परमात्मा की भक्ति के लिए “मन, वचन और कर्म” पवित्र होना पड़ेगा : हजूर कंवर साहेब जी महाराज 
सन्त महात्मा पाखण्डों पर प्रहार करते हैं।
गुरु नानक देव जयंती पर उमड़ी साध संगत की विशाल हाजिरी में सत्संग फरमाते परमसंत कँवर साहेब जी महाराज।

भिवानी जयवीर फोगाट                      

 19 अक्टूबर, सन्तमत को मानने जानने समझने वालों के लिए आज का दिन सबसे बड़ा दिन है क्योंकि आज गुरु नानक साहब का अवतरण दिवस भी है और गंगा स्नान और गुरुपर्व का भी दिन है। जब जब धरती पर पाप बढ़ता है, अधर्म बढ़ता है तो सतपुरुष जीवो के कल्याण के लिए सन्तो को इस धरा पर भेजते हैं। सतपुरुष की हुक्म की पालना के लिए ही गुरु नानक देव जी ने आज के ही दिन देह धारी थी। गुरु नानक देव जी इस संसार में भटके हुए जीवो को रास्ता दिखाने आये थे। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने गुरु नानक देव की जयंती के अवसर पर आयोजित सत्संग में उमड़ी संगत की विशाल हाजिरी में फरमाए। हुजूर कँवर साहेब जी ने फरमाया कि नानक साहब ने मुख्यतः तीन चीजो पर काम किया। ‘किरत करो, नाम जपो, वंड छको’। पहला कीरत यानी काम करो। जब तक काम नही तब तक पेट कैसे भरोगे और जब तक पेट नहीं भरा होगा तब तक भक्ति हो ही नहीं सकते। दूसरा प्रभु का नाम जपो क्योंकि परमात्मा के नाम का सुमिरन से बढ़ कर कोई काम नहीं है और तीसरा बांट कर खाओ यानी परोपकार करो। 

गुरु महाराज जी ने फरमाया कि नानक साहब ने जातिविहीन समाज का गठन किया। उन्होंने संगत और पंगत की प्रथा चलाई। उन्होंने कहा कि जन्म से ही उनके मुख पर सूर्य सा तेज था। नानक साहब के पिता पटवारी थे पेशे से किसान थे लेकिन ज्योतिष ने बता दिया था कि उनके घर में स्वयं कुल मालिक ने जन्म लिया है। सन्त किसी एक जाति एक धर्म एक प्रदेश विशेष के नहीं होते। ये अलग बात है कि नानक साहब की शिक्षाओं को सिख धर्म के तौर पर अपना लिया गया लेकिन नानक साहब की शिक्षाएं तो सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं। जिसको जगत का कल्याण करना होता है वो दुनियादारी में आकर भी जगत का कल्याण ही करता है। परमात्मा का हुक्म ना गौतम बुद्ध की बाधाएं मोड़ पाई ना नानक साहब की।

