गुरुपर्व पर साध संगत को प्रवचन फरमाते परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज।

भिवानी जयवीर फोगाट

18 अक्टूबर,संगत की सेवा गुरु की सेवा है और गुरु सेवा के बिना भक्ति मुमकिन नहीं है। सेवा करते हुए आपके जेहन में आपका गुरु और मन में नाम का सुमिरन ही रहता है। गुरु के दरबार का सेवादार होना बड़े भाग्य का फल है। जो सेवा करता है उसके सारे पाप कर्म धूल जाते हैं। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने गुरुपर्व पर होने वाले सत्संग की पूर्व संध्या पर सत्संग की तैयारियों हेतु जुटे सेवादारों को सत्संग फरमाते हुए फरमाए। हुजूर महाराज जी ने कहा कि सन्तमत समझ का मत है, समझ विवेक को कहते हैं। हुजूर महाराज जी ने कहा कि कल का बड़ा दिन है। गंगा स्नान, गुरुपर्व और सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी का अवतरण दिवस के रूप में यह त्रिवेणी सन्तमत को मानने वालों के लिए बहुत ही पवित्र है। ऐसे पवित्र दिन में सेवा का महत्व भी बड़ा हो जाता है।

 हुजूर कँवर साहेब जी ने कहा कि आज का दिन राघास्वामी सत्संग दिनोद की संगत के लिए और भी ज्यादा महत्व का दिन है क्योंकि आज के दिन राघास्वामी सत्संग दिनोद के प्रवर्तक परमसंत ताराचन्द जी महाराज के गुरु सन्त रामसिंह अरमान के गुरु भाई परमसंत फकीर चंद जी महाराज का जन्मदिवस है। उन्होंने कहा कि फकीरचन्द जी के सत्संग में मुझे भी जाने का अवसर मिला। एक सत्संग में जब ताराचन्द जी फकीरचन्द जी महाराज के सत्संग में गए तो दूर से उन्होंने रुका मार कर कहा कि ए सत्संगियों देखो वो आ रहा है मेरा गुरु।हुजूर ने कहा कि उस वक़्त तो मैं ये सुन कर हैरान रह गया लेकिन आज मुझे समझ मे आता है कि फकीरचन्द महाराज ने ताराचन्द जी को गुरु क्यों कहा। आज आभास हुआ कि गुरु तो हमसे कभी दूर होता ही नहीं। वो तो पल पल हमारे अंग संग रहते हैं। गुरु की बख्शीश तो सबसे अमोली होती है।

जो विद्या के गुलाम हैं वो गुरु का वचन बुद्धि के तराजू में तोलते हैं लेकिन भोले लोग गुरु के वचन की पालना में अपना तन मन धन लगा देते हैं। गुरु महाराज ने फकीरचन्द महाराज को स्मरण करते हुए कहा कि वो हमेशा कहते थे कि सन्तान उतप्ति से पूर्व अपने ख्याल को पाक पवित्र बना लेना क्योंकि जैसा आपका ख्याल होगा वैसी ही आपकी सन्तान होगी। उन्होंने कहा कि फकीरों ने अपने जीवन की घटनाओं से सत्संग वचनों को पिरोया। जो समझ और ज्ञान वाले होते हैं वो ठोकर खाकर सुधर जाते हैं। हुजूर महाराज जी ने कहा कि जैसी आपकी संगत होती है वैसी ही आपकी नियति हो जाती है। लोभी के संग में लोभ बढ़ेगा और ज्ञानी के संग में ज्ञान ही बढ़ता है। हुजूर ने कहा कि हम व्यर्थ में क्यों किसी का कर्ज चढाते हैं। मत भूलो कि जैसा आप ले रहे हो वैसा ही आपको देना भी पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सन्तमत की भक्ति का जोर ही गृहस्थ को ठीक करने पर होता है। हक हलाल की कमाई करते हुए मां बाप की सेवा करो। सबसे प्यार प्रेम का व्यवहार करो। नाम कोई दो या पांच अक्षर का मंत्र नहीं है। नाम तो मन्तव्य को कहते हैं। वो तो आपके आचरण में बसा हुआ है। इसीलिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि बिना गुरु के आज तक कोई पार नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि सन्त तो दुनियादारों की भलाई के लिए अपना खुद का उद्धरण देने से भी नहीं कतराते। उन्होंने कहा कि गुरु यदि एक पल भी तुम्हारे माथे से उतर गया तो समझो आप काल के दांव में फंस गए। उन्होंने कहा यदि आपका हृदय सच्चा है तो गुरु कर्म की रेख पर मेख मारते हुए देर नहीं लगाता। 

उन्होंने कहा कि बुरी संगति से तो अकेला ही भला क्योंकि काजल की कोठरी में चाहे कितना ही बच लो आप कालिख से बच नहीं सकते। उन्होंने कहा कि हम आम बोलचाल की भाषा में भी कितनी ज्ञान की बात कह जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुरुमुख का स्वभाव छाज की भांति होना चाहिए। जैसे छाज सार वस्तु को अपने पास रख कर थोथी वस्तु को उड़ा देता है वैसे ही आप भी सार वस्तु को हृदय में रखो और सारहीन को बिसरा दो।

उलेखनीय है कि गुरु पर्व के अवसर पर हर वर्ष भिवानी आश्रम में सत्संग होता है जिसमे विशाल हाजिरी में संगत आती है।कल के सत्संग में मुफ्त वैक्सीनशन कैम्प और रक्तदान शिविर भी लगाया जाएगा।

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