किसान आंदोलन घटेगा या सरकार से विवाद बढ़ेगा

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। ऐलनाबाद उपचुनाव के बाद किसान आंदोलन के बारे में हरियाणा सरकार का रवैया बदला-बदला नजर आ रहा है। प्रश्न उठता है कि क्या सरकार इसे समाप्त करा पाएगा या यह और उग्र हो जाएगा?

चुनाव के बाद भाजपा-जजपा के नेता अपने कार्यक्रम करने को उतारू हो रहे हैं और किसान उन्हें वापिस भेज रहे हैं। दुष्यंत चौटाला को भी अपने कार्यालय किसानों ने नहीं जाने दिया। राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा दो बार किसानों की चपेट में आ चुके हैं। नारनौंद में तो उनकी गाडिय़ों के शीशे भी तोड़ दिए। वहां अब एक ओर जांगड समाज एकत्र होकर किसानों पर कार्यवाही की मांग कर रहा है और दूसरी ओर किसान थाने के सामने धरने पर बैठे और लंबे आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।

इसी प्रकार कल केदारनाथ से प्रधानमंत्री का कार्यक्रम था, उसे सुनने के लिए कलोई में भाजपा नेता एकत्र हुए। किसानों ने उन्हें 6-7 घंटे बंधक बनाए रखा। अंत में उनके हाथ जोडऩे पर ही खोला गया। इसमें भी सबके अलग-अलग कथन हैं। बंधक बने हुए नेताओं में पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर भी थे। किसानों का उन पर गुस्सा अधिक हुआ, क्योंकि उन्होंने बाद में कहा कि मैंने कोई माफी नहीं मांगी है। जिस पर आज उनके बचाव में रोहतक के सांसद अरविंद शर्मा आ गए और वह अपने स्वभाव के विपरीत इतनी बड़ी बात बोल गए, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि जो मनीष ग्रोवर की ओर हाथ बढ़ाएगा, उसके हाथ तोड़ दिए जाएंगे और आंख दिखाएगा, आंख फोड़ दी जाएंगी।

रविवार को जजपा सुप्रीमो डॉ. अजय चौटाला का कार्यक्रम भिवानी जिले में है और उसे रोकने के लिए भी कितलाना टोल से किसानों ने हुंकार भरी है। प्रसन्नता की बात यह है कि आज सोनीपत जिले के गांव झरोठी में मुख्यमंत्री शांति से कार्यक्रम कर आए। अब इसमें भाजपा की रणनीति को श्रेय दें या किसानों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, यह कहें। कारण कुछ भी रहा हो, खुशी की बात है कि कार्यक्रम पूरा हो गया। हम और हमारे साथ प्रदेश की जनता ही यह विचार करती है कि इस प्रदेश में अमन-चैन रहे।

किसान नेताओं की ओर से बड़े ब्यान आ रहे हैं कि अनिश्चितकालीन धरना देंगे, रणनीति बनाएंगे और जैसा कि विगत 11 माह से देख रहे हैं कि कहीं न कहीं बाजी किसानों के हाथ ही रहती है।सरकार इस आंदोलन को किसानों का मानती नहीं

आरंभ से ही सरकार की ओर से यही कहा जा रहा है कि यह अराजक तत्वों और विपक्ष द्वारा चलाया गया आंदोलन है। किसान तो तीनों कानूनों से प्रसन्न हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने भी आंदोलन के आरंभ में हर जिले में जाकर संवाददाता सम्मेलन कर यही बात कही। मुख्यमंत्री भी यही बात कह रहे हैं। समय-समय पर भाजपा के सभी वरिष्ठ नेता यही बात घुमा-फिराकर कहते हैं। नारनौंद में सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने भी यही कहा कि यह बेरोजगार शराबी हैं।

बड़ा प्रश्न यह है कि यदि ये किसान नहीं हैं तो सरकार इतनी अक्षम है कि अराजक तत्वों और विपक्ष की रणनीतियों का जवाब नहीं दे सके? सरकार का काम कानून व्यवस्था कायम रखना है और यदि ये किसान हैं तो माने और सौहार्दपूर्ण वातावरण में बात कर समस्या हल करें।

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