गुरु महाराज जी ने कहा कि बाहर क्यों जाते हो जिस महापुरुष ने राधास्वामी सत्संग दिनोद का बाग लगाया है उन ताराचन्द जी महाराज के पिता ने भी उनको भक्ति मार्ग से मोड़ने की कोशिश की थी लेकिन मोड़ नहीं पाए। भक्त को अपने जीवन में अनेको बाधाएं उठानी पड़ती हैं। भयंकर कष्ट उठाने पड़ते हैं लेकिन जो परमात्मा के अंश होते हैं उनको ये बाधाएं ये कष्ट डिगा नहीं पाते।  सन्त तो स्वयं ही ये कौतुक रचते हैं। नानक साहब ने भी रचे थे। उन्होंने कहा कि बचपन में जब वे अपने ढोर डांगर को चराने जाते थे तो एक किसान ने उनके पिता से शिकायत की कि नानक तो एक पेड़ के नीचे बैठा रहता है और आपके पशुओं ने मेरा खेत उजाड़ दिया। किसान ने कहा कि अब भी मेरे खेत में आपके ढोर के खुरो के निशान हैं। जब सब खेत में गए तो वहां सब निशान मिटे हुए थे। इसी प्रकार नानक साहब के पिता ने उन्हें बीस रुपये देकर कहा कि सच्चा सौदा करके आना। आगे जाकर नानक साहब को कुछ साधु मिल गए। उन्होंने नानक साहब से खाने की गुहार लगाई। उन्होंने बीस रुपये उन्हें दे दिए। वापिस आए तो पिता ने हिसाब मांगा। नानक साहब ने कहा कि आपने ही कहा था कि सच्चा सौदा करके आना और किसी भूखे को पेट भरने से सच्चा सौदा मुझे कोई और नहीं लगा। गुरु महाराज जी ने कहा कि सन्त अपनी कमाई अपने गुरुमुख को सौंपते हैं इसीलिए नानक साहब ने भी अपनी गद्दी अपने लड़को को ना देकर अपने गुरुमुख बाबा लहना सिंह को दी जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए। सन्त महात्मा पाखण्डों पर प्रहार करते हैं। 

हुजूर महाराज जी ने कहा कि सतगुरु की शरण में जाना सीखो। शरण मे जाने का अर्थ है कि पूर्ण समर्पण यानी ‘तन, मन, धन’ सतगुरु को सौप देना। लेकिन हमारा अहंकार हमें समर्पण नहीं करने देता। अहंकार का परिणाम बुरा होता है और रावण इसका सबसे बड़ा उद्धाहरण है। उन्होंने कहा कि कुछ गलत होने पर हम कह तो देते हैं कि हमारा भाग्य ही कमजोर था लेकिन क्या हम अपने कर्म देखते हैं। गुरु जी ने कहा कि धैर्य और संयम के मार्ग पर चलने वालों को कष्ट तो मिल सकते हैं लेकिन उनकी हार कभी नहीं हो सकती। राजा हरिश्चंद्र का जीवन हमें यही शिक्षा देता है। महाराज जी ने कहा गुरु के भाने में रहना सिख लो। जिसकी वस्तु है उसे उसी के आगे रख दो यानी हर बात को परमात्मा का हुक्म मानो। यदि यह करना सीख लिया तो दयाल पुरुष के मन को भा जाओगे। परमात्मा कभी भेदभाव नहीं करता। वो सुख देता है तो दुख भी वही देता है।  महाराज जी ने कहा कि सभी सन्तो की शिक्षाएं एक जैसी ही हैं। हम सन्तो का एक वचन भी मान लेंगे तो भी कल्याण निश्चित है। गुरु जी ने कहा कि मन में तो हम हंस बने फिरते हैं लेकिन काम सारे काग वाले करते हैं तो धोखा किसी और को नहीं बल्कि स्वयं को देते हैं। उन्होंने कहा कि शब्द रस का आनन्द लेने के लिए मन वचन और कर्म से पवित्र होना पड़ेगा। जो सज्जन होता है वो तो हमेशा ही मीठा बोलेगा। बानी में बड़ी ताकत है। बानी से तो आप दुश्मन को भी अपना बना सकते हो। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि इस त्रिवेणी पर्व पर संकल्प उठाओ की जीवन में तीन चीजो को अपनाओगे, “मीठा बोलना,  परोपकार करना और तीसरा परमात्मा की भक्ति” माँ-बाप का आदर करना सीखो। माँ-बाप की सेवा करोगे तो पल पल उनके दिल से आपके लिए दुआ निकलेगी। माँ बाप की दुआओ में बड़ी ताकत है। दीन दुखियों की सेवा करो। घरों में प्यार प्रेम और शांति बनाए कर रखो। छोटो को संस्कार और बड़ो को आदर दो। गुरु पर्व के अवसर पर संगत ने 200 यूनिट रक्त का दान किया तथा मुफ्त वैक्सीन कैम्प लगाया गया।

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