भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। पर्यावरण संकट गुरुग्राम के लिए कोई नई बात नहीं है। अमूमन यहां एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडैक्स) खतरे के निशान से ऊपर ही रहता है लेकिन यह पहला अवसर है जब हरियाणा सरकार ने पर्यावरण खराब होने के कारण स्कूल बंद किए हैं, निर्माण कार्यों पर रोक लगाई है, फैक्ट्रियों में भी केवल गैस आधारित ईंधन प्रयोग करने के निर्देश दिए हैं। ऐसा शायद सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के कारण किया जा रहा है।

अब बड़ा प्रश्न कि क्या गुरुग्राम का पर्यावरण विभाग व प्रशासन इस बारे में वास्तव में गंभीर है? लगता तो नहीं, क्योंकि आज से पहले भी कई बार गुरुग्राम का एक्यूआइ इस स्तर को पार कर चुका है। ज्यादा दूर नहीं जाते, दीपावली पर प्रशासन की ओर से पटाखे चलाने पर मनाही थी लेकिन उसका असर आम जनता पर कितना हुआ, यह कहने की आवश्यकता शायद नहीं है। क्या उस समय पटाखे चलाने वालों पर कोई कार्यवाही की?

वर्तमान में 3-4 दिन पूर्व प्रशासन ने स्कूल बंद करने के आदेश दिए थे लेकिन अब भी अनेक स्कूल खुल रहे हैं। इसी प्रकार निर्माण कार्य हो रहे हैं, यहां तक कि सरकारी विभागों में भी निर्माण कार्य हुए। इसी प्रकार क्या यह देखा जा रहा है कि उद्योग कितना और किस नियम का पालन कर रहे हैं? कहने का तात्पर्य यह कि प्रशासन की ओर से आदेश तो पारित कर दिए जाते हैं पर उनका पालन कितना हो रहा है, यह प्रशासन नहीं देखता।

यह माना कि एकमात्र प्रशासन के कार्य से वातावरण शुद्ध नहीं होने वाला। उसके लिए जनता का सहयोग भी बहुत आवश्यक है। जनता को इस बारे में जागरूक करना कि किस-किस प्रकार प्रदूषण बढ़ता है और उससे कैसे बचा जा सकता है, यह बताना भी शायद प्रशासन, शासन और जनप्रतिनिधियों एवं सत्तारूढ़ तथा विपक्षी राजनेताओं की नैतिक जिम्मेदारी तो बनती ही है। कानूनी कितनी बनती है, इस बारे में हम कुछ कहेंगे नहीं।

अभी पिछले दिनों में सरकार और प्रशासन की ओर से ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया कि वे इस समस्या की ओर गंभीर हैं। अवश्य निगम की कुछ गाडिय़ां छिड़काव करने के लिए गईं। निगम के पास साफ-सफाई का काम भी है। शहर में जगह-जगह कूड़े के खत्ते पड़े हुए हैं, खत्ते उठाने वाली कंपनी उन्हें उठाने से मना कर रही है। ऐसे घातक समय में क्या उसके लिए कोई आपातकालीन प्रबंध नहीं करना चाहिए? निगम में 35 पार्षद हैं, क्या कोई अपने क्षेत्र में जनता को इस बारे में जागरूक करता दिखाई दिया? प्रशासन ने प्रदूषण कम करने के लिए बंदिशें भी लगाई हैं। कुछ कार्य वह कर रहे हैं, जो हमें पता है, कुछ वह भी हो सकते हैं, जिनकी जानकारी हमें नहीं है।

हमारे समाज की सोच कुछ बदलती सी नजर आ रही है। पहले पूरे गांव या पूरे शहर को अपना समझा जाता था। समय के साथ-साथ वह परिवार तक सिमट गया तो वर्तमान परिपेक्ष में तो अनेक स्थानों पर यह देखने में आया है कि परिवार छोड़ अपने लाभ के लिए व्यक्ति सोचने लगे हैं। यह जिक्र इसलिए करना पड़ रहा है कि पहले कोई आपदा मौहल्ले, गांव पर आती थी तो अपना निजी लाभ छोड़ आपदा से लडऩे के लिए एकजुट हो जाते थे किंतु वर्तमान में स्वरूप बदल गया है। यहां आपदा को अवसर बनाने वाले बहुत लोग हो गए हैं, जिसका उदाहरण कोरोना काल में हमने देखा  कि अनेक लोगों ने असहाय लोगों की मदद के नाम से अपनी मदद की। वर्तमान में इस आपदा में शायद ऐसा कुछ लाभ दिखाई नहीं दिया है अब तक, इसलिए लोग सामने नहीं आए हैं।

आज भाजपा के पर्यावरण संरक्षण विभाग के प्रमुख ने प्रेसवार्ता की, जिसमें उन्होंने कहा कि मैं अब गाडिय़ां भी रवाना कर रहा हूं पानी छिड़कने के लिए और पर्यावरण से लड़कर दस दिन में इसे दूर कर दूंगा।  यहां बड़ा प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या यह समस्या आज की है? सरकार ने भी रविवार से घोषित कर रखी है फिर आज कैसे पानी छिड़कने का ख्याल आया और क्या यह काम आप अपने बूते कर रहे हैं? यहां के जनप्रतिनिधियों को आप क्यों भुला रहे हो?

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