाईएल पर अन्याय की बात को प्रमुखता दी जाने लगी। और हद तो तब हो गई नांगल चौधरी के विधायक जिन्हे ईलाके में विकास पुरुष के नाम से नवाजा गया है, ने हरियाणा विधानसभा में कृषि कानून के समर्थन में जो दलीलें दी। उनको सुनकर इस पुरातन शौर्य इलाके कि शुरवीरता और जुझारूपन पर थोड़ा संदेह होने लगता है कि हम उसी शूरवीरो के वंशज हैं। राजस्थान बॉर्डर (नांगल चौधरी) से दादरी तक बनने वाली सड़क का टेंडर छोड़े जाने पर श्रेय लेने वाले मैदान में इलाके व जनता के हक हकूक के लिए कहीं नजर नहीं आते। केवल चाटुकारिता और चापलूसी हावी दिखाई देती है कि कैसे खट्टर और मोदी की निगाह में आकर राजनीतिक लाभ लिया जा सके।

हमारे पूर्वजों ने हर उस ज्यादती का जमकर विरोध ही नहीं किया बल्कि उसका करारा जवाब भी दिया। आज हमारा नेतृत्व हमारी भावी पीढ़ी को उसकी लड़ने की क्षमता से दूर करता जा रहा है। पुरानी कहावत है बिना रोए तो मां भी चूची नहीं देती। अब इसके दुष्परिणाम साफ दिखाई देने लगे है। इस बार सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बाजरे की खरीद नहीं की। हरियाणा सरकार ने बाजरा उत्पादक किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के बजाय भरपाई योजना के तहत ₹600 देने की घोषणा की। किसानों को अपना बाजरा 1300 व 1400 सौ रुपए की दर से बेचना पड़ा। सरकार ने बाजरे की अपेक्षा मूंग की फसल को ज्यादा तवज्जो दी। किसानों को भावांतर योजना का लाभ भी नहीं मिला। सरकार ने किसानों को बाजरा न खरीदने पर राहत के नाम पर कुछ राशि देने की घोषणा की। इस अन्याय और मनमानी के खिलाफ दक्षिण हरियाणा में कोई हलचल देखने को नहीं मिली राजनेता केवल बयानबाजी तक सीमित रहे सड़कों पर आकर कहीं संघर्ष नहीं हुआ। उसके बाद हरियाणा में डीएपी खाद की भारी किल्लत रही। लोग पुलिस के साए में खाद का एक कटटा लेने के लिए संघर्ष करते तो दिखाई दिए, पर किल्लत के खिलाफ सशक्त विरोध नहीं दर्ज करा पाए।

 बाजरे पर न्यूनतम समर्थन न मिलना जैसी अन्य समस्याएं विकराल रूप लेती जा रही हैं। पर सत्ता पक्ष और विपक्ष सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। विपक्ष ने भी तेल, रसोई गैस व महंगाई को लेकर सड़क पर उतर कर सरकार को झुकाना मुनासिब न समझा। विपक्ष को भी अपनी कमजोरी पर क्षमा याचना करनी चाहिए। आखिर समझ नहीं आता की अहीरवाल के नेताओं और जनता को सांप क्यों सूंघा हुआ है?

भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्र बता रहे हैं कि आनन फ़ानन में कृषि क़ानून वापस लेने की तीन वजह है । आंतरिक सर्वे में यूपी, उत्तराखंड में हार की  आशंका, पंजाब में निश्चित हार और देश के लिए जान देने वाले सिख समुदाय में मोदी का “ख़तरनाक रूप से अलोकप्रिय हो जाना”।

अब जब किसान बिल वापसी हो ही गयी है,  तो सवाल है कि जो 700 किसान इस आंदोलन में शहीद हुए उनका जिम्मेदार कौन है? उनका क़ुसूर क्या था?क्या बिल वापसी से वो फिर से वापस आ जायेंगे? पिछले एक साल से किसान अपना घर परिवार छोड़ कर सड़कों पर संघर्ष करते रहे,सारी दुनिया में उनकी आवाज़ गूँजती रही और आप उन्हें कभी आतंकवादी कभी खालिस्तानी कभी बिचौलिया कह जलील करते रहे। आपने  महिमामंडित मीडिया की फौज खड़ी कर दी। कभी लाठीचार्ज,कभी पानी की धार,, कभी उन्हें गाड़ी से रौंदा गया पर आप का दिल नहीं पसीजा। सारे हथकंडे फेल होने के बाद आप चुनाव में आपका आईना साफ साफ दिखने लगा तो आपको होश आने लगा! जब आवाम अन्याय शोषण अहंकार के खिलाफ़ हुंकार भरती तो बड़े से बड़े तानाशाहों को छिपने के लिए बंकर तक नसीब नहीं होता ।

 अब क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तथा स्थानीय नेतृत्व किसानों को जनता से अपने कुकृत्य को लेकर क्षमा याचना करेगा?
 क्षमा याचना इन बातों पर भी हो 

जो किसानों की राहों में कांटे,कीलें बिछाई गई,गड्ढे खोदे गए,भीषण ठंड में पानी उछाला गया,सीमेंट की दीवारें खड़ी की गई उस पर भी क्षमा याचना करनी चाहिए।

एक साल से गोदी मीडिया व आईटी सेल की प्रोपेगैंडा मशीनरी द्वारा किसानों को खालिस्तानी,माओवादी, नक्सली,आतंकी,पाकिस्तान परस्त, चीनी फंड खाने वाले,देशद्रोही गद्दार कहकर जलील किया गया था उस पर भी क्षमा याचना की जानी चाहिए।

लखीमपुर में किसानों पर गाड़ी चढ़ाने वाले आतंकी के बाप मंत्री को बर्खास्त करके जेल भेजकर मृतक किसान परिवारों से भी एक क्षमा याचना कर लेनी चाहिए।

अकेली हरियाणा सरकार ने तकरीबन 70,000 विरोध-प्रदर्शन करने वाले किसानों पर मुकदमे दर्ज किए है।दिल्ली,यूपी,हरियाणा से लेकर असम तक,जहां भी आंदोलन का समर्थन करने वाले किसानों पर मुकदमें दर्ज किए उस पर भी क्षमा याचना कर लेनी चाहिए।

700 किसानों ने एक साल लंबे चले किसान आंदोलन के दौरान शहादतें दी है। जब गलती मानकर कानून वापिस ले ही लिए तो उनके परिवारों को मुआवजा व एक सदस्य को सरकारी नौकरी देकर क्षमा याचना कर लेनी चाहिए।

जब बात क्षमा याचना के साथ तीनों कृषि कानूनों के वापसी के निर्णय तक पहुंच गई है तो एमएसपी गारंटी का कानून पास करके उन किसानों से भी क्षमा याचना कर लेनी चाहिए जो दशकों से अपनी फसल एमएसपी से कम दर पर बेचने को मजबूर रहे है।

बाकी दक्षिणी हरियाणा कि अहीरवाटी के लोगों के उद्वेलित होने तक जंग अभी जारी है..!

